जैसे भी थे, गज़ब के लिखाड़ थे… आखिरी दिनों तक लिखते रहे और बेबाक़ी से लिखते रहे।
मैं छोटा सा था, जब अमर उजाला में उनका साप्ताहिक कॉलम पढ़ता था… जिसके आख़िर में शराब और शबाब ज़रूर होता था….
आईआईएमसी की लाइब्रेरी में कंपनी ऑफ वूमन पढ़ी और ट्रेन टु पाकिस्तान भी… दोनों बिल्कुल अलहदा… बाद में पढ़ा तो महसूस हुआ कि सिख धर्म को गज़ब गहराई से जानते हैं खुशवंत सिंह….
आपकी याद आएगी खुशवंत जी… काश, आप सौवां बसंत भी देख जाते।
विनम्र श्रद्धांजलि….