‘काय पो छे’ के तीन युवकों में ईशान को सभी ने पसंद किया। इस किरदार को सुशांत सिंह राजपूत ने निभाया। टीवी के दर्शकों के लिए सुशांत सिंह राजपूत अत्यंत पॉपुलर और परिचित नाम हैं। फिल्म के पर्दे पर पहली बार आए सुशांत ने दर्शकों को अपना मुरीद बना लिया। ‘काय पो छे’ की रिलीज के पहले ही उन्होंने यशराज फिल्म्स की मुनीश शर्मा निर्देशित अनाम फिल्म की शूटिंग कर दी थी। इस फिल्म को पूरी करने के बाद वे राज कुमार हिरानी की ‘पीके’ की शूटिंग आरंभ करेंगे। ‘काय पो छे’ की रिलीज के बाद सुशांत सिंह राजपूत के साथ यह बातचीत हुई है।
‘काय पो छे’ पर सबसे अच्छी और बुरी प्रतिक्रिया क्या मिली?
अभी तक किसी की बुरी प्रतिक्रिया नहीं मिली। सभी से तारीफ मिल रही है। सबसे अच्छी प्रतिक्रिया मेरी दोस्त अंकिता लोखंडे की थी। उन्होंने कहा कि मैं इतने सालों से तुम्हें जानती हूं और ‘पवित्र रिश्ता’ में ढाई साल मैंने साथ में काम भी किया है। फिल्म देखते हुए न तो मुझे सुशांत दिखा और न मानव। एक शो में मैं अपने दोस्तों के साथ गया था। फिल्म खत्म होने के बाद मुझे देखते ही दर्शकों की जो सीटी और तालियां मिली। वह अनुभव अनोखा है। आप ने इरफान की प्रतिक्रिया बताई। लोग हाथ मिला कर खुश होते हैं और मुझे एनर्जी देते हैं।
-क्या आरंभ से ही यह आत्मविश्वास था कि ऐसी सराहना और प्रतिक्रिया मिलेगी?
मुझे पिक्चर पर विश्वास था। निर्माण का शुद्ध प्रयास ही इसे यहां ले आया। बर्लिन में पहली प्रतिक्रिया सकारात्मक थी। हम अपने दर्शकों की प्रतिक्रिया के इंतजार में थे। सच बताऊं तो ‘काय पो छे’ के पहले ही मुझे 5-6 फिल्में मिली थीं। सिंगल हीरो था मैं उनमें। मैं तब टीवी छोड़कर न्यूयॉर्क पढ़ने जाने तैयारी कर रहा था। खाली था, फिर भी मैंने किसी फिल्म के लिए हां नहीं कहा। इस फिल्म का ऑडिशन और स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद प्रार्थना करता रहा था कि मैं चुन लिया जाऊं। यह विश्वास था कि तीन दोस्तों की यह कहानी दर्शकों के साथ कनेक्ट होगी।
फिल्म के प्रचार और प्रोमो में कहीं आप को कथित हीरो के तौर पर नहीं पेश किया गया, लेकिन फिल्म देखने के बाद दर्शकों ने आप को हीरो ठहरा दिया। ये हो गया कि आप लोग भी मान रहे थे?
हिंदी फिल्मों में जो प्रमुख किरदार मर जाता है, उसे हीरो मान लिया जाता है। इसकी अवधारणा में ही यह बात नहीं थी कि एक हीरो और दो दोस्त होंगे। अभिषेक कपूर ने किसी स्टार को इसीलिए नहीं रखा। तीनों नए चेहरे लिए गए कि उनकी कोई पूर्व छवि न हो। कोशिश थी कि दर्शक तीनों दोस्तों से कनेक्ट करें। वही हुआ, लेकिन लोगों ने मुझे थोड़ा ज्यादा प्यार दिया।
-आप की पृष्ठभूमि क्या रही है? कैसे आना हुआ ‘काय पो छे’ तक ़ ़ ़
मैं पटना में पैदा हुआ। प्राइमरी की पढ़ाई वहीं की। सेंट हाई स्कूल और कॉलेज मैंने दिल्ली से किया। दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर रहा था। शौक के लिए श्यामक डावर के डांस स्कूल जाता था। श्यामक को मैं अच्छा लगा और उन्होंने मुझे अपने डांस ट्रूप में चुन लिया। श्यामक ने ही सुझाव दिया कि तुम डांसर अच्छे हो। मुझे लगता है कि एक्टिंग भी कर सकते हो। फिर मैंने वैरी जॉन को ज्वॉयन किया। अंदर से एहसास हो रहा था कि डांस और थिएटर करते समय कुछ मैजिकल होता है। उस जादू का असर रहता था।
क्या स्कूल-कॉलेज में भी परफारमेंस किए?
