क्या अजीब इत्तेफाक है ….बनारस के तीनो उम्मीदवार मोदी, मुख़्तार और केजरीवाल तीनो से ही जान पहचान है. तीनो से रिपोर्टिंग के रिश्ते आपके लिए अदभुत, क्रन्तिकारी हो सकते हैं. पर दो दशक की पत्रकारिता में ये सामान्य बात है ….मैं तो इन रिश्तों का जिक्र सिर्फ इसलिए कर रहा हूँ की आपको ये ना लगे कि पोस्ट बस यूँ ही लिख दी.
मोदी के साथ गुजरात भूकंप के राहत कार्य में मैंने बीएसएफ के जहाज में बहुत बार सफर किया. मुख़्तार से मैंने जेल में कई इंटरव्यू लिए. एक बार तो जेल में उनके पास बहुत सारे हथियार देख कर मै चौंक गया. कजरी बाबु से भी रिश्ते हैं. सलमान खुर्शीद की स्टोरी ब्रेक करने के बाद केजरीवाल मुझसे कई बार मिले और मै उनके घर भी कई बार गया. मित्रों , बनारस के इन तीनो उम्मीदवारों का मिजाज़ अलग है , किरदार भी अलग है …पर एक ही समानता है ..वो ये की तीनो बड़े ही दिलेर है. आप कह रहे होंगे कि मुख़्तार अंसारी को मै कहाँ बाकी दोनों से मिला रहा हूँ.
ये सच है की मुख़्तार अंसारी बाहुबली माफिया सरगना है जिसके हाथों पर खून के दाग हैं. लेकिन वो एक बड़े रसूखदार मुस्लिम खानदान से हैं. कश्मीर को बचाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान और इस वक़्त देश के उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी …माफिया मुख़्तार के परिवार से है. एक और बात बताता हूँ….साढ़े छह फुट लंबे मुख़्तार अपने वक्त में देश के सबसे तेज गेंदबाजों में एक थे …वो कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में रणजी ट्राफी केम्प में था जब उसपर क़त्ल का इलज़ाम लगा. उसके बाद पूर्वांचल की सबसे खुनी गेंगवार में मुख्तर अंसारी कूद गया. आज भी मुख़्तार ..बनारस का असली किंग है जो केजरीवाल के मुस्लिम वोट हर तिकडम करके छीन लेगा.
मित्रों, केजरीवाल सच में एक मुसीबत में फंस गए हैं. वो ईमानदार है..अपराधियों की मुखालफत करने वाले है ..पर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण में बंटे बनारस में AK के लिए एक तरफ मुख़्तार अंसारी की AK rifle है और दूसरी तरफ हर हर मोदी के नारे. यही नहीं केजरीवाल के लिए वक्त भी कम है क्यूंकि इतनी सारी सीटों पर लड़ रही पार्टी को उन्हें कई जगह वक्त देना होगा. इसके अलावा केजरीवाल अब पहली जैसी लोकप्रियता और आम आदमी के जुनून पर सवार नही है.
मुझे लगता है अरविन्द की हालत उनके चापलूस सलाहकारों ने फिल्म गाईड के उस देवानंद जैसी कर दी है जिसे गांव वालों ने महान बताकर १२ दिन के आमरण अनशन पर बैठा दिया था. अपने फायदे के लिए गाईड को सूली पर चढ़ा दिया गया. यही हालत आज आम आदमी के गाईड की हो गयी है .
मै तटस्थ हूँ..पर फिर भी अरविन्द से कहूँगा की ये सच है कि उन्होंने अपने दम पर देश में राजनीति बदलने की शुरुआत की है पर आज वो अपने ही जाल में फंसते जा रहे हैं. उन्हें अगर लंबी राजनीति करनी है तो अब हर फैसला चापलूसों की सलाह पर तात्कालिक लाभ के लिए नही करें बल्कि हर फैसले में वो अपने आंदोलन और पार्टी के निराश होते काडर को ध्यान में लेकर करें. अगर बनारस में केजरीवाल की साख दांव पर लग गयी है तो वो दो जगह से चुनाव लड़ सकते हैं …गाजिअबाद और बनारस दोनों से.
देश को मुख़्तार अंसारी नही चाहिए पर देश को मोदी के विकास और अरविन्द के आंदोलन की अभी दरकार है. अरविन्द भाई अगर आप उर्दू समझते हैं तो एक शेर आपके सलाहकारों को लेकर अर्ज है …ज़रूर सोचियेगा
मेरे दाग ऐ दिल से है रोशिनी
उसी रोशिनी से है जिंदगी
मुझे डर है ऐ मेरे चारागर
ये चिराग तू ही बुझा ना दे
(चारागर …यहाँ पर मेरा तात्पर्य सलाहकारों से है )
दीपक शर्मा आज तक से जुड़े है