नई दिल्ली। खजाने की खस्ता हालत से राजकोषीय घाटे पर पड़ रहे दबाव को कम करने के लिए सरकार ने खर्च में कमी के साथ साथ राजस्व बढ़ाने को संसाधन के नए स्त्रोत भी तलाश लिए हैं। कर राजस्व में बहुत अधिक वृद्धि की गुंजाइश न देख वित्त मंत्रालय ने अब गैर कर राजस्व पर उम्मीदें टिका दी है। इसके तहत मंत्रालय ने सार्वजनिक उपक्रमों से मिलने वाले लाभांश का लक्ष्य बढ़ा दिया है।
चालू वित्त वर्ष में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बजट में सार्वजनिक उपक्रमों से 738 अरब रुपये का लाभांश लेने का लक्ष्य रखा था। मगर खजाने पर सब्सिडी और सस्ते रुपये के चलते कच्चे तेल के आयात के दबाव ने वित्त मंत्री के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। हालांकि, चालू साल में वित्त मंत्री के सामने राजकोषीय घाटे से बड़ी चुनौती चालू खाते के घाटे को काबू में करने की थी। मगर राजस्व में कमी और अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी रहने के चलते राजकोषीय घाटा फिर से उनके केंद्र में आ गया है।
इस साल वित्त मंत्री ने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.8 फीसद यानी 5,42,499 करोड़ रुपये पर सीमित रखने का लक्ष्य तय किया था। मगर वित्त वर्ष के शुरुआती पांच महीने में ही सरकार का राजकोषीय घाटा अपने लक्ष्य के 74 फीसद तक पहुंच चुका है। अगस्त तक राजकोषीय घाटे का आंकड़ा 4,04,651 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।
खजाने की इस हालत को देखते हुए वित्त मंत्री ने सार्वजनिक उपक्रमों से ज्यादा लाभांश लेने का फैसला किया है। बजट में तय 738 अरब रुपये के लक्ष्य को बढ़ाकर 793 करोड़ रुपये कर दिया गया है। बीते साल 554 करोड़ रुपये का लाभांश सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों से लिया था। इस तरह इसमें करीब 30 फीसद की वृद्धि होगी। चुनिंदा सार्वजनिक उपक्रमों के पास चालू वित्त वर्ष में करीब 1.80 लाख करोड़ रुपये की नकदी का भंडार है। वित्त मंत्री न केवल इसका इस्तेमाल अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिए करना चाहते हैं बल्कि उनसे ज्यादा लाभांश लेकर अपने खजाने की सेहत भी सुधारना चाहते हैं।