नई दिल्ली। तीसरे मोर्चे को लेकर मुलायम सिंह यादव के शिगूफे ने सियासी गर्मी को बढ़ा दिया है। बीजेपी ने इसे हवाई ख्याल करार दिया है तो कांग्रेस ने भी दावा किया है कि भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे के लिए कोई जगह नहीं बची है। लेकिन कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी ने मुलायम की राय को दुरुस्त बताकर कयासों का बाजार गर्म कर दिया है।
केंद्र की मनमोहन सरकार की संकटमोचक बनी समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर तीसरे मोर्चे की चर्चा छेड़ दी है। यूं तो कांग्रेस उनके जैसे सहयोगियों के सहारे 2014 के आम चुनाव के बाद भी केंद्र की कुर्सी पर कब्जा करने का ख्वाब देख रही है, लेकिन लगता है कि मुलायम खुद की ताजपोशी का सपना देख रहे हैं। रविवार को उन्होंने महाराष्ट्र के सांगली में अगले आम चुनाव के बाद के हालात को लेकर भविष्यवाणी की।
मुलायम ने कहा कि गठबंधन सरकार देश की जरूरत है क्योंकि कोई भी एक पार्टी अपने बल पर केंद्र में सत्ता में नहीं आ सकती है। वक्त आ गया है कि सामाजिक बदलाव लाने की इच्छुक पार्टियां महाराष्ट्र, बिहार और उत्तरप्रदेश में एक साथ आएं।
साफ है कि मुलायम सिंह 1996 के संयुक्त मोर्चा सरकार जैसे किसी प्रयोग की उम्मीद जता रहे हैं। यानी न कांग्रेस और न बीजेपी, बल्कि लॉटरी खुलेगी किसी तीसरे की। सांप्रदायिकता विरोध के नाम पर कांग्रेस भी इस गठबंधन को समर्थन देने को मजबूर होगी। वैसे, ये सिर्फ मुलायम की खामख्याली नहीं है। कांग्रेस की पुरानी सहयोगी एनसीपी भी इस राय से इत्तेफाक रखती है।
यही नहीं, एनसीपी ने भविष्य में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की संभावना को भी नकारा नहीं है। यानी बेटे अखिलेश को यूपी सौंपकर मुलायम सिंह यादव पिछले एक साल से केंद्र में जो खिचड़ी पका रहे हैं, उसका असर दिखने लगा है। जाहिर है,खुद को केंद्र की गद्दी का दावेदार समझने वाली कांग्रेस और बीजेपी को मुलायम का ये रुख रास नहीं आ रहा है।
केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि तीसरा चौथा मोर्चा नाम की कोई चीज़ की भारतीय राजनीति में कोई जगह नहीं है। वहीं बीजेपी नेता सुधांशु मित्तल ने इस पर चुटकी ली। उन्होंने कहा कि थर्ड फ्रंट पर एक जुमला याद आता है। दिल रखने के लिए गालिब ये खयाल अच्छा है। सपा अपना किनारा यूपीए से करना चाहते है क्योंकि कांग्रेस उनके लिए अपनी नीतियों की वज़ह से लाईबिलीटी बन गई है।
1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान मुलायम सिंह ने रक्षामंत्री की कुर्सी संभाली थी। वैसे उनका नाम प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में भी थे। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि तीसरे मोर्चे के जरिये कहीं वे अपना अधूरा ख्वाब पूरा करने का इरादा तो नहीं बना रहे हैं। डीएमके की समर्थन वापसी के बाद 22 सांसदों के साथ मनमोहन सरकार की सबसे भरोसेमंद बनकर उभरी समाजवादी पार्टी क्या कांग्रेस के इरादों की गाड़ी को पंक्चर करने की तैयारी कर रही है।
हकीकत जो भी हो, लेकिन इसमें शक नहीं कि पहलवानी के दिनों में चरखा दांव के सहारे अपने से बड़े पहलवानों को चुटकियों में चित कर देने वाले मुलायम, राजनीति के अखाड़े में भी अपना हुनर भूले नहीं हैं। तीसरे मोर्चे की सुरसुरी को लेकर कांग्रेस और बीजेपी जैसे बड़े पहलवानों के माथे पर बल पड़ना इसी का सबूत है।