लोकसभा चुनाव की आहट शुरू होते ही सूबे में जातियों की जोड़तोड़ से दिल्ली में मजबूती से पैर जमाने का संघर्ष शुरू हो गया है।
इसे सामाजिक बदलाव का नाम दिया जाए या ब्राह्मणों में आई चेतना अथवा जोड़-तोड़ से सत्ता के समीकरण तलाशने की कोशिश, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यूपी की राजनीति में सियासी दलों के लिए ब्राह्मण ‘वोट’ बन गया है।
सियासी समीकरणों में ब्राह्मणों की भूमिका को मान्यता तो पहले भी दी जाती थी जब कांग्रेस की सरकारें बनती थीं या जब भाजपा सत्ता में आई।
पर, वर्ष 2007 में बसपा के सत्ता में आने के बाद सूबे में ब्राह्मणों पर कुछ ज्यादा ही फोकस होना शुरू हो गया।
बसपा के सत्ता में आने पर राजनीतिक समीक्षकों ने निष्कर्ष निकाला कि बसपा को सत्ता ब्राह्मण और दलित वोटों की जोड़तोड़ से मिली है।
पिछले वर्ष 2012 में सपा के सत्ता में आने के पीछे भी ब्राह्मणों, पिछड़ों व मुस्लिम के जोड़ को कारण बताया गया। शायद यही वजह है कि सपा और बसपा एक बार फिर पुराने समीकरणों से दिल्ली की सत्ता की गणित साधने में जुट गए हैं।
सपा और बसपा के बीच ब्राह्मणों पर दावेदारी घमासान की हद तक पहुंच गई है।
चुप तो ब्राह्मण वोट के सहारे लंबे समय तक राजनीति करने वाली कांग्रेस और सत्ता के समीकरणों को साधने में सफल रही भाजपा भी नहीं है।
पर, दोनों पार्टियां बयानों के जरिये सपा और बसपा को जातिवादी बताकर ब्राह्मणों को भला न कर पाने का तर्क देने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही हैं।
ब्राह्मणों को अपने पक्ष में लाने के लिए सपा व बसपा के बीच सियासी घमासान का अंदाज सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि सपा 15 दिन में राजधानी में ही ब्राह्मणों के नाम पर दो बड़े आयोजन कर चुकी है।
क्षेत्रों में हुए सम्मेलन अलग हैं। बसपा भी पीछे नहीं है। उसने भी ब्राह्मण सम्मेलनों का सिलसिला शुरू कर दिया है।
बसपा की तरफ से पहले चरण में पूरे प्रदेश में 36 सम्मेलन करने का ऐलान किया गया। यह सम्मेलन वहां होंगे जहां बसपा के प्रत्याशी ब्राह्मण हैं या आरक्षित सीटों पर।
समझा जा सकता है कि आरक्षित सीटों पर सम्मेलन के पीछे दलित व ब्राह्मण मतों के समीकरणों से चुनावी बाजी जीतने की कोशिश की गणित है।
लखनऊ से महराजगंज तक ब्राह्मणों पर डोरे
आज जब सपा राजधानी में परशुराम जंयती पर ब्राह्मणों की जुटान में ब्राह्मणों के सम्मान से किसी प्रकार का खिलवाड़ न होने देने का ऐलान कर रही थी। ब्राह्मणों के सम्मान को सुरक्षित रखने की गारंटी दे रही थी।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव संस्कृत के बगैर संस्कृति की रक्षा न होने के निष्कर्ष को साझा कर रहे थे।
ठीक उसी समय राजधानी से लगभग 300 किलोमीटर दूर बसपा भी परशुराम जयंती पर ब्राह्मणों की जुटान करके यह ऐलान कर रही थी कि बसपा ने ब्राह्मणों का जितना सम्मान किया, उतना किसी ने नहीं किया। यह दावे भी हो रहे थे कि ब्राह्मण अब भी बसपा के साथ ही है।
एक-दूसरे पर हमले
बसपा के महासचिव सतीश मिश्र ने महराजगंज में कहा कि इटावा में ब्राह्मण परिवार के लोगों का जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं, मुंह काला करके घुमाने वाले किस मुंह से ब्राह्मणों की सुरक्षा व सम्मान की बात कर रहे हैं।
लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कह रहे थे कि बसपा ब्राह्मणों को क्या सम्मान देगी। बसपा के राज में� तो तमाम ब्राह्मणों पर दलित एक्ट में झूठे मुकदमे लिखवाकर उन्हें अपमानित किया गया। सपा की सरकार इन मुकदमों को वापस लेगी।
पिछले महीने सपा मुख्यालय पर हुए ब्राह्मण सम्मेलन में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि उनकी पिछली सरकार ने ही संस्कृत विद्यालयों को अनुदान सूची पर लेने के आदेश कर दिए थे।
पर, बीच में आई बसपा सरकार ने इस सिलसिले में कुछ किया ही नहीं। इसी के बाद बसपा के महासचिव सतीश मिश्र ने इसी महीने 4 मई को संतकबीरनगर में कहा था कि सपा की सरकार संस्कृत शिक्षकों को भरमा रही है।
ब्राह्मणों पर डोरे डालने की वजह
प्रदेश की आबादी में लगभग लगभग 14 प्रतिशत का हिस्सा रखने वाले ब्राह्मण चुनाव में किधर जाएंगे, इसका पता तो चुनाव के दौरान ही चलेगा। पर, आंकड़ों पर नजर डालें तो सियासी दलों की ब्राह्मण मतों को लेकर बेकरारी समझ में आ जाती है।
प्रतिशत के लिहाज से प्रदेश में जाटव, कुरील श्रेणी की अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। दूसरे नंबर पर लगभग 14 प्रतिशत की संख्या के साथ ब्राह्मणों को नंबर आता है।
तीसरे नंबर लगभग 10 प्रतिशत की आबादी यादवों की मानी जाती है। समझा जा सकता है कि बसपा और सपा ब्राह्मणों अपने-अपने पक्ष में करने के लिए क्यों ताकत लगाए हैं।
बसपा के तर्क
सत्ता के शीर्ष पदों पर ब्राह्मणों को बैठाया
विधानसभा में 403 में 96 टिकट
पंचायत चुनाव में 20 प्रतिशत ब्राह्मणों को टिकट
गरीब सवर्णों को आरक्षण की पैरोकारी
सपा के तर्क
प्रमोशन में आरक्षण खत्म किया
भगवान परशुराम जयंती पर अवकाश
1993 में मंगल पाण्डेय की जन्मभूमि पर उनकी प्रतिमा की स्थापना
भगवान परशुराम की जन्मस्थली जलालाबाद को पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा