उत्तराखंड में आपदा के 19 दिन बाद भी रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी जिले में राहत कार्य व्यवस्थित ढंग से नहीं चल पा रहा है।
कहीं राहत सामग्री पहुंच रही है, कहीं अब भी इंतजार है। बड़ी संख्या में लोग अब भी राहत से वंचित हैं। न ठीक से गांवों का आकलन किया जा सका है, न उनकी जरूरतों का।
जिन्हें टेंट की जरूरत है उन्हें बिस्कुट बांटे जा रहे हैं और जहां पानी की दिक्कत नहीं है वहां बोतलबंद पानी दिया जा रहा है। कई जगह तो शासन-प्रशासन का कोई नुमाइंदा अब तक नहीं पहुंचा। हाल यह है कि चमोली जिले की निजमुला घाटी में लोग अब भी उबले आलू खाकर भूख मिटा रहे हैं।
जवाब देने लगा धैर्य
रुद्रप्रयाग जिले में आपदा के वक्त फंसे तीर्थयात्रियों का सहारा बने तोषी (त्रियुगीनारायण), सीतापुर, गौरीकुंड गांव के लोग दाने-दाने को मोहताज हैं। सरकारी राहत की बाट जोह रहे ग्रामीणों का धैर्य भी अब जवाब देने लगा है।
लोग अब गांव छोड़कर श्रीनगर या अन्य जगह अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेने को मजबूर हैं। गुप्तकाशी के आपदा प्रभावित कालीमठ, जाल मल्ला, जाल तल्ला, देवर में केवल हफ्ते भर का राशन दिया गया।
उत्तरकाशी के आपदा प्रभावित डुंडा प्रखंड में कई परिवार स्कूल में शरण लिए हैं। प्रशासन यहां राहत के नाम पानी की बोतलें और बिस्किट देने गया, जिसे ग्रामीणों ने लौटा दिया।
राहत की तस्वीर का एक पक्ष यह भी है कि जहां तक सड़क पहुंची वहां जाकर सब कुछ बांट दिया, बाकी रामभरोसे।
चमोली जिले में गोविंदघाट से आगे लामबगड़ के लोग जंगलों में रात बिता रहे हैं। अलकनंदा का रुख अब गांव की ओर है।
लोगों को डर है कि कहीं नदी गांव को ही न बहा ले जाए। इन लोगों को तिरपाल, टैंट और रात बिताने के लिए अन्य जरूरी सामान की दरकार है।
जोशीमठ में ही एक यूथ हॉस्टल में भ्यूंदार और पुलना गांव के करीब 99 परिवार रह रहे हैं। इनकी तलाश एक अदद छत की है। यह जरूरत लामबगड़, भ्यूंदार, पुलना की नहीं, बल्कि बदरीनाथ और केदारनाथ घाटी के आपदा से घिरे कई गांवों की है।
विस्थापन की कगार पर माने जा रहे करीब सौ गांवों के लोगों के सामने समस्या यह है कि सुरक्षित स्थानों पर रात कैसे बिताई जाए।
राहत सामग्री टीम को लौटाया
उत्तरकाशी में भूधंसाव की जद में आए डुंडा प्रखंड के सौड़ गांव के ग्रामीणों ने राहत सामग्री लेकर गई प्रशासन की टीम को बैरंग लौटा दिया। आक्रोशित ग्रामीणों ने कहा कि हमें पानी-बिस्किट नहीं, सिर ढकने के लिए टेंट चाहिए।
यहां कुछ परिवार स्कूल भवन तो कुछ असुरक्षित भवनों में ही रहने को मजबूर हैं। प्रशासन की टीम छह पेटी मिनरल वाटर और बिस्किट लेकर गांव पहुंची। ग्रामीणों ने कहा, राहत देनी ही है तो आटा, चावल, दाल और सिर ढकने के लिए टेंट दें।
अस्थायी पुलों की जरूरत
रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकिनी के किनारे के संपर्क से कटे गांवों की पहली जरूरत संपर्क मार्ग और अस्थायी पुलों की है। अधिकतर गांव के लोग मुख्यालयों या फिर नजदीक के बाजार से कट गए है। यहां बिजली और संवाद की सबसे बड़ी समस्या है।
मद्महेश्वर घाटी में ही उनियाणा, राउं, नेक, रांसी जैसे गांव हैं जो मुख्य मार्ग से अलग हटकर हैं। इन गांवों के लोगों को रसद केसाथ ही तिरपाल आदि की जरूरत है। अगस्त्यमुनी केआसपास ही मंदाकिनी के दोनों तरफ बसे करीब 50 गांवों की भी यही व्यथा है।
अब तक बंद है 37 सड़कें
उत्तरकाशी जिले में 37 सड़कों के बंद होने से सैड़कों गांव अब भी अलग-थलग हैं। 17 जून की मूसलाधार बारिश से हुए भूस्खलन और भू-धंसाव सड़कें बंद होने से ग्रामीणों को मीलों पैदल चलना पड़ रहा है।
अगले 48 घंटे पड़ सकते हैं भारी
उत्तराखंड में अगले 48 घंटे खास सचेत रहने की जरूरत है। मौसम विभाग ने शुक्रवार को प्रदेश के कई इलाकों में गरज के साथ बारिश की आशंका के बीच चमोली में भारी बारिश की चेतावनी तो दी ही है, शनिवार छह जुलाई को भी पौड़ी जिले में भारी बारिश की संभावना जताई है।
यहां 60 से लेकर 80 मिलीमीटर तक बारिश हो सकती है। अन्य स्थानों पर 30 से 40 मिलीमीटर तक बारिश की संभावना है। गढ़वाल में कुछ क्षेत्रों में 40 से 65 मिलीमीटर तक बारिश भी हो सकती है। बृहस्पतिवार को भी प्रदेश के कई इलाकों में कहीं हल्की, कहीं तेज बारिश हुई।
भूमि आवंटन निरस्त करने के निर्देश
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून में एनसीसी, शिक्षा विभाग सहित अन्य लोगों को जलमग्न क्षेत्र में भूमि आवंटन निरस्त करने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने कहा है कि ये सभी लोग एक हफ्ते में स्वयं भूमि खाली कर दें अन्यथा 60 दिन के भीतर जिलाधिकारी भूमि खाली कराएं।
मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष एवं सर्वेश कुमार गुप्ता की संयुक्त खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। देहरादून नालापानी की पूर्व ग्राम प्रधान बीना बहुगुणा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि सरकार ने 2006 में मुनस्यारी धारचूला क्षेत्र के नीति तथा माणा गांवों के निवासियों के समाजिक कार्य कलापों के लिए नीतिमाणा कल्याण सोसायटी को देहरादून क्षेत्र में एक एकड़ भूमि आवंटित की थी।
यह भूमि जलमग्न और नदी क्षेत्र में थी। खंडपीठ ने टिप्पणी की कि ऐसी अनियमितताओं के कारण ही आपदा जैसी घटनाएं और जनहानि होती है।
सुनवाई के दौरान खंडपीठ के समक्ष यह तथ्य आया कि उस क्षेत्र में नीति माणा सोसायटी के अलावा एनसीसी एकेडमी तथा शिक्षा विभाग को भी भूमि आवंटित की गई है जिस पर उन्होंने अपने भवन बनाए हैं।