उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे या नहीं इस पर विधानसभा में एक घंटे की विशेष चर्चा होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 31 जनवरी को इस बारे में पता करने के लिए तीन महीने में आयोग का गठन करने और गुमनामी बाबा की सभी चीजों को संग्रहालय में रखने का आदेश दिया था।
विधानसभा में निर्दलीय विधायक अखिलेश सिंह, रघुराज प्रताप सिंह और कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह सहित अन्य सदस्यों ने काम रोको प्रस्ताव के जरिए इस मामले को उठाया। सदस्यों की बात सुनने के बाद सभाध्यक्ष माता प्रसाद ने सदन में एक घंटे की विशेष चर्चा का आदेश दिया।
अखिलेश सिंह ने कहा कि फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, लेकिन इसकी जांच के लिए उच्च न्यायालय के आदेश पर आयोग का गठन किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने नेताजी के निधन को लेकर खोसला आयोग तथा शाहनवाज आयोग का गठन किया था। खोसला आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताईवान में विमान दुर्घटना में हुई।
दूसरी ओर ताईवान सरकार का कहना है कि 1945 में उनके देश में कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं थी। सिंह का आरोप था कि खोसला कमेटी ने बिना ताईवान सरकार से संपर्क किए अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी।
उन्होंने कहा कि नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने गुमनामी बाबा के लिखे पत्र को देखकर कहा था कि यह लिखावट उनके चाचा की है।
सिंह ने कहा कि गुमनामी बाबा के पास राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पहले सर संघ चालक गुरू गोलवलकर के पत्र भी थे जिसमें कहा गया था कि भारत को बचाने के लिए जनता के सामने आए।
उनका दावा था कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे क्योंकि उनके पास बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों के अलावा नेताजी के बडे़ भाई सुरेश बोस तथा आजाद हिंद फौज में उनके सहयोगी पवन राय के पत्र मौजूद थे।
सिंह ने कहा कि अंग्रेज सरकार ने नेताजी को युद्ध कैदी घोषित किया था जिसे भारत के आजाद होने के बाद भी वापस नहीं लिया गया। संभवत उनके सामने नहीं आने का एक बड़ा कारण यह भी रहा होगा।
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि नेताजी को सोवियत संघ में गोली मार दी गई थी। सिंह ने कहा कि सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्वाचोव जब भारत आए तो उन्होंने कहा था कि अब दोनों देश को नेताजी के बारे में दी जा रही जानकारियों को हल कर लेना चाहिए।
विधानसभा में विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य, भारतीय जनता पार्टी विधायक दल के नेता हुकुम सिंह और कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप माथुर ने भी गुनमानी बाबा के नेताजी होने के बारे में जांच के लिए आयोग के गठन की मांग की।
काम रोको प्रस्ताव पर सरकार की ओर से जवाब देते हुए राजस्व मंत्री अंबिका चौधरी ने कहा कि आजादी की लड़ाई का जब भी जिक्र होगा तो महात्मा गांधी तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम सबसे पहले आएगा।
उन्होंने जवाब में सीधे कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि 1945 में उनकी मृत्यु की मिली सूचना के बाद केंद्र और राज्य में बनी सरकारों ने उन्हें गुमनामी में रहने को बाध्य किया।
उन्होंने कहा कि गुमनामी बाबा नेताजी थे या नहीं इसकी जानकारी के लिए के अगर आयोग बने तो यह भी जांच होनी चाहिए कि उन्हें गुमनामी में रहने पर बाध्य करने वाले अपराधियों के नाम क्या थे।
उन्होंने कहा वह किसी का नाम नहीं लेना चाहते लेकिन ऐसा जघन्य अपराध करने वालों के वारिस मिल जाएंगे लेकिन उन पर हाथ रखना मुश्किल है।
सभाध्यक्ष ने सदस्यों तथा सरकार का जवाब सुनने के बाद काम रोको प्रस्ताव को तो नामंजूर कर दिया लेकिन इस पर एक घंटे की विशेष चर्चा कराने के आदेश दिए।