योजना है कि सरकार बनाने के पक्ष में जनता की राय का हवाला देकर आम आदमी पार्टी बाहर से कांग्रेस केसमर्थन वाली अल्पमत सरकार बनाएगी और इसके बाद ताबड़तोड़ तरीके से बिना नतीजे की परवाह किए अपना एजेंडा और घोषणापत्र लागू करेगी।
आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनावों तक कांग्रेस को मजबूर कर देगी कि या तो वह समर्थन वापस लेकर जनता की नाराजगी झेले या फिर आम आदमी पार्टी अपना लोकलुभावन एजेंडा लागू करते हुए दिल्ली और देश में लोगों की वाहवाही लूटते हुए अपना जनाधार बढ़ाएगी जिसका फायदा उसे लोकसभा चुनावों में मिलेगा।
इसकी जानकारी देने वाले के सूत्र ने बताया कि पार्टी कार्यकर्ताओं, विधायकों और समर्थकों का बहुमत सरकार बनाने के पक्ष में है। इस बारे में आम आदमी पार्टी ने जनता से पूछने की जो कवायद शुरु की है।
उसमें भी ज्यादातर जवाब सरकार बनाकर अपना एजेंडा लागू करने के पक्ष में आ रहे हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता कुमार विश्वास कहते हैं कि सब कुछ जनता के फैसले पर निर्भर है।
पार्टी के नेताओं, विधायकों की अपनी इच्छा क्या है, इसके कोई मायने नहीं हैं। जो जनता की इच्छा होगी पार्टी वही करेगी। हम दिल्ली के चालीस लाख लोगों तक पहुंच रहेहैं, उनके बहुमत की राय अगर सरकार बनाने केपक्ष में होगी तो सरकार बनेगी, अगर खिलाफ हुई तो हम सरकार नहीं बनाएंगे।
वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के अन्य सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस द्वारा बिना शर्त समर्थन की चिट्ठी उप राज्यपाल को सौंपने और अरविंद केजरीवाल द्वारा सोनिया गांधी को लिखे गए पत्र के जवाब में सभी 18 मुद्दों पर लिखित सहमति जताने के बाद टीम केजरीवाल पर सरकार बनाने और अपना चुनावी घोषणा पत्र लागू करने का दबाव बेहद बढ़ गया है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान और उसके बाद लगातार पार्टी नेताओं ने कांग्रेस-भाजपा से न समर्थन लेने और न ही समर्थन देने की जो नीति घोषित की गई, उसमें संशोधन केलिए पार्टी नेतृत्व को एक नैतिक आधार चाहिए। इसलिए जनता के बीच जाकर उसकी राय लेने का रास्ता चुना गया।
बताया जाता है कि जनता केबीच जाकर उसकी राय केबाद कोई फैसला लेने के पीछे दो कारण हैं।
एक तो इससे आम आदमी पार्टी को अपने समर्थक वर्ग के मूड का पता लग जाएगा और अगर बहुमत की राय सरकार बनाने केपक्ष में हुई तो पार्टी को समर्थन न लेने न देने केअपने फैसले को बदलने का बड़ा नैतिक आधार मिल जाएगा।
तब पार्टी कांग्रेस समर्थन से अपनी सरकार बनाने केऔचित्य को भी साबित कर सकेगी। सरकार बनाने पर आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यही होगी कि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को छोड़कर ज्यादातर विधायक नए और अनाम लोग हैं, जिनका राजनीतिक अनुभव तो ना केबराबर है।
आंदोलन में भी उनकी वरिष्ठता नहीं है। जबकि अन्य प्रमुख नेता कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, संजय सिंह, आनंद कुमार ने चुनाव ही नहीं लड़ा और शाजिया इल्मी मामूली अंतर से चुनाव हार गईं।
ऐसे में केजरीवाल तो मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन मंत्री बनाने के क्या मानदंड होंगे, यह सवाल है। साथ ही किसी एक विधायक को विधानसभा अध्यक्ष भी बनाना होगा।
लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि नेतृत्व ने इसकेलिए अपने मानदंड तय कर लिए हैं, जिन्हें वक्त आने पर लागू करके मंत्रिमंडल गठित किया जाएगा।