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‘मुझे मेरे पति की गिरफ्तारी पर कोई अफसोस नहीं’

suresh-rana-523d460ff0a2b_exlविधायक सुरेश राणा की गिरफ्तारी पर उनकी पत्नी नीता ने प्रदेश सरकार को कोसते हुए कहा कि उन्हें अपने पति की गिरफ्तारी पर अफसोस नहीं गर्व है।

विधायक की गिरफ्तारी के बाद अपने घर पर मौजूद उनकी पत्नी नीता राणा ने बताया कि उन्हें अपने पति की गिरफ्तारी की खबर टीवी से मिली।

खबर देखने के बाद उन्होंने उनके मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन नहीं हो सका। वह लखनऊ में रहते हुए सदन में जाने से पहले अक्सर उनसे मोबाइल पर बात करते हैं।

शुक्रवार सुबह करीब नौ बजे उनसे बात हुई थी और उन्होंने सदन जाने की बात उनसे कही थी इसके बाद उनसे संपर्क नहीं हुआ।

समर्थकों ने जताई नाराजगी
उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके यहां कार्यकर्ताओं उनके शुभचिंतकों के लगातार फोन आ रहे हैं, सब नाराज हैं और उन्होंने अपनी नाराजगी दिखानी भी शुरू कर दी है।

नीता ने प्रदेश सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार पूरी तरह एकपक्षीय कार्रवाई कर रही है। उसके इसी रवैये के कारण ही लोगों में अंदर ही अंदर आक्रोश पनप रहा है।

उन्होंने कहा कि कवाल कांड के बाद जिस समुदाय ने पहले पंचायत की उस पक्ष के लोगों को क्यों नहीं पकड़ा गया पहले तो उन्हें ही गिरफ्तार किया जाना चाहिए था? स्टिंग आपरेशन में जिस मंत्री का नाम आया है उसपर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

नीता ने कहा कि उनके पति कि सी गलत काम में गिरफ्तार नहीं हुए हैं उनकी गिरफ्तारी पर उन्हें अफसोस नहीं गर्व है। वहीं उनके पिता रणवीर सिंह ने भी कहा कि उनके बेटे ने कुछ गलत नहीं किया, सरकार एकतरफा कार्रवाई कर रही है, जनता खुद इसका जवाब देगी।

जलालाबाद आंदोलन से सुर्खियों में आए थे राणा
पेशे से भट्ठा व्यवसायी सुरेश राणा 1997-98 में जलालाबाद में धार्मिक स्थल की प्रतिमा क्षतिग्रस्त करने को लेकर चलाए गए अपने आंदोलन से सुर्खियों में आए और उनकी छवि एक हिंदूवादी नेता के रूप बनी।

2007 में पार्टी के टिकट पर चुनाव हारने के बाद 2012 के चुनाव में 20 साल बाद थानाभवन में भाजपा का भगवा लहराया। विधायक सुरेश राणा किसान परिवार से जुडे़ हैं। उनके पिता रणवीर सिंह साधारण किसान हैं।

ग्रेजुएट विधायक ने हरिद्वार में रहकर पढ़ाई की और वहीं से उन्हें राजनीति का शौक भी चढ़ा। क्षेत्र में उन्होंने ईट भट्ठे का व्यवसाय भी शुरू किया।

आरएसएस से उनका बेहद जुड़ाव था और इसी के जरिए वह धीरे-धीरे भाजपा नेताओं के संपर्क में आए। 1997-98 में जलालाबाद कस्बे में एक धार्मिक स्थल की प्रतिमा तोड़ने की घटना के बाद से वह सुर्खियों में आए।

हिंदूवादी नेता की छवि बनी
इस घटना के बाद सुरेश राणा ने आगे आकर पुलिस प्रशासन के खिलाफ जमकर धरना-प्रदर्शन किया। एक विशाल हिंदू महापंचायत का आयोजन किया गया। इस आंदोलन के चलते प्रशासन ने क्षतिग्रस्त प्रतिमा को दोबारा लगवाया।

इसके बाद से उनकी छवि एक हिंदूवादी नेता के रूप में बन गई थी। इसी आंदोलन से वह भाजपा के बड़े नेताओं की नजरों में आए और इसके बाद वह भाजपा के बड़े आयोजनों में शामिल होने लगे।

2007 के विधान सभा चुनाव से पहले भाजपा ने उन्हें मुजफ्फरनगर का जिलाध्यक्ष बना दिया जिसके बाद उन्होंने पार्टी के कई बडे़ धरने-प्रर्दशन कराए इसका नतीजा हुआ कि भाजपा ने 2007 के विधान सभा चुनाव में उन्हें थानाभवन से पार्टी का टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गए और तीसरे नंबर पर रहे, लेकिन इसके बाद भी पार्टी का उन पर भरोसा रहा।

क्षेत्र में सक्रिय होने ओर इस इलाके में उनकी टक्कर का कोई मजबूत नेता न मिलने पर भाजपा ने 2012 के विधान सभा चुनाव में उन्हें फिर से पार्टी टिकट दिया।

उन्होंने इस सीट पर रालोद के अशरफ अली को 265 मतों से हराकर 20 साल बाद इस जीप पर भाजपा का परचम लहराया इससे पहले 20 साल पूर्व जगत सिंह ने भाजपा के टिकट पर यहां से जीत हासिल की थी।

NCR Khabar News Desk

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