रिजर्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों सहित बांडों में विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश को तर्कसंगत करने की घोषणा की.
साथ ही विभिन्न वर्गों को समाप्त कर दिया ताकि बढ़ते चालू खाता घाटा पाटने के लिए और विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सके.
आरबीआई ने एक अधिसूचना जारी कर कहा, ‘समीक्षा करते हुए मौजूदा सीमाओं को आसान बनाने के लिए वर्तमान ऋण सीमाओं को मिलाकर इन्हें दो वृहद वर्गों में बांटने का निर्णय किया गया है.’
पहले वर्ग में 25 अरब डॉलर की सरकारी प्रतिभूतियां होंगी जिसमें ट्रेजरी बिलों सहित अल्पकालिक सरकारी प्रपत्रों में निवेश सीमा के लिए 10 अरब डॉलर और दीर्घकालीन सरकारी प्रतिभूतियों के लिए 15 अरब डॉलर की सीमा होगी.
दूसरा वर्ग कारपोरेट ऋण का है जिसमें 51 अरब डॉलर की सीमा होगी. इसमें ढांचागत क्षेत्र और गैर ढांचागत क्षेत्र के बांडों के लिए 25-25 अरब डॉलर और गैर ढांचागत क्षेत्र में क्यूएफआई ‘पात्र विदेशी निवेशकों’ के लिए एक अरब डॉलर की उप सीमा होगी.
आरबीआई ने कहा कि उपरोक्त बदलाव एक अप्रैल, 2013 से प्रभावी हो गए हैं.