राहुल के राजनीतिक बम से सकते में सरकार

manmohan-singh-5240826a710db_exlसजायाफ्ता सांसदों और विधायकों को बचाने को लेकर लाए गए अध्यादेश पर राहुल गांधी के बयान से केंद्र सरकार सकते में आ गई है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा है कि अध्यादेश के मुद्दे पर राहुल ने उन्हें चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने बताया कि वे इस मुद्दे पर अमेरिका से लौटकर चर्चा करेंगे।

गौरतलब है कि आज मी‌डिया से बातचीत में कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने अध्यादेश के मुद्दे पर कहा कि ये बिल्कुल बकवास है, इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।

राहुल ने कहा, ‘भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हर पार्टी ने समझौता किया है, जब तक हम दागियों को बचाना बंद नहीं करते, भ्रष्टाचार खत्‍म नहीं किया जा सकता।’

हालांकि राहुल ने कहा कि ये उनके निजी विचार हैं लेकिन सरकार का फैसला ठीक नहीं है और कांग्रेस ‌अध्यादेश के पक्ष में नहीं है।

राहुल के बयान पर कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा कि अध्यादेश के मुद्दे पर ये राहुल और कांग्रेस की निजी राय है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सजायाफ्ता सांसद और विधायक को बचाने के लिए हाल ही में एक बिल पास किया है।

ये‌ बिल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलटने के लिए पास किया गया, जिसमें उसने दो साल या उससे ज्यादा की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों दोषी करार दिए जाने की तिथि से ही अयोग्य माने जाने की बात कही थी।

 
इस अध्यादेश के पास होने पर सजायाफ्ता सांसद और विधायक न केवल चुनाव लड़ सकेंगे, बल्कि उनकी सदस्यता भी बनी रहेगी। भाजपा ने अध्यादेश का तीखा विरोध किया था। और राष्ट्रपति से मुलाकात कर इस पर दस्तखत न करने की अपील की थी।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी गुरुवार को अध्यादेश पर सवाल उठाया था। कांग्रेस के कई सांसद भी अध्यादेश को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

‘अवहेलना झेलने से अच्छा पीएम दे दें इस्तीफा’
इधर राहुल गांधी की ओर से दागी सांसदों से जुड़े अध्यादेश का विरोध करने पर प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार ने उन्हें इस्तीफा दे देने को कहा है।

मनमोहन के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने कहा है कि राहुल ने जिस तरह अध्यादेश का विरोध कर उनकी अवहेलना की है, उसमें प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। अब सारी हदें पार हो चुकी हैं। लिहाजा पीएम के पद पर बने रहने का कोई मतलब नहीं है।

उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह पीएम की अवहेलना का मामला है। जिस तरह कैबिनेट के फैसले को बकवास करार दिया गया है और अध्यादेश को रद्दी की टोकरी में फेंकने के लिए कहा गया है, उससे पूरी तरह अवहेलना झलकती है।

इस तरह के फैसले अमूमन पार्टी से सलाह-मशविरा के बाद लिये जाते हैं। इसे बेकार बताने का सीधा मतलब नाफरमानी ही है।