रेल इंजन भी चलेंगे गैस से
नई दिल्ली।े कोयला आधारित बिजली और डीजल की बढ़ती लागतों व प्रदूषण को देखते हुए रेलवे अन्य ईधन विकल्पों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है। इस कड़ी में उसे एलएनजी (तरल प्राकृतिक गैस) में संभावनाएं दिखाई दी हैं। रेलवे के इंजीनियर इन दिनों एलएनजी से चलने वाले इंजनों के विकास में जुटे हैं।
रेलवे के लखनऊ स्थित अनुसंधान, विकास एवं मानक संगठन में इन दिनों एलएनजी इंजन के प्रोटोटाइप पर काम हो रहा है। एक बार यह विकसित हो गया तो शुरू में कम से कम 20 इंजनों का निर्माण किया जाएगा। यदि ये कामयाब रहे तो आगे चलकर डीजल इंजनों की जगह इनका प्रयोग बढ़ाया जाएगा। डीजल व बिजली के मुकाबले एलएनजी न केवल सस्ती है, बल्कि इससे प्रदूषण भी न के बराबर होता है। इसके उपयोग से रेलवे को खर्च में कमी के अलावा कार्बन क्रेडिट का लाभ भी मिल मिलेगा।
एक अनुमान के अनुसार एलएनजी के इस्तेमाल से रेलवे के ईधन खर्च में 50 फीसद तक की कमी आएगी। अभी डीजल पर 16 हजार करोड़ रुपये और बिजली पर 9,000 करोड़ रुपये को मिलाकर ईधन पर रेलवे का कुल सालाना खर्च 25 हजार करोड़ रुपये है। इस तरह एलएनजी के प्रयोग से साढ़े 12 हजार करोड़ रुपये तक बच सकते हैं।
देश में अभी हर वर्ष तकरीबन 8.10 करोड़ टन एलएनजी की खपत होती है। फिलहाल रेलवे में एलएनजी खपत शून्य है। यदि वह अपने सभी इंजनों में इसका इस्तेमाल करने लगे तो उसकी खपत कुल खपत का मात्र 2.2 फीसद होगी। जहां तक उपलब्धता का सवाल है तो भारत में तकरीबन 1,241 अरब घन मीटर परंपरागत प्राकृतिक गैस (इसका तरलीकृत रूप एलएनजी है जिसे किलोग्राम में मापा जाता है) का भंडार है। इसके अलावा 7,462.5 अरब घन मीटर शेल गैस और 1,890 खरब घन मीटर गैस हाइड्रेट्स का भंडार भी है। दूसरी ओर विश्व स्तर पर अपने शेल गैस भंडारों की बदौलत अमेरिका और कनाडा प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े निर्यातक बन कर उभरे हैं। गैस का आयात करने के लिए भारत देश के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर गैस टर्मिनलों का विकास करने में जुटा है। इन सभी टर्मिनलों को रेल लाइनों से जोड़ा जा रहा है। भविष्य की इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर रेलवे ने अभी से एलएनजी इंजनों का विकास शुरू कर दिया है।