नक्सल विरोधी अभियान में लगी सुरक्षा एजेंसियों को सीपीआई (माओवादी) को मिल रहे विदेशी समर्थन संबंधी सनसनीखेज जानकारी हाथ लगी है।
एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक, नक्सलियों को जर्मनी, टर्की और फिलीपींस सहित 27 देशों के माओवादी संगठनों का समर्थन हासिल है।
इन सभी माओवादी संगठनों को वहां की सरकार ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। इनमें से कई संगठनों ने नक्सलियों को शहरी मध्यमवर्ग का विश्वास जीतने की रणनीति पर काम करने की सलाह दी है।
सुरक्षा एजेंसियों के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भारत में सीपीआई (माओवादी) के पोलित ब्यूरो के नंबर दो माने जाने वाले कटकम सुदर्शन ने अपने कैडर को लिखी चिट्ठी में विदेशी समर्थन का जिक्र किया है।
सुरक्षा बलों को यह चिट्ठी करीब दो महीने पहले छत्तीसगढ़ के गोलकुंडा में की गई छापेमारी के दौरान हाथ लगी थी। इस चिट्ठी के आधार पर खुफिया एजेंसियां विदेशी संबंधों की तहकीकात में जुटी हैं।
सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक कि 25 मई को छत्तीसगढ़ के सुकमा में कांग्रेसी नेताओं पर किया गया बर्बर हमला सुदर्शन की देखरेख में ही हुआ है।
खुफिया विभाग के उच्च अधिकारी के मुताबिक उत्तर-पूर्व में सक्रिय आतंकवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के गिरफ्तार आतंकियों ने नक्सलियों को अति संवेदनशील सूचना तकनीक के उपकरणों और हथियार देने की बात स्वीकारी है।
यह उपकरण और हथियार चीन में मौजूद पुराने माओवादी संगठनों की ओर से सप्लाई किए जाते है। गौरतलब है कि चीन में अभी भी माओत्से तुंग की पीपुल्स वॉर के दर्शन पर काम करने वाले लोगों का बड़ा तबका मौजूद है।
अधिकारी ने बताया कि माओइस्ट कम्यूनिस्ट पार्टी (टर्की) और कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ फिलीपींस काफी आक्रामक संगठन हैं। इनके साथ जर्मनी, फ्रांस, क्यूबा और दक्षिण अमेरिका के कई देशों में सक्रिय संगठन आपस में जुड़े हैं।
हालांकि एजेंसियों को अब तक इस बात का सुराग नहीं लग पाया है कि यह संगठन आपस में कैसे जुड़े हैं। अधिकारी ने बताया कि पिछले साल फ्रांस के माओवादी समर्थक जॉन मृडल छत्तीसगढ़ के जंगलों में नक्सलियों को आंदोलन का पाठ पढ़ाने आया था।
गिरफ्तार नक्सलियों ने पूछताछ में बताया है कि मृडल ने ही सीपीआई (माओवादी) के महासचिव मुपल्ला लक्षमन्ना राव उर्फ गणपति को भारत के मध्यम वर्ग का विश्वास जीतने का गुरुमंत्र दिया है।
मृडल के मुताबिक नक्सली जब तक मध्यमवर्ग का विश्वास नहीं जीतेंगे भारत में उनका आंदोलन कभी सफल नहीं होगा। खुफिया विभाग को शक है कि शहरों में अलग अलग तरीके से रह रहे माओवादी समर्थक अंतरराष्ट्रीय तार को जोड़ने का काम कर रहे हैं।