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भारतीय सुरक्षा तंत्र पर चीन का हमला!

दिल्ली. चीन ने एक बार फिर नापाक हरकत की है। एक अंग्रेजी अखबार ने खुलासा किया है कि चीन ने भारतीय रक्षा अनुसंधान संस्थान (DRDO) के कई कम्प्यूटरों को हैक कर सुरक्षा और मिसाइल कार्यक्रमों से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियों को चुरा लिया है। चीन द्वारा किए गए इस लीक के बारे में मार्च के पहले सप्ताह में ही पता चल गया था। सरकार के टेक्निकल इंटेलिजेंस विंग, ‘नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑरगनाइजेशन’ ने प्राइवेट साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट के साथ मिलकर इस लीक का खुलासा किया है।

हैकरों ने डीआरडीओ के वरिष्ठ अधिकारी के इमेल आईडी को हैक कर इस घटना को अंजाम दिया। पहली बार भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों ने हैकिंग को किस जगह से अंजाम दिया गया इस बात का भी पता लगा लिया है। लीक की गईं सभी फाइलें चीन के गुआंगडोंग प्रांत के सर्वर पर अपलोड की गई हैं। गौरतलब है कि इससे पहले हैकिंग के बारे में इतनी सटीक जानकारी किसी भी ख़ुफ़िया एजेंसी द्वारा नहीं निकाली जा सकी है।

हैकरों ने  रक्षा मामलों सम्बन्धी निर्णय लेने वाली सर्वोच्च समिति, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की हजारों फाइलों, मिसाइल विकास प्रोग्राम सहित भारतीय रक्षा अनुसंधान संस्थान के हैदराबाद स्थित लैब में भी सेंध लगाई है।

अमेरिका भी लगा चुका है ऐसा ही आरोप 
हालांकि पिछले साल मार्च में चीनी सरकार ने अन्य देशों के खिलाफ साइबर हमला करने के लिए उसकी ओर से हैकर्स की मदद किए जाने के आरोपों को नकारा था।
‘चाइना डेली’ के मुताबिक चीनी रक्षा मंत्रालय ने इन आरोपों का खंडन करते हुए जोर देकर कहा था कि अंतरराष्ट्रीय साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करना पूरी दुनिया के साझा हित में हैं। यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्युरिटी रिव्यू कमीशन के लिए यूएस नॉर्थरोप ग्रुमैन द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि चीन अमेरिकी सैन्य कमान पर साइबर हमले करने के लिए होने वाले शोध के लिए पैसा देता है।

यह रिपोर्ट 2012 के मार्च महीने की शुरुआत में जारी हुई थी। इसमें यह भी कहा गया था कि चीनी दूरसंचार कम्पनियां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से भी सम्बंध बनाए हुए हैं। ये कम्पनियां पीएलए को शोध व प्रौद्योगिकी में मदद देती हैं।

सबसे बड़े साइबर हमले में चीन का हाथ 

भारत, संयुक्‍त राष्‍ट्र और अमेरिकी रक्षा कंपनियों समेत दुनिया भर के कई ठिकानों पर हुए सबसे बड़े साइबर हमलों में चीन का हाथ रहा है। 2011 में ‘वॉशिंगटन पोस्‍ट’ ने ‘मैक्एफी’ के रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया था कि चीन ने पांच वर्षों के दौरान भारत, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, आसियान, अंतरराष्‍ट्रीय ओलंपिक समिति और विश्‍व डोपिंग निरोधी एजेंसी सहित 72 बड़े देशों और संगठनों को निशाना बनाया है।
रिपोर्ट के मुताबिक चीनी हैकरों के नेटवर्क ने जेनेवा स्थि‍त यूएन सचिवालय, यूएस एनर्जी डिपार्टमेंट लैब और 12 बड़ी अमेरिकी रक्षा कंपनियों में सेंध लगाई है। साइबर सेंधमारी का काम कई वर्षों से चल रहा है। हैकर्स ने 2008 में अमरीका के जिनेवा स्थित सचिवालय के कंप्यूटर सिस्टम को हैक कर लिया जिसकी दो साल तक किसी को भनक तक नहीं लगी। हालांकि रिपोर्ट में किसी देश को सीधे तौर पर जिम्‍मेदार नहीं ठहराया गया है और कहा गया है कि ‘एक देश’ इसके पीछे है। लेकिन सुरक्षा मामलों के जानकार चीन की ओर से इशारा करते हैं।
सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज से जुड़े साइबर विशेषज्ञ जिम लुईस ने मैक्एफी के खुलासे पर कहा था कि इस अभियान के पीछे चीन का हाथ हो सकता है। उनका कहना है हमले के पीड़ितों में कई ऐसे देश शामिल हैं, जिनके निजी हित चीन से जुड़े हैं। कुछ लोगों को इसके पीछे रूस का हाथ होने का भी संदेह है।

NCR Khabar Internet Desk

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