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NCRKhabar Sunday Exclusive: नोएडा से ग्रेटर नोएडा तक मानहानि और शांतिभंग के मुकदमे बने आम बायर्स के खिलाफ बिल्डर का प्रमुख दांव, योगी जी कहां जाए आम आदमी, क्या हो उपाय ?

उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन जहां एक और प्रदेश में इस साल हुए यूपी इन्वेस्टर्स ग्लोबल सम्मिट 23 में लगभग 35000 लाख करोड़ के एमओयू साइन होने से खुशी मना रहा है वही उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी में आम उपभोक्ता सत्ता की हनक और कानून के दुरुपयोग के बलबूते बिल्डर्स से ना सिर्फ परेशान हैं बल्कि अपनी परेशानियों के लिए प्रदर्शन करने के बाद मानहानि के मुकदमे और कूटनीति के तहत शांति भंग की धारा 107/ 16 में फंसा दिए जाते हैं ।

क्या सारे नियम कायदे निवासियों के लिए है बिल्डर्स के ऊपर कोई नियम कायदा नहीं चलता है, हम निवासीगण हर दिन बिल्डर्स के बद्तमीजियो और गैरकानूनी गतिविधियों से हर दिन घुट-घुट कर डर के साये में जी रहे हैं कि कभी भी लिफ्ट खराब हो सकती है, कभी भी आग लग सकती हैं कभी भी बिजली कट सकती है है लेकिन अगर बिल्डर और मेंटेनेंस टीम से सवाल कर दिया या समाधान मांग लिया तो तुरंत बिल्डर्स पुलिस कंप्लेन कर देंगे अन्यथा मानहानि का केस कर देंगे, गजब गुंडागर्दी चल रही है बिल्डरो की….

सोशल मीडिया पर लिखा एक बायर ने अपने दिल का दर्द

2 दिन पहले सत्ता के संरक्षण के आरोप लगाते हुए एक ऐसे ही प्रकरण समाचार सोशल मीडिया पर काफी चर्चित हुआ । जब ग्रेटर नोएडा वेस्ट की एक सोसाइटी के बिल्डर ने सोसाइटी में पानी और इंटरनेट की मांग को लेकर किए गए प्रदर्शन के बाद उनमें से एक व्यक्ति को मानहानि का नोटिस यह कहते हुए भेज दिया किस तरह के प्रदर्शन से उनके क्लाइंट की रेपुटेशन को धक्का पहुंचा है । नोटिस के बाद जहां सोसाइटी में बायर्स एसोसिएशन के नेताओं ने स्थानीय चौकी इंचार्ज पर सोसाइटी में सभा की भी परमिशन ना देने के आरोप लगाए हैं वहीं यह भी कहा जा रहा है कि बिल्डर सत्ता पक्ष के राजनेताओं के पारिवारिक सदस्य हैं इसलिए उनके खिलाफ पुलिस भी एक्शन लेने से बच रही है । हालात ये हो गए है कि बिल्डर के शह पर उनके साथ जुड़े लोग भी पुलिस केस में फसाने की धमकी तक दे डालते है ।

नोएडा में बिल्डर और नेताओ के कॉकटेल का खेल है पुराना

नोएडा में बिल्डर और नेताओं के कॉकटेल का खेल कोई नया नहीं है सर्वविदित है कि किसी भी बढ़ते शहर में कोलोनाइजर, भूमाफिया और बिल्डर्स के गैरकानूनी कामों को शह सत्ता पक्ष के नेताओं के संरक्षण के बिना रह नहीं मिलती है और नोएडा में भी बीते 15 सालों से ऐसा होता आया है वर्तमान सरकार के आने के बाद स्थिति बदली जरूर है मगर उसको पूर्ण परिवर्तनीय नहीं कहा जा सकता है सत्ता बदली तो बिल्डर्स ने अपने नेता भी बदल लिए हैं । लेकिन इस खेल में बिल्डर्स ना तो फ्लैट बायर्स को उनका फ्लैट देने को राजी हैं ना ही प्राधिकरण को उनका पैसा देने को राजी हैं और ना ही जो फ्लैट डिलीवर हो चुके हैं उनमें लोगों को सुविधाएं देने को राजी है ।

ये बिल्डर्स सोसाइटी में आम सुविधाओं के लिए एक ही वेंडर देने की जिद करते है जो भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून का सीधा उलंघन होता है । माना जाता है केबल टीवी, इंटरनेट जैसी सुविधाओं के लिए वेंडर्स से पैसे लिए जाते है ताकि दूसरे वेंडर्स ना आ पाए ।

