अक्सर आये दिन मैं कुछ सम्मानित मित्रों की पोस्ट पढता हूँ……जिनमे एक तर्क होता है….मोदी भाजपा से हैं..भाजपा मोदी से नहीं………………………………….
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चलिए आपकी बात मान लेते हैं …बस मेरी कुछ शंकाओं का निवारण कर दीजिये….
शास्त्री जी के बाद संभवतः अटल जी सबसे बेहतर प्रधानमंत्री रहे लेकिन इसके बावजूद २००४ और २००९ में भाजपा चुनाव हार गई क्यों ???…..१९९९ वाली भाजपा और २००४ व २००९ वाली भाजपा में क्या अंतर था ??? वही आडवानी,वही अटल,वही सुषमा,वही जेटली,वही राजनाथ ….कुछ भी तो नहीं बदला था…
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पिछले एक-डेढ़ साल से मोदी के गुजरात विकास मॉडल को सामने लाने के बाद से ही एन डी को दिल्ली की गद्दी के सपने आने शुरू हुए..मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाना भाजपा की मजबूरी थी ना कि सर्वसम्मति……अगर बिना मोदी के भी एन डी ए की स्थित मजबूत होती तो दद्दू लोग कभी उनको आगे नहीं आने देते…….आज भी अधिकतर लोग भाजपा की जीत से अधिक मोदी को प्रधानमंत्री पद पर देखने हेतु एन डी ए का समर्थन कर रहे हैं….
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“”””अगर मोदी-आगमन से इतर देखा जाए तो भाजपा की स्थिति १५० सीट जीतने की भी नहीं थी …..ये बात भाजपा के करता धरता जितनी जल्दी समझ जाएँ बेहतर है “”””
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हाँ मोदी को लेकर जो व्यक्तिवादी राजनीति हो रही है वो भी सही नहीं है…ये संगठन के लिए दीर्घकालिक फायदे की दृष्टि से उचित नहीं है..किन्तु भाजपा की वर्तमान स्थिति के लिए मोदी के योगदान को उनका धुर-विरोधी भी अनदेखा नहीं कर सकता आप तो फिर भी घर के लोग हो….
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परिवार ठीक से चले इसके लिए सबसे ज्यादा समझौते घर के बुजुर्ग करते हैं….बच्चे नहीं…वो अपनी इच्छाओं को तिलांजलि दे देते हैं ताकि परिवार की एकता बनाए रखने के लिए… जो कि आप लोग कदापि नहीं कर रहे हो…….
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होनहार बच्चा आगे बढे ये देख घर के बुजुर्ग खुश होते हैं ना कि जलते हैं……….
राजेश भट्ट