स्वयं राज कपूर की सुबह बारह बजे होती थी और वे स्टूडियो चार बजे पहुंचते थे। राज कपूर के प्रारंभिक दौर में ‘सरगम’(1950) नामक फिल्म के निर्देशक पी.एल. संतोषी इस बात से तंग आ गए कि राज कपूर सुबह 10 बजे से 6 बजे वाली शिफ्ट में दो बजे आते हैं। उन्होंने इसके खिलाफ अदालत के दरवाजे खटखटाए और राज कपूर को निर्देश दिया कि वे दस बजे पहुंचें। राज कपूर ने आदेश का पालन तो किया, परंतु वे इतने मशीनी ढंग से अभिनय कर रहे थे कि सारा उपक्रम नकली लग रहा था। निर्माता ने स्वयं अदालती आदेश बदलवा दिया, क्योंकि दो बजे आने पर राज कपूर मन लगाकर अभिनय करते थे और उन्हें 6 बजे जाने की जल्दी भी नहीं होती थी। वे काम पूरा करके ही जाते थे। दरअसल, उस प्रारंभिक दौर में राज कपूर दिन में दूसरों की फिल्म करते थे और सारी रात स्वयं की फिल्म शूट करते थे। फिल्म निर्माण के लिए धन जुटाने हेतु अन्य निर्माताओं की फिल्में करना आवश्यक था। प्रारंभिक वर्षों की आदत सारी उम्र कायम रही। स्वयं की फिल्मों के लिए भी वे चार बजे आने लगे। रतजगा उनकी सृजन प्रक्रिया के अंग हो गए।
NCR Khabar News Desk
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