श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश). भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को जीएसएलवी डी-5 की सफल लॉन्चिंग की। जीएसएलवी डी-5 पहला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन (जीएसएलवी डी-5) है, जिसने जीसैट-14 संचार उपग्रह को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। इसके साथ ही भारत उन देशों के क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास अपनी क्रायोजेनिक तकनीक है। इसे भारत के लिए बड़ी सफलता माना जा रहा है, क्योंकि अब तक भारत को फ्रांस से दोगुनी कीमत चुका कर रॉकेट लेने पड़ते थे। इसके अलावा जीएसएलवी डी-5 की सफल लॉन्चिंग भारत के ‘चंद्रयान-2’ अभियान के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा- भारत ने विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
बड़े कमाल कर सकता है क्रायोजेनिक इंजन
क्रायोजेनिक इंजन में तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है, जो बर्फ से भी बहुत कम तापमान पर काम करते हैं। किसी रॉकेट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के दौरान उसका ईंधन भी ले जाना पड़ता है। ऐसे में सबसे हल्का ईंधन तरल हाईड्रोजन और तरल ऑक्सीजन हैं और उसे जलाने पर सबसे अधिक ऊर्जा मिलती है। इससे सहज ही समझा जा सकता है कि अंतरिक्ष मिशन में क्रायोजेनिक इंजन का क्या महत्व है। अभी तक भारत को क्रायोजेनिक इंजन के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया ने यह तकनीकी देने से इनकार कर दिया गया था, तभी से भारत के वैज्ञानिक इसे विकसित करने में लगे थे।
आपको बता दें कि रविवार को 4 बजकर 18 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी डी-5 को लॉन्च किया गया और ठीक 17 मिनट की उड़ान के बाद जीसैट-14 अपनी कक्षा में पहुंच गया। जीएसएलवी डी-5 इस साल अंतरिक्ष में पहुंचने वाला पहला सैटेलाइट है। इसकी लॉन्चिंग के लिए शनिवार दोपहर 11.18 बजे काउंट डाउन शुरू कर दिया गया था। इस प्रक्षेपण के पीछे वैज्ञानिकों की 20 साल की वह मेहनत भी दांव लगी थी, जो उन्होंने देसी क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने में लगाई। इस पूरे अभियान की कुल लागत 356 करोड़ रुपए बताई जा रही है