आपदा के शिकार गांवों में मनोवैज्ञनिकों ने जब बच्चों से पेंटिंग बनाने को कहा तो सब के सब ने जलप्रलय को सामने रख दिया। उन्होंने कागजों पर उकेरे-हेलीकॉप्टर, धंसकते पहाड़, उफनाई नदियां और चीखते-भागते, जान बचाते बदहवास लोग।
पहाड़ पर आए जलप्रलय ने बड़े-बूढ़ों को बर्बाद किया तो बच्चों के जीवन पर भी बेहद गहरा असर डाला है। आपदा झेलने वाले बच्चों के मन-मस्तिष्क पर इसकी छाप साफ नजर आती है।
चौंकाने वाले नतीजे आए सामने
बंगलुरू के मानसिक रोग संस्थान के मनोवैज्ञानिकों की टीम ने जब बदरीनाथ क्षेत्र के आपदा प्रभावित गांवों के बच्चों, बुजुर्गों से बातकर आपदा का उनके मन-मस्तिष्क पर पड़े असर को समझने की कोशिश की तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए।
पिछले करीब 15 दिनों से गांवों के ऊपर तीर्थयात्रियों के बचाव अभियान के हेलीकॉप्टर लगातार उड़ रहे हैं। गांवों में नदियां अपने बदले रुख के साथ उफना रही हैं। चिकित्सकों के मुताबिक इस त्रासदी का बालमन पर गहरा असर पड़ा और वे पैनिक डिसऑर्डर की चपेट में आ गए हैं।
पीड़ितों की मनो दशा पढ़ने की कोशिश
संस्थान के मनो चिकित्सक डा. शेखरी के नेतृत्व में डॉ. सुरेश बड़ानाथ और डॉ. रुपेश ने बदरीनाथ क्षेत्र के गांवों पांडुकेश्वर, हनुमान चट्टी, बेनाकुली, गोविंदघाट व लामबगड़ में आपदा पीड़ितों की मनो दशा पढ़ने की कोशिश की। टीम ने पाया कि बच्चों और महिलाओं के हृदय कोमल होने से उन्हें आपदा से गहरा सदमा पहुंचा है।
अप्रत्याशित घटना की यादें उनके मन में हमेशा के लिए घर कर जाती रहती है। टीम ने बच्चों से उनके मां-बाप के नाम पूछे तो उन्होंने जवाब देने में समय लिया। कुछ बच्चों को चिकित्सकों ने अपने पास बुलाया तो वे उनसे डरते हुए घर के अंदर चले गए। बच्चों में असुरक्षा की भावना घर कर रही है।
नियमित काउंसलिंग की जरूरत
मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. अजीत गैरोला ने बताया कि मनोचिकित्सकों की टीम एक सप्ताह तक प्रभावित गांवों में पीड़ितों की मनोदशा को लेकर रिपोर्ट तैयार करेगी। उन्होंने कहा कि उन्हें नियमित काउंसलिंग की जरूरत है। ऐसी घटनाओं से लोगों के व्यवहार में भी परिवर्तन आ जाता है।
सामान्य व्यक्ति के मन में असुरक्षा की भावना आ जाती है। इसलिए इन्हें अपने करीबियों और समूह के बीच रखा जाना जरूरी है। स्टडी रिपोर्ट शासन को भी दी जाएगी।