क्यों भूले नेताजी को

देश में तीन बड़ी रैलियां। धारदार भाषण। मुहावरों से युक्त भाषा। प्रहार और व्यंग्य। लोगों को लुभाने की आकर्षक शैली। एक दूसरे पर तंज। सब कुछ सुनने-देखने को मिला।
बनारस में सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह थे तो गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ की भूमि से नरेंद्र मोदी धारदार भाषण कर रहे थे। शिवसेना से उम्मीद नहीं होती कि महाराष्ट्र के बाहर कहीं रैली करे तो उद्धव ठाकरे की रैली मुंबई में ही हुई।
तीनों रैलियों में मजमा जमा। लेकिन मोदी ने ही सुभाष चंद्र बोस को याद किया। 23 जनवरी को उनकी जयंती थी। उन्हें श्रद्धासुमन के रूप में ये वक्ता उनका स्मरण कर सकते थे।
अपनी अपनी पार्टी के लिए मुहिम संभाल रहे बाकी दोनों वक्ताओं को तो नेताजी की याद नहीं रही। अमेठी में अपनी राजनीतिक विरासत को संभाल रहे राहुल गांधी हो या राहुल को चुनौती देने के लिए डोर टू डोर कैंपेनिंग करने वाले कुमार विश्वास किसी ने भी नेताजी का जिक्र करना मुनासिब नहीं समझा। और तो और संसद के केंद्रीय भवन में जयंती समारोह में भी लालकृष्ण आडवाणी को छोड़कर कोई मंत्री सांसद वहां नहीं पहुंचा।