यूं तो कर्ज देने वाले बैंक उसे वसूलने के तरीकों को लेकर खूब बदनाम रहे हैं, लेकिन एक बैंक ऐसा निकला जो 3.5 करोड़ रुपए का कर्ज देकर भूल गया। लगभग 10 साल बाद उसे इसकी याद आई।
आपको शायद इस बात पर विश्वास न हो लेकिन यह सच है। ऐसा हुआ है नागपुर के अकोला अर्बन कोऑपरेटिव बैंक में, जहां पिछले 10 साल में 30 बार ऑडिट हुआ लेकिन इस धोखाधड़ी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला।
बैंक के लोन मैनेजर केके प्रसाद और वरिष्ठ प्रबंधक ओटी राठी ने इस ऋण का कोई विवरण कहीं भी दर्ज नहीं किया था।
इन दोनों अधिकारियों के पिछले साल सेवानिवृत्त होने के बाद इतने बड़े जालसाजी का पता चला। बैंक ने प्रसाद और राठी समेत ऋण लेने वालों के खिलाफ शिकायत की है।
ऋण लेने वाले नंदकिशोर, जुगलकिशोर और संतोष कोठारी ने अंतरिम जमानत के लिए अकोला सत्र न्यायालय में अपील की, लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया।
इन तीनों के वकील राजेंद्र डागा ने बताया कि 2000 में इन लोगों ने 3.75 करोड़ रुपए के ऋण के लिए आवेदन किया था। जून 2002 में बैंक ने 3.5 करोड़ रुपए ऋण दिए। इस साल के ऑडिट रिपोर्ट में पता चला कि फरवरी 2013 तक उन्होंने ऋण का कोई भी किस्त नहीं दी।
इसके बाद बैंक ने 30 अप्रैल को आरोपियों को 20 करोड़ रुपए का भुगतान करने का नोटिस दे दिया। इस पर कोठारी भाइयों ने बैंक को अपनी जायदाद कुर्क कर पैसे वसूल करने की बात कही। इस पर बैंक ने पुलिस से शिकायत की।