सत्ता का संरक्षण और कानून का दुरुपयोग बिल्डर के लिए आम बात है और बायर्स के पास कोई विकल्प नहीं है, नोएडा में कहा जाता है सत्ता मैं अगर कोई कनेक्शन सेट हो जाए तो फिर बिल्डर की पौ बारह हो जाती है । बिल्डर्स पर प्राधिकरण से तमाम नोटिस भेजे जाते है लेकिन एक अदृश्य शक्ति के चलते बिल्डर बेखौफ अपना खेल खेलते रहते है । वहीं बायर्स के खिलाफ बिल्डर के पास कानूनी जानकारों की एक बड़ी फौज होती है जिसका काम बिल्डर्स के गलत हरकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे आम बायर्स को कानूनी मामलों में फंसाने की पूरी रणनीति होती है जिनमें आमतौर पर मानहानि का मुकदमा प्रमुख है ।

एक अदद फ्लैट की लड़ाई के लिए बायर्स के खिलाफ मानहानि का केस बिल्डर का प्रमुख हथियार

नोएडा ग्रेटर नोएडा में कितने ही लोगों को मानहानि के मुकदमे के नोटिस के नाम पर डरा कर चुप बैठा दिया जाता है । लोग सड़कों से लेकर प्राधिकरण और नेताओं के दरवाजे पर चक्कर लगाते रहते हैं, जयकारे करते रहते हैं लेकिन उनको वहां से भरोसे के अलावा कुछ नहीं मिलता । क्योंकि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बीती सरकारों के समय 10 परसेंट पर दिए गए प्लॉट्स के बाद की रकम बिल्डर जमा नहीं करते हैं । प्राधिकरण उनसे रकम को वसूल नहीं पाता तो रजिस्ट्री नहीं होती है और बिना रजिस्ट्री के जब बायर्स प्रदर्शन करते हैं तो बिल्डर उनको मानहानि के नाम पर मुकदमों में फंसा देता है बीते दिनों जिस बिल्डर ने मानहानि का नोटिस एक बायर को भेजा है उसके बारे में लोगों ने बताया कि उसके हर प्रोजेक्ट में लगभग 3 से 5 लोगों को ऐसे नोटिस आये हैं जिसके बाद लोगो के पास हार कर चुप बैठे के अलावा कोई चारा नहीं होता है । और ये एक टेस्टेड फार्मूला है । और ये फार्मूला नोएडा ग्रेटर नोएडा के हर बिल्डर को पसंद आता है इससे जहां एक ओर बिल्डर अपने प्रोजेक्ट में फ्लैट संख्या बढ़ा देता है लेआउट में चेंज कर देता है वही विरोध करने वालों पर ऐसे मुकदमे लाद कर बड़ा फायदा उठा लेता है और इस फायदे में बिल्डर, प्राधिकरण के कुछ भ्रष्ट कर्मचारी और राजनेता सब बराबर शामिल रहते है ।

लोगो का कहना है कि समस्या के उलट बिल्डर आम आदमी को किसी तरीके का कोई समाधान देने को राजी नहीं है उसके उलट उनको मानहानि के मुकदमे में फंसाकर शायद प्राधिकरण को देने वाली रकम का इंतजाम करने में लगे हैं । वहीं कुछ लोगों के आरोप हैं कि ऐसी ही मानहानि के रुपया के जरिए बिल्डर नेताओं के खर्चों को मैनेज करते हैं। नोएडा में होने वाले किसी भी कार्यक्रम में आप बिल्डरों की सहभागिता बड़े पैमाने पर देख सकते हैं।

शांति भंग की धारा 107/16 है बिल्डर का दूसरा प्रमुख हथियार

वैसे तो शांति भंग 107/16 के बारे में कहा जाता है कि इसको पुलिस के द्वारा लगाया जाता है लेकिन अगर परिस्थिति ऐसी बना दी जाए कि पुलिस इसको अपनी आवाज उठाने वाले व्यक्ति पर भी लगा दे तो इसको इस धारा का दुरुपयोग ही कहा जाएगा कमिश्नरेट बनने के बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा में इस धारा के मुकदमों की संख्या तीव्र गति से बड़ी है नोएडा और ग्रेटर नोएडा के लगभग हर सोसाइटी में जिस भी व्यक्ति ने बिल्डर के खिलाफ आवाज उठाई है उनमें आधे से ज्यादा लोगो के खिलाफ शांति भंग के आरोप दर्ज हुए है । कहने को कानून में यह बहुत एक हल्की सी धारा है मगर इसमें व्यक्ति की अगले 6 महीने तक किसी भी तरीके के प्रदर्शन या हंगामा ना करने की बाध्यता हो जाती है साथ ही 6 महीने तक पुलिस के सामने उपस्थिति भी दर्ज कराना होता है बिल्डर अपने ही किसी सफाई कर्मचारी या गार्ड के साथ प्रदर्शन कर रहे बायर्स का एक झगड़ा उत्पन्न करा देते हैं और उसके बाद पुलिस आमतौर पर दोनों ही पक्षों को 107/16 में चालान कर देती है । इसमें बिल्डर का तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन व्हाइट कॉलर जॉब करने वाले किसी इंजीनियर, डॉक्टर या सरकारी कर्मचारी के ऊपर बड़ी बाध्यता आ जाती है ऐसे में लोगों के पास डरकर सेटलमेंट के अलावा और कोई चारा नहीं बचता और बिल्डर का लूट तंत्र चलता रहता है । ऐसे केस में फंसे कई नेताओं ने एनसीआर खबर से बात तो की लेकिन पुराने अनुभव के बाद सामने आने को तैयार नहीं होते है ।

रजिस्ट्री के लिए परेशान बायर्स पर प्राधिकरण की राय

बीते दिनों चंडीगढ़ में दिए बयान में नोएडा और ग्रेटर नोएडा के सीईओ ने कहा कि लगभग 3:50 लाख में से दो लाख के करीब फ्लैट की रजिस्ट्री हो चुकी है बाकियों के लिए बिल्डर से पैसा निकलवाया जा रहा है ऐसे में जो रायता इतने सालों में फैला है उसको समेटने में समय लग रहा है

बायर्स एसोसियेशन के एक नेता के अनुसार 2017 में नई भाजपा सरकार के आने के बाद लोगों को लगा था कि शायद इसमें परिवर्तन आएगा लेकिन जो परिवर्तन आया भी है वो ऊंट के मुंह में जीरा समान है । उससे लाखो बायर्स को अभी कोई फायदा नही मिला है

नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के वर्तमान सीईओ की बात समझ आती है लेकिन जिन लोगो को आज तक रजिस्ट्री पत्र नही मिला है उनके लिए ये रायता प्राधिकरण की समस्या नहीं नाकामी है सरकार की समस्या है । लोगो का स्पष्ट कहना है कि प्राधिकरण के सुचारू रूप से काम ना करना या उसके पिछले घोटाले का परिणाम वो क्यों भुगते ।

वहीं दो-दो प्राधिकरण के द्वारा एक सीईओ के द्वारा चलाया जाना भी लोगों को अखरता है नोएडा के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बीते दिनों एक लेख में लिखा कि अगर यमुना प्राधिकरण के सीईओ डॉ अरुण वीर सिंह को दो-दो बार एक्सटेंशन दिया जा सकता था तो बीते दिनों नोएडा से रिटायर हुए वरिष्ठ एसीईओ दीपचंद को ही सीईओ बनाकर ग्रेटर नोएडा को पूर्ण सीईओ दिया जा सकता था । आखिर ग्रेटर नोएडा के अनुभवी अधिकारी को ना लाकर एक अल्पकालिक सीईओ की नियुक्ति के पीछे औद्योगिक विकास,निर्यात प्रोत्साहन, एनआरआई निवेश प्रोत्साहन मंत्री नंद गोपाल गुप्ता की क्या योजना थी ये शायद ही कभी सामने आए । अगर बाहर से जायदा इन्वेस्टमेंट इसकी योजना थी तो उद्देश्य की सफलता के बाद ये काम अब भी किया जाए तो शायद नोएडा और ग्रेटर नोएडा के सीईओ जायदा जल्दी लोगो के फ्लैट का समाधान करवा पाए । क्योंकि बिल्डर्स की आम बायर्स पर कूटनीति से मुकदमे लगाने पर नकेल कसने के लिए जहां एक और दोनों प्राधिकरण ऊपर पूर्णकालिक सीईओ की नियुक्ति जरूरी है वही बिल्डर्स को मिलने वाले संरक्षण पर भी बुलडोजर चलना जरूरी है

NCRKhabar Mobile Desk

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