बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के नेता को मौत की सज़ा सुनाए जाने के बाद देश के अलग-अलग इलाकों में दंगे भड़क उठे हैं।
समाचार एजंसियों के मुताबिक 15 ज़िले हिंसा से प्रभावित हैं। ढाका में मौजूद बीबीसी संवाददाता अनबरासन एथिराजन के मुताबिक गायबंधा ज़िले में सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी और जमात-ए-इस्लामी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच भड़की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई दुकानें जला दी गईं।
स्थानीय समाचार एजंसियों के मुताबिक गुरुवार को शुरू हुई हिंसा में अब तक 35 लोगों की मौत हो गई है और शुक्रवार की नमाज़ के बाद और झड़पें होने की आशंका है।
गुरुवार को बांग्लादेश में युद्घ अपराधों की जाँच के लिए गठित ट्रायब्यूनल ने जमात-ए-इस्लामी पार्टी के वरिष्ठ नेता दिलावर हुसैन सईदी को 1971 के मुक्ति संग्राम में दौरान किए गए युद्घ अपराधों के लिए मौत की सज़ा सुनाई थी।
इस फैसले का उनके विरोधियों ने स्वागत किया लेकिन जमात-ए-इस्लामी पार्टी का कहना है कि ट्रायब्यूनल का रवैया उनकी पार्टी के खिलाफ़ पक्षपातपूर्ण है।
सईदी तीसरे ऐसे नेता हैं जिनको युद्घ अपराधों की जाँच के लिए गठित ट्रायब्यूनल ने सज़ा सुनाई है। जिन लोगों को अब तक सज़ा सुनाई गई है, सईदी उनमें सबसे वरिष्ठ हैं।
देशभर में हिंसा
पुलिस के अनुसार गुरुवार को नेआखली में एक हिंदू मंदिर को निशाना बनाया गया और हिंदू परिवारों पर हमला किया गया।
इस फैसले के बाद देशभर के अलग-अलग इलाकों में हिंसा की खबरे हैं।
राजधानी ढाका में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए हज़ारों पुलिस कर्मियों को लगाया गया है।
सईदी के वकीलों का कहना है कि वो इस फैसले के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की योजना बना रहे हैं।
सईदी को जून 2010 में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें 1971 में मुक्ति संग्राम में जनसंहार, बलात्कार और अन्य अपराधों का दोषी करार दिया गया था।
उनकी पार्टी ने अदालत के फैसले को खारिज किया है और इसके ख़िलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही है।
ट्रायब्यूनल के आलोचकों का कहना है कि सईदी और अन्य लोगों के ख़िलाफ लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित हैं।
इससे पहले बुधवार को हज़ारों लोगों ने राजधानी ढाका में सईदी को मृत्युदंड दिए जाने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया।
तीसरा फ़ैसला
यह तीसरा मौका है जब ट्रायब्यूनल ने अपना फैसला सुनाया है। ट्रायब्यूनल में जमात के नौ नेताओं और बांग्लादेश नेशनल पार्टी के दो नेताओं पर मुकदमा चल रहा है।
इस मुकदमे के कारण हाल के दिनों में ढाका में हिंसक झड़पें हुई हैं, जिसमें कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।
सईदी पर मुक्ति संग्राम के दौरान अल बद्र संगठन के साथ मिलकर कई तरह के अत्याचार करने का आरोप था जिसमें हिंदुओं को जबरन इस्लाम कबूलवाना भी शामिल था।
सईदी के आलोचकों का कहना है कि जमात नेता ने मुक्ति संग्राम के दौरान बंगाली हिंदुओं और मुक्ति संग्राम के समर्थकों की संपत्ति लूटने के लिए एक गिरोह बनाया था।
साथ ही उन पर मानवता के ख़िलाफ अपराध और जनसंहार का भी आरोप था। हालांकि जमात नेता ने सभी आरोपों से इनकार किया है।
इस महीने की शुरुआत में जमात के एक अन्य नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को मानवता के ख़िलाफ अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। हालांकि बड़ी संख्या में लोग मुल्ला को मौत की सज़ा देने की मांग कर रहे हैं।
मानवता के ख़िलाफ अपराध
जनवरी में जमात के पूर्व नेता अबुल कलाम आजाद को मानवता के ख़िलाफ अपराध सहित आठ आरोपों