मुंबई -यहां सरकार को बेसहारा बच्चों से ज्यादा पशुओं की सेहत की चिंता है। तभी तो वह आवारा पशुओं के चारे के लिए के लिए प्रतिदिन 65 रुपये और आश्रय गृहों में रहने वाले बच्चों के लिए प्रतिदिन 21 रुपये अनुदान दे रही है।
सरकार द्वारा राज्य के 1100 आश्रय गृहों में 80000 बच्चों का पोषण अच्छी तरह से किए जाने का दावा किया जा रहा है। उन्हें भोजन व्यय अनुदान के रूप में प्रतिदिन सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना, शाम का नाश्ता व रात का खाना के नाम 635 रुपये प्रति माह यानी 21 रुपये प्रतिदिन दिया जा रहा है। इतने रुपये में ही इन बच्चों को पोषणाहार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है। अब इस महंगाई के दौर में यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इन्हें किस तरह से और किस तरह का खाना खाने को दिया जाता होगा। जबकि पशुओं के दिन भर के चारे के लिए 65 रुपये प्रतिदिन दिया जा रहा है।
नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि तय मानदंडों के अनुरूप बच्चों को दिए जाने वाले पोषाहार के लिए यह अनुदान ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। लेकिन चूंकि काम सरकारी है इसलिए किसी तरह से पूरा किया जा रहा है।
2011 में महंगाई दर बढ़ने के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाले एक पैनल ने प्रति बच्चे 200 रुपये प्रति माह खाद्य अनुदान बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था। दिलचस्प यह है कि इसे नवंबर 2011 में कैबिनेट की मंजूरी भी मिल गई लेकिन डेढ़ वर्ष बीत जाने के बावजूद निर्णय को अब तक क्रियान्वित नहीं किया जा सका है।
हाल के दिनों में चार बार खाद्य अनुदान बढ़ाने की सिफारिश की गई है, जिसमें तीन बार राशि बढ़ाने का भी निर्देश दिया गया लेकिन यह अब तक सिरे नहीं चढ़ सका है। सूत्र बताते हैं कि कैबिनेट के इस निर्णय के क्रियान्वित न होने के लिए कांग्रेस और एनसीपी एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रही है।
सूत्रों ने कहा कि उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री अजीत पवार (एनसीपी) इस निर्णय यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि 2008 में जब हर्षवर्धन पाटिल (कांग्रेस) महिला एवं बाल विकास मंत्री थे तब उन्होंने बिना अनुमति के 589 नए बाल आश्रय गृहों के लिए अनुदान अनुमोदित किए थे। शुरुआत में इन सभी संस्थाओं के लिए अतिरिक्त अनुदान जारी करने से इन्कार के बाद अब विभाग ने महिला एवं बाल विकास विभाग से सभी संस्थाओं की पात्रता की जांच का निर्देश दिया है। उधर, विभाग की मंत्री वर्षा गायकवाड़ (कांग्रेस) ने कहा कि बाल कल्याण कमेटी जिसे न्यायिक दंडाधिकारी जैसी शक्तियां प्राप्त हैं, वे इन संस्थाओं की पात्रता सुनिश्चित करती हैं इसलिए इस पर उंगली उठाना हास्यास्पद है। उन्होंने कहा कि इन मामलों सारे तय मानदंडों व प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है।