दिल्ली के हंसराज स्कूल में था। उस समय स्कूल शोज में हिस्सा लेता था। डांस और थिएटर ट्रेनिंग के बाद लगा कि इसमें मजा आ रहा है। फिर मैंने इंजीनियरिंग छोड़ दी। मैंने तय किया कि बाकी साल मनपसंद ट्रेनिंग में लगाऊंगा। मुंबई आने पर नादिरा बब्बर के साथ थिएटर किया। मैंने वहां ‘रोमियो जुलिएट’, ‘दौड़ा दौड़ा भागा भागा’, ‘प्रेमचंद की कहानियां’, ‘पुकार’ मोनोलॉग में काम किया। दो-ढ़ाई साल इसमें बीते। ‘पुकार’ के प्रदर्शन में बालाजी के कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझे देखा और एकता कपूर से मिलने के लिए बुलाया। एकता ने सलाह दी कि टीवी कर लो। तब तक मैंने कुछ सोचा नहीं था।
अच्छा तो मुंबई आने के समय यह इरादा नहीं था कि टीवी फिल्मों में एक्टिंग करनी है?
मैंने यह नहीं सोचा था। करियर प्लान नहीं किया था। सीखने के लिए मैंने सब कुछ कर रहा था। टीवी का ऑफर मिला तो सभी ने सुझाव दिया कि प्राइम टाइम शो है, जरूर करो। अच्छा ही हो गया। कैमरे की ट्रेनिंग मिल गई। पैसे अच्छे मिलने लगे और आडिएंस भी पसंद करने लगी। दो साल बीतते-बीतते लगा कि मैं तो कुछ सीख ही नहीं रहा हूं। सिर्फ पैसे कमा रहा हूं। यह ख्याल आते ही मैंने ‘पवित्र रिश्ता’ छोड़ दिया। उस समय शॉर्ट फिल्में बनाने लगा। ‘इग्नोर्ड डे’ शॉर्ट फिल्म बनाई। फिल्म की ट्रेनिंग के लिए यूसीएलए में ट्राय किया। वहां हो गया। तो जाने की तैयारी करने लगा। टीवी छोड़ते ही मुझे फिल्मों के ऑफर आने लगे, फिर भी मन नहीं डिगा। फिल्मों के लिए ना कर ही रहा था। तभी कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा से मुलाकात हुई। उन्होंने मुझे ‘काय पो छे’ के बारे में बताया और ऑडिशन के लिए बुलाया। लगभग सात सालों के अभ्यास और काम के बाद मैंने ऑडिशन दिया था।
फिर क्या हुआ?
चुन तो लिया गया, लेकिन अभिषेक कपूर ने कहा कि छह हफ्ते के बाद शूटिंग पर जाना है। तुम्हें अपना वजन कम करना होगा। तब मैं 87 किलो का था। मैंने स्क्रिप्ट का अभ्यास किया। वजन कम किया। टीवी करते समय आलस्य और व्यस्तता के कारण मोटा हो गया था। छह हफ्ते की मेहनत काम आई। 14 किलोग्राम वजन कम हुआ।
‘काय पो छे’ के आरंभ होने के पहले के बारे में कुछ बताएं?
हमलोग वर्कशॉप और रिहर्सल करते रहे। हम तीनों ने एक-दूसरे को काटने या दबाने की कभी कोशिश नहीं की। हमारे बीच खूब छनती थी। अभिषेक ने तो मुकेश से पूछा भी था कि तीनों पहले से दोस्त हैं क्या? अभिषेक भी चौंके।
क्या कभी आशंका या असुरक्षा का एहसास भी हुआ कि अगर फिल्म नहीं बन सकी तो क्या होगा? हम जानते हैं कि कई बार सारी कोशिशों के बावजूद फिल्में अटक जाती है?
मैं बस प्रार्थना करता रहता था कि सब कुछ ठीक से चलता रहे। इंट्रोवर्ट, अल्पभाषी और शर्मिला था। फिल्म में उसका उल्टा था। यही जोश था कि इसमें कुछ नया कर पाएंगे। अब तक अभिषेक ने एक्शन नहीं बोल दिया तब तक अज्ञात डर तो था ही।
फिल्म मिलने की खबर सबसे पहले किस के साथ शेयर की?
मैं अंकिता के साथ ही बैठा हुआ था जब फोन आया था। तो सबसे पहली जानकारी अंकिता को मिली। फिर सबसे बड़ी बहन को बताया। उन्होंने हमेशा मेरी मदद की और हौसला दिया। आर्थिक मदद भी देती रहीं।
कितने भाई-बहन हैं? परिवार के बारे में बताएं?
मेरी चार बड़ी बहनें हैं। मैं सबसे छोटा हूं। एक डॉक्टर हैं चंडीगढ में, उनकी शादी आईपीएस ऑफिसर के साथ हुई है। दूसरी स्टेट लोकल तक क्रिकेट खेल चुकी हैं। अभी गोल्फ खेलती हैं। मीतू दीदी के ऊपर ही मैंने ईशान को आधारित किया था। तीसरी सुप्रीम कोर्ट में क्रिमिनल लॉयर हैं। चौथी बहन भी काम करती हैं। मीतू दीदी जब फिल्म देखने जा रही थी तो मैंने कहा था कि दीदी देख कर बताना कि ईशान किस पर आधारित है? दस मिनट के अंदर ही उनका फोन आ गया। मेरे डैडी का नाम केके सिंह है।
मीतू दीदी में ऐसी क्या बात थी, जो ईशान में भी है?
जरूरी नहीं है कि काबिलियत को सही समय पर मौके मिल जाएं। उनके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। ईशान के साथ भी ऐसा हुआ तो वह बहुत इंपलसिव हो गया। ऊपर से वह गुस्सैल और असंवेदनशील लगता है, लेकिन अंदर से मुलायम और टची है। वह शुद्ध और ईमानदार है। असुरक्षित भी है।
फिल्म में यह सब दिखा है और ईशान उसे धक्का देता है?
जी, ईशान का गुस्सा अली पर नहीं है। सच कहें तो वह सिस्टम के प्रति नाराजगी जाहिर करता है। ईशान को तुरंत एहसास होता है कि मैंने अली को क्यों मारा।
मीतू दीदी और सुशांत सिंह का संबंध फिल्म में विधा और ईशान के जैसा ही है या अलग था?
मीतू दीदी से मेरे संबंध की झलक अली और ईशान के बीच है। मीतू दीदी ने मुझे बाईक और कार चलाना सिखाया। क्रिकेट खेलना सिखाया। मैं जो भी अच्छी चीजें करता हूं, वह सब मीतू दीदी का सिखाया-बताया है। तब मेरी भी उम्र अली इतनी थी। जब सब कुछ सीख-समझ रहा था।
आप के पिता का नाम के के सिंह है और आप अपने नाम में सिंह के आगे राजपूत लिखते हैं। कोई वजह?
मेरी मां राजपूत लिखती थीं। मैंने डैड से सिंह और मां से राजपूत लिया। मैं पटना का ही हूं। छोटा था तभी मां का देहांत हो गया था। तब मैं बारह का ही था। हमलोग शुरू से दिल्ली में ही रहे।
उत्तर भारत ़ ़ ़ खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार से फिल्मों में कम एक्टर आते हैं। मैंने देखा है कि उनके प्रति इंडस्ट्री का रवैया स्वागत और प्रोत्साहन का नहीं रहता। आप का अनुभव कैसा रहा?
मुझे कभी विरोध नहीं झेलना पड़ा। भेदभाव तो होता ही है। हमारे समाज और विश्व में है। यह मानवीय प्रवृति है। मेरे अंदर एक आत्मविश्वास रहा है। ऐसा नहीं था कि एक सुबह सो कर उठने के बाद मैंने एक्टर बनने का फैसला कर लिया। मैंने बाकायदा छह साल ट्रेनिंग की। फिर आप कैसे छांट सकते हो। सबसे बड़े जज दर्शक होते हैं। वे पैसे देकर फिल्में देखने आते हैं। वे जब फिल्म देखने के बाद हाथ मिलाते समय भावुक हो जाते हैं। उनकी आंखें छलकने लगती हैं तो स्वीकृति मिल जाती है। मेरे लिए यह एक प्रोसेस है। डांस, थिएटर, टीवी और फिल्म ़ ़ ़ सब एक-एक होता गया। अभी सीख रहा हूं। मैं खुद को स्टार नहीं समझ रहा हूं।
स्टारडम के अहंकार से बचने के लिए क्या कर रहे हैं?
मुझे लगता है कि लोग आप को पढ़ लेते हैं। मैं झूठ और सच नहीं छिपा सकता। पैसे और प्रसिद्धि का आकर्षण नहीं है। अभी तक मैं ट्विटर या फेसबुक पर भी नहीं हूं। मुझे जो भी सराहना मिली है, उसे स्वीकार कर दिल में रखा है। सिर तक आने नहीं दिया है।
अपने रिलेशनशिप के बारे में बताएं?
अंकिता लोखंडे ‘पवित्र रिश्ता’ में मेरी कोस्टार थीं। उन से दोस्ती हुई। आज भी हम दोस्त हैं। साथ रहते हैं। शादी जब होनी होगी, हो जाएगी। अभी सोचा नहीं है। मैं ईमानदारी और मेहनत नहीं छोड़ना चाहता। बैरी जॉन और नादिरा बब्बर से जो सीखा है, उसे ही मांज रहा हूं। साथ ही नई चीजें भी सीख रहा हूं।