वालमार्ट और भारती समूह का नाता टूटने से मल्टीब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है।
इससे न सिर्फ एफडीआई नीति सवालों के घेरे में आ गई है बल्कि सरकार पर नियमों में ढील देने का दबाव भी बढ़ गया है।
हालांकि, सरकार किसी खास कंपनी के लिए नियमों में ढील न देने के रुख पर कायम है, लेकिन मल्टीब्रांड में हुए नुकसान की भरपाई ई-कॉमर्स से की जा सकती है। इस क्षेत्र में एफडीआई के दरवाजे खुलने के आसार बढ़ गए हैं।
वाणिज्य मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वालमार्ट के फैसले के बाद चुनाव से पहले मल्टीब्रांड रिटेल में किसी बड़े निवेश की उम्मीद नहीं है। लेकिन इसके पीछे असल वजह एफडीआई की शर्तें नहीं बल्कि राजनैतिक अनिश्चितता है।
कंपनियों को भरोसा नहीं है कि लोकसभा चुनाव के बाद मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई की छूट जारी रहेगी या नहीं।
वालमार्ट के बदले रुख के बावजूद सरकार 30 फीसदी स्थानीय खरीद और 50 फीसदी निवेश बुनियादी ढांचे में करने जैसी शर्तों में ढील देने का तैयार नहीं है। लेकिन मल्टीब्रांड की भरपाई ई-कॉमर्स के जरिए करने के रास्ते जरूर तलाशे जा रहे हैं।
औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने ई-कॉमर्स में एफडीआई की संभावनाएं तलाशने का जिम्मा थिंक टैंक इक्रियर को सौंपा है।
इसके अलावा आईटी कंपनियों के संगठन नास्कॉम के साथ भी ई-रिटेल और ई-कॉमर्स में एफडीआई से जुड़े मुद्दों पर बातचीत चल रही है। फिलहाल ई-कॉमर्स में एफडीआई पूरी तरह प्रतिबंधित है।
लेकिन भारत में फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसे ई-कॉमर्स के कई कामयाब वेंचर हैं, जो विदेशी निवेशकों को लुभा सकते हैं। अमेरिका के दिग्गज ई-कॉमर्स स्टोर अमेजन डॉट कॉम और ई-बे भी भारत में निवेश के इच्छुक हैं।