संसद से मुफ्ती को सख्त संदेश

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद द्वारा कट्टरपंथी मसर्रत आलम की रिहाई से उपजे विवाद के बीच केंद्र ने साफ तौर पर कह दिया है कि देश की एकता और अखंडता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार के मुताबिक, इस फैसले से पहले राज्य सरकार ने न तो उससे कोई मशविरा किया और न ही इसकी जानकारी दी। सरकार ने यह संकेत भी दिया कि गृह मंत्रालय चौकस है और मामले में आगे की कानूनी राह ढूंढी जा रही है। संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश सरकार को सख्त संदेश देने के साथ ही विपक्ष के हमले को भी कुंद करने की कोशिश की।
सोमवार को संसद फिर से जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर उग्र थी। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही एकजुट विपक्ष ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए परोक्ष रूप से भाजपा की मंशा पर सवाल उठाया। लेकिन सरकार पूरी तैयारी से आई थी। गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बयान के बाद मोदी ने सख्त लहजे में कहा, ‘प्रदेश में जो भी गतिविधियां हो रही हैं, वह न तो भारत सरकार से मशविरे के बाद हो रही हैं और न ही हमें इसकी जानकारी दी गई है।’ विपक्ष के शोर-शराबे के बीच मोदी ने कहा कि विपक्ष राजनीति करे, लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर दो सुर नहीं होने चाहिए। हम अलगाववादी के समर्थन में किसी कानून का दुरुपयोग करने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। जरूरत पड़ने पर ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी।
दरअसल भाजपा को इसका अहसास था कि जम्मू-कश्मीर के बहाने विपक्ष पूरे देश में सरकार को घेरने की कोशिश करेगा। यह आशंका इसलिए और बढ़ गई थी क्योंकि राज्य में गठबंधन साथी पीडीपी की ओर से यह बयान दिया जा रहा था कि सबकुछ साझा कार्यक्रम के अनुसार हो रहा है। रिहाई भी उसका ही हिस्सा है।
मसर्रत आलम की रिहाई पर मुफ्ती सरकार की रिपोर्ट गृह मंत्रालय के गले नहीं उतर रही है। इससे असंतुष्ट गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से सफाई मांगी है। लोक सभा में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कर दिया कि राज्य सरकार की सफाई के बाद अगले कदम का फैसला किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले को केंद्र ने गंभीरता से लिया है। जरूरत पड़ने पर राज्य सरकार को कठोर एडवाइजरी जारी की जाएगी। राजनाथ सिंह के अनुसार राज्य सरकार ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि मसर्रत आलम अलगाववादी है और युवाओं को सुरक्षा बलों के खिलाफ पत्थरबाजी के लिए भड़काने में उसकी अहम भूमिका थी।
हाई कोर्ट के आदेश का हवाला
मुफ्ती सरकार ने अपनी रिपोर्ट में मसर्रत की रिहाई के लिए हाई कोर्ट के आदेश का हवाला दिया है। इसमें नागरिक सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तारी को दो बार से अधिक बढ़ाने को गलत करार दिया गया था। मसर्रत की गिरफ्तारी की अवधि पिछली सरकार आठ बार बढ़ा चुकी थी। प्रदेश सरकार के अनुसार, नए आरोप नहीं होने के कारण गिरफ्तारी की अवधि को फिर बढ़ाना संभव नहीं था।
–::इन बिंदुओं पर मांगी सफाई::–
–मसर्रत को राज्य सरकार पिछले पांच सालों से नागरिक सुरक्षा के लिए खतरा मान रही थी। अब एक हफ्ते में यह खतरा पूरी तरह कैसे खत्म हो गया?
–किसी व्यक्ति से नागरिक सुरक्षा पर खतरे की आशंका मापने का उसका क्या पैमाना है? क्या मसर्रत की रिहाई के फैसले को इस पैमाने पर सही ठहराया जा सकता है?