नई दिल्ली। कोयला ब्लाक आवंटन घोटाले की कालिख अन्य सभी घोटालों पर भारी पड़ गई। कानून मंत्री इसी फेर में गए और विपक्ष अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला बोल रहा है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग-1) कार्यकाल के दौरान हुए जिन कोयला ब्लाक आवंटन पर सवाल उठे हैं, उस समय प्रधानमंत्री के पास यह मंत्रालय था। इसके बावजूद मौजूदा कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल इस पूरे विवाद का ताप झेल रहे हैं। हालांकि, भ्रष्टाचार या नीतिगत अनिर्णयता के सवालों को वह गठबंधन सरकार की मजबूरी करार देते हैं। कोयला विवाद के साये में संप्रग-दो सरकार के चार साल पूरे होने के बाद दैनिक जागरण से श्रीप्रकाश जायसवाल ने खुलकर बात की। पेश हैं प्रमुख अंश:
-कोयले की कालिख सरकार के चेहरे से हट नहीं रही। प्रधानमंत्री घेरे में हैं, बतौर कोयला मंत्री आपका क्या मत है?
प्रधानमंत्री पर अंगुली उठाने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लोग पहले यह बताएं कि उनके कार्यकाल में जो 26 कोयला ब्लाक आवंटित किए गए, वे किस प्रक्रिया के आधार पर दिए गए। संप्रग-1 सरकार ने तो एक प्रक्रिया बनाई। उसके तहत विज्ञापन देकर और बाकायदा स्क्रीनिंग कमेटी बनाई गई, जिसमें केंद्र और राज्य का पूरा प्रतिनिधित्व दिया। विपक्ष पहले अपनी करनी का जवाब तो दे।
-मतलब कोयला आवंटन में कहीं कोई गड़बड़ नहीं?
मेरा यह कहना नहीं है कि कोयला ब्लाक सब सही पात्रों को दिए गए। क्योंकि जितनी भी सरकार की नीतियां होती हैं, उन्हें निजी स्वार्थ के तहत लोग कमजोर करने की कोशिश जरूर करते हैं। इस मामले में अधिकारियों की जांच रिपोर्ट और कंपनियों की तरफ से दी गई जानकारी पर सवाल और शिकायतें हैं। इन गड़बड़ियों पर सीबीआइ ने 11 प्राथमिकी दर्ज की हैं और कार्रवाई हो रही है।
-क्या इसका मतलब ये नहीं कि कोयला नीति में गड़बड़ रही और देश को नुकसान हुआ और जानबूझकर लचर नीतियां बनाई गई.?
देखिए, मंशा पर सवाल खड़े करना ठीक नहीं। देश में जितनी तेजी के साथ विकास दर बढ़ रही है, उसी लिहाज से ऊर्जा की जरूरतें बढ़ रही हैं। हमारे पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है कि हम कोयले का उत्पादन और तेजी के साथ बढ़ाएं। 1993 से जो कोयला ब्लाक आवंटित हुए, उसका एक ही उद्देश्य था कि उत्पादन बढ़े और विकास की रफ्तार न रुके। कोल इंडिया उत्पादन नहीं बढ़ा सकता था, इसलिए निजी कंपनियों को आवंटन दिए गए।
-मगर कई कोयला ब्लाकों से दो एक किलो कोयला भी नहीं निकाला गया और कंपनियों ने अपने शेयर बढ़ाने में उसका इस्तेमाल किया। उससे ऊर्जा जरूरतें कहां पूरी हुई?
इसमें कोई शक नहीं है कि बहुत सी कंपनियों ने कोयला नहीं निकाला, मगर ऐसा भी नहीं है कि किसी भी कंपनी ने कोयला उत्पादन नहीं किया। करीब 27 कोयला ब्लाक में खनन शुरू हो चुका है। बाकी जिन ब्लाकों में खनन नहीं शुरू हुआ, उन सबमें कंपनी की ही गलती नहीं रही। कभी वन तो कभी पर्यावरण या फिर भूमि अधिग्रहण जैसी दिक्कतें आई, जिसके चलते कोयला खनन नहीं हो सका। हां.मगर कई कंपनियां ऐसी थीं, जो इस लायक ही नहीं थीं, उन्होंने गलत जानकारी देकर ब्लाक निजी स्वार्थ में हासिल किए, उन पर कार्रवाई हो रही है।
-कोयला घोटाले में सीबीआइ की जांच रिपोर्ट बदलवाने में सरकार और संगठन के मतभेद सतह पर आ गए। कोयले ने मनमोहन-सोनिया की खाई को भी जता दिया.?
(बीच में ही बोलते हैं) कहीं कोई मतभेद नहीं है। पिछले नौ वर्षो में सरकार और पार्टी के बीच जबरदस्त समन्वय रहा है।
-भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने में और नीतिगत अनिर्णय की वजह क्या रही.?
देखिए नौ साल से ज्यादा सरकारें नेहरू और इंदिरा के जमाने में चली हैं। मगर गठबंधन की सरकार नौ साल तक खूबसूरती के साथ चले और अच्छे नतीजे दे, ऐसा कभी नहीं हुआ। जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो आप 2जी स्पेक्ट्रम का हवाला देंगे। आपको याद रखना चाहिए कि हमारी गठबंधन की सरकार है। उसके कुछ नकारात्मक पक्ष भी होते हैं।
-तो क्या फैसलों में देरी की वजह गठबंधन रहा?
पूरा इतिहास है। जहां कहीं गति धीमी हुई है, उसमें गठबंधन का हाथ है। दूसरे नकारात्मक विपक्ष ने भी कामकाज खूब रोका।
-उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी ने संगठन के काम का बंटवारा किया, पुराने प्रभारी मंत्री हटाए गए। नए चेहरे लाए गए। इसका क्या मतलब.?
यह चुनावी वर्ष है। जितने मंत्री या सांसद थे, 10-11 माह के भीतर उन्हें चुनाव में जाना है। अगर उन्हें अतिरिक्त उत्तरदायित्व दिया जाएगा तो उसका प्रभाव उनके चुनाव पर पड़ेगा। इसलिए यह राहुल जी का दूरदर्शी और सर्वोत्तम फैसला है।