एक चैनल के स्टिंग आपरेशन ने मुजफफरनगर दंगे में सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई में सियासी दखल की जो चर्चा अभी तक ढके-छिपे चल रही थी, वह अब मुखर हो गई है।
इसके साथ ही सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर ऊपर से किसका फोन आया था जिसकी वजह से पकड़े गए दंगाइयों को छोड़ना पड़ा।
हालांकि, डीजीपी देवराज नागर ने इस पूरे मामले को खारिज करते हुए इसे सरकार के खिलाफ साजिश बताया।
चैनल के स्टिंग आपरेशन में सीओ और एसडीएम से लेकर हिंसा प्रभावित क्षेत्र के थानों के प्रभारियों तक से बातचीत दिखाई गई। इसमें सभी ने यह स्वीकार किया कि दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर उन पर दबाव था।
अधिकारियों ने यहां तक कबूल किया कि जब शुरूआती दौर में तीन हत्याएं हुई थीं तब उन्होंने कई लोगों को पकड़ था जिसमें मुल्जिम भी शामिल थे, लेकिन ऊपर से आए फोन की वजह से उन्हें कुछ ही घंटों में छोड़ना पड़ा।
मातहतों ने जो बोला उससे जाहिर हुआ कि दबिश देने की हिमाकत करने वाले जिलाधिकारी और एसएसपी को हटाया गया और नए अफसरों ने आकर जांच की दिशा ही बदल दी। इसके बाद मातहतों के हाथ बंध गए और उनकी कार्यप्रणाली भी बदल गई।
स्टिंग में जो तथ्य सामने आए उनसे तो यही जाहिर होता है कि सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने से अधिकारियों को रोका, जिसकी वजह से हिंसा कई दिनों ताक जारी रही और कई लोगों की मौत हुई।
मातहतों के इस खुलासे पर जब डीजीपी डीआर नागर से पूछा गया तो उन्होंने साफ इन्कार किया कि किसी का कोई फोन नहीं गया था और यह सरकार को बदनाम करने की साजिश है।
डीजीपी ने कहा कि जिले में तैनात पुलिस अफसरों को किसी ने भी दंगाइयों के पक्ष में कार्रवाई करने को नहीं कहा। जो ऊपर से किसी का फोन आने की बात कही जा रही है उसमें सच्चाई नहीं है।