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भारत के गरीब इंसान सोच.. जरा सोच.. धर्म रोजी-रोटी है वह भी ईमानदारी की मेहनत की।

समाजवार्दी के लेपटाप वितरण के बाद यूपीए सरकार ने 2.5 करोड़  यूपीए सरकार  गरीबों में बांटने की घोषणा की है। कितना बड़ा दुर्भाग्या है इस भारत वर्ष के गरीब की, कि सरकार ही जब भिखारी बनाने पर तुली हो तो बेचारा गरीब करे भी तो क्या करे? रोटी, कपड़ा और मकान तो ये सरकार इन 66 सालों में दे नहीं सकी, परन्तु गरीब से उसे भिखारी बनाने की मुहिम में वह जरूर कामयाब होते दिखाई दे रही है। इस देश में मोबाइल और लेपटाप की जरूरत नहीं है। रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा चाहिए। यदि गरीबों को फीस, किताबों और स्कूल की फीस का बोझ सरकार उठा ले। रोजगार की गारन्टी पर बेरोजगारी भत्ता सरकार दे दे। हाॅस्पिटल में इलाज ये सरकार दे तो कुछ बात बने। लेकिन ऐसी घोषणाओं से यूपीए पार्टीयों के दिमागी दिवालियापन साफ दिखाई देता है। आज हर गरीब गांवो से शहर की तरफ पलायन कर रहा है। गांधी के सपने को ये कांग्रेस अगर सच करना चाहती तो भारत का इन 66 सालों में इतनी ज्यादा गरीबी का मापदण्ड नहीं देखना पड़ता है। भ्रष्टाचार की हद देखो, यदि एक सरकारी चतुर्थ कर्मचारी, क्लर्क, आफिसर अपनी तनखाह में करोड़ों की सम्पति और अपने बच्चो को लाखों रूपये की डोनेशन के अलावा बैंकों में रूपयों की हैसियत रखता है तो इसका अदांजा इस बात से लगता है कि नेताओं और व्यापारियों का क्या हाल होगा। लेकिन ईमानदारी से जीने वाला आम इंसान आज के दौर में दो वक्त की रोटी, कपड़ा और मकान के सपने ही देख ही रहा है। हाय रे मेरे भारत तू कितना महान… इन झूठे वादों और खोखली घोषणाओं में फिर गरीब लोभ कर बैठेगा और ये राजनैतिक लोग फिर पांच साल के आसन जमा लेंगें। हे भारत के गरीब इंसान सोच.. जरा सोच.. धर्म रोजी-रोटी है वह भी ईमानदारी की मेहनत की।

जे. पी. बिष्ट

NCR Khabar News Desk

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