दिल्ली में आम आदमी पार्टी या आप को पिछले सप्ताह आये जनमत सर्वेक्षणों में तेजी से उभरता दिखाया जा रहा है। काबिले-गौर है कि इस पार्टी पर आरोप लगते रहें हैं कि इसे मीडिया ने पैदा किया और इसके समर्थक सोशल मीडिया तक सीमित हैं। आप के गठन से लेकर अबतक मीडिया और अन्य राजनीतिक दल इसे नजरअंदाज करते रहे हैं। परंतु केजरीवाल अपने मिशन में डटे रहे और इन सब से दूर ग्राउंड वर्क में ध्यान दिया। कभी सार्वजनिक पार्कों की सफाई का जिम्मा लिया तो कई जगह सरकारी अस्पतालों और विभागों में अपने वालंटियर के सहयोग से आम जनता का काम करवाया।
भारतीय राजनीति में आप जैसे पार्टी की दस्तक को नामंजूर कर शायद भारतीय मीडिया एक बनते हुए इतिहास की गवाह बनने से इंकार करती रही है। आप ने इंटरनेट और सोशल साइट्स के माध्यम से मध्यम वर्ग के बीच अपनी पकड़ को तो बरकरार रखा ही है साथ ही उसने मोबाईल पर लगातार मैसेजिंग के जरिये उस वर्ग के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज की है जहाँ कांग्रेस की मोनोपोली है। पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता बताते हैं कि चूँकि वोटरों का एक बड़ा तबका अभी सोशल मीडिया पर मौजूद नहीं है इसलिए मोबाईल मैसेजिंग, आटो विज्ञापन और कालोनी मूवमेंट कर हमने वोटरों तक पहुँचने की कोशिस की है। अब जबकि चुनाव में एक महीने से कम का समय बचा है, चुनाव सर्वेक्षणों का आप के पक्ष में आना पार्टी के लिए उत्साहवर्धक है। इससे आप एक बार फिर मीडिया में सुर्खियाँ बटोरने लगी हैं।
गौरतलब है कि औधौगिक घरानों पर गंभीर हमले करने के कारण अरविंद केजरीवाल को काफी फजीहत झेलनी पड़ी थी। इससे खफा ज्यादातर मीडिया घरानों के उधोगपति मालिकों ने जब लगाम खींची तो केजरीवाल मीडिया स्क्रीन और प्राइमटाईम पैनल से आउट हो गये। यहाँ तक की दिसंबर गैंगरेप पर आप के तीखे विरोध प्रदर्शनों का मीडिया ने संज्ञान नहीं लिया।
दिल्ली की वृहद जे.जे. कालोनीयों की समस्याओं को प्रमुखता से लेकर टीम केजरीवाल ने बेहतरीन राजनीतिक चाल चली है। अक्टूबर की तीसरे सप्ताह मेरे वरिष्ठ सहयोगी कमलेश कुमार से बातचीत में अरविंद ने स्वीकार किया कि भ्रष्टाचार का मुद्दा हमारे-आपके लिए(मध्यम वर्ग) महत्वपूर्ण है और आप के लिए रहेगा, परंतु दिल्ली की 70 सीटों में 20 से अधिक सीटों पर झुग्गी-झोपड़ी में बसर कर रहे लोगों की समस्या दैनंदिनी से जुड़ी है और वहाँ यही वोट निर्णायक है। यहाँ पीने के पानी की समस्या हर बर्ष बढ़ रही है। गर्मियों में टैंकर से पानी सप्लाई की जाती है जो नाकाफी होती है और मामला हिंसक तक हो जाता है। ऐसी कालनियों में शादी-पंडाल के लिए कोई स्पेश नहीं है। पिछले कुछ बर्षों में इन कालोनियों में बिजली तो दे दी गई परंतु खराब मीटर के कारण इन्हें बिजली के दोगूने-तीगूने दाम चुकाने पड़ रहे हैं।
दूसरी तरफ दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जो लगातार केजरीवाल को नकारती आ रहीं थी, पिछले महीने स्वीकार किया की केजरीवाल ने दिल्ली की राजनैतिक जमीं में अपनी उपस्थिति तो दर्ज कर ही ली है। आप फैक्टर का असर भारतीय जनता पार्टी पर भी साफ देखा जा सकता है। भ्रष्टाचार और लोकजनपाल की पृष्ठभूमि से उभरे केजरीवाल की दस्तक ने भाजपा को अपना मुख्यमंत्री दावेदार बदलने पर मजबूर कर दिया। अंतिम क्षणों में विजय गोयल का नाम रेस से बाहर किया गया और एक स्वस्थ छवि के डा. हर्षवर्धन को सामने लाया गया।
शाजिया इल्मी ने नकारा मुस्लिम चेहरा
आप की प्रमुख कार्यकर्ता शाजिया इल्मी कांग्रेस की उम्मीदवार वर्तमान विधायक और बरखा सिंह का सामना करेंगी। मुस्लिम चेहरे का फायदा मिलेगा इसका इल्म तो शाजिया को भी होगा परंतु पारंपरिक सियासत को दरकिनार कर उन्होंने पोश आर.के.पुरम से खड़े होने का मन बनाया। वैसे दिल्ली की सात विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम वोटरों की बड़ी संख्या चुनावों परिणामों की करवट बदलने करने का दंभ रखती हैं। इसतरह देखें तो इल्मी मटियामहल, बल्लीमारन या फिर ओखला जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों से सुरक्षित खड़ी हो सकती थी, परंतु उन्होने विपरीत परिस्थिति को चुनौती के रूप में लिया। अरविंद ने उनके निर्णय में हामी भी भरी। अब परिणाम चाहे जो हो इतना तो तय है कि आप ने चुनौतीयों को आगे बढ़कर सामना किया है। यह तो कोई नहीं जानता की भविष्य के गर्भ में क्या हैं परंतु अगर हालिया चुनाव सर्वेक्षणों से दिगर अरविंद को कम सीटें भी मिलती हैं तो उसके राजनैतिक लाभ उन्हें आगे मिलेंगे यह निश्चित है।