लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा नोएडा में फार्म हाउस के सभी आवंटियों के आवेदनों का नए सिरे से परीक्षण कराकर यह पता लगाने को कहा है कि धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेजों या गलत तथ्यों पर तो आवंटन नहीं कराए गए हैं।
ऐसे आवंटनों पर पुनर्विचार करके तीन माह में रिपोर्ट देने को कहा गया है।
साथ ही जिन आवेदकों को आवंटन नहीं हो सका है, उन्हें पुन: प्रस्तुतीकरण का मौका देकर प्रार्थना पत्रों पर पुनर्विचार करने को कहा गया है।
मनमाने ढंग से आवंटन की शिकायतों पर अंकुश के लिए लोकायुक्त ने आवंटन समिति के क्षेत्राधिकार व विवेकाधिकार को सीमित करने तथा प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए मानक, दिशा-निर्देश व नीति बनाने पर विचार करने की सिफारिश की है।
दिलचस्प यह है कि अगस्त 2012 में नोएडा के तत्कालीन अध्यक्ष राकेश बहादुर की जिस तथ्यात्मक रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने फार्म हाउस आवंटन मामले की जांच लोकायुक्त को सौंपी थी, वही तथ्यहीन पाई गई है और सवालों के घेरे में आ गई है।
इस मामले में राकेश बहादुर की रिपोर्ट ने सरकार की फजीहत कराकर रख दी है।
लोकायुक्त ने इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को तो क्लीन चिट दी ही है, किसी और को भी दोषी नहीं ठहराया है।
लोकायुक्त का साफ कहना है कि फार्म हाउस का भू-दर निर्धारित करने में कोई आर्थिक हानि नहीं हुई है।
न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने सोमवार को मुख्यमंत्री को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फार्म हाउस योजना लागू करने में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई।
राकेश बहादुर की रिपोर्ट में जिन अधिनियमों व विनियमों का उल्लेख किया गया था, वे अस्तित्व में ही नहीं हैं।
1983 से लेकर अब तक बनाए गए नोएडा के मास्टर प्लान में फार्म हाउस अनुमन्य पाया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक जांच अधिकारी ने हानि की गणना करते समय भू-दर 5655 रुपये तथा 6258 रुपये प्रति वर्ग मीटर के आधार पर की जबकि नोएडा के वित्त विभाग ने इस गणना की अभिलेखों के आधार पर पुष्टि नहीं की।
फार्म हाउस की भूमि के अधिग्रहण एवं विकास कार्यों में 2225 रुपये प्रति वर्ग मीटर का ही खर्च प्रमाणित हुआ। भूमि के बेसिक रेट का निर्धारण महत्वहीन पाया गया।
पूरे मामले में नोएडा अथॉरिटी में कार्यरत अधिकारियों, अन्य लोकसेवकों तथा व्यक्तियों� के बीच कोई आपराधिक दुरभिसंधि भी नहीं पाई गई।
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मायावती को क्लीन चिट
लोकायुक्त की रिपोर्ट के अनुसार कई जनप्रतिनिधियों, वकीलों व आवेदकों ने इस योजना को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर भ्रष्टाचार पर आरोप लगाए थे, जो साबित नहीं हुए।
आरोप लगाने वाले भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही, विकास सिंह एडवोकेट व गौरव अग्रवाल ने नोटिस भेजने के बावजूद अपने आरोपों के समर्थन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया।
लोकायुक्त का कहना है कि किसी जनप्रतिनिधि, अधिकारी या अन्य किसी की भी सीधे तौर पर भूमिका सामने नहीं आई है।
जिन प्रभावशाली लोगों को फार्म हाउस आवंटित हुआ, वे निर्धारित अर्हता पूरी करते हैं, इसलिए इस पर सवाल नहीं उठाए जा सकते।