सात हजार करोड़ खर्च के बावजूद गंगा मैली

ganga-river-pollution-yamuna-5251a2e325fb3_exlगंगा को पांच साल पहले राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया। गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण भी बनाया गया। तब से लगभग 7000 करोड़ रुपये भी राज्यों को दे दिए गए लेकिन आज भी कोई नहीं कह सकता कि गंगा मैली नहीं है।

यूपीए सरकार ने 4 नवंबर 2008 को गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था। फरवरी 2009 में प्राधिकरण भी गठित कर दिया। लेकिन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले इस प्राधिकरण की तब से मात्र तीन बैठकें हो पाईं।

इसकी एक बड़ी वजह उत्तराखंड की पनबिजली परियोजनाओं को लेकर सरकार और पर्यावरणविदों के बीच तनातनी है।

सरकार के इस रवैये से नाराज होकर प्राधिकरण की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह कहते हैं कि बगैर ठोस कार्ययोजना के ही सरकार ने सात हजार करोड़ रुपये राज्यों के हवाले कर दिए।�

उन्होंने अमर उजाला से कहा कि हिंदुओं का वोट पाने के लिए सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा तो दे दिया लेकिन उसे निर्मल बनाने के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करना तो दूर नियमित बैठकें तक नहीं बुलाईं।

दरअसल, प्राधिकरण में शामिल ज्यादातर पर्यावरणविद चाहते हैं कि गंगा पर सभी पनबिजली परियोजनाओं पर ताला लगा दिया जाए। जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद तो लगातार आंदोलन पर हैं।

जबकि सरकार लोहारी नागपाला समेत तीन बड़ी परियोजनाओं को पहले ही बंद कर चुकी है। ये पर्यावरणविद मैदानी क्षेत्रों मसलन मुरादाबाद आदि में मैली होती गंगा को लेकर खामोश रहते हैं।

कितना जहरीला ? 

केंद्र सरकार की तमाम रिपोर्टें गवाह हैं कि गंगा और उसके तटीय क्षेत्रों का भूजल लगातार जहरीला होता जा रहा है। गंगा में आर्सेनिक जैसे विषैले तत्व की मात्रा लगातार बढ़ रही है।

गंगा की सहायक नदियों यमुना, रामगंगा, चंबल, गोमती-घाघरा, टोंस-कर्मनासा, गंडक-बूढ़ी गंडक, सोन, कोशी और महानंदा आदि नदियों का भी यही हाल है। मुरादाबाद से आगे गंगा का पानी पीने योग्य नहीं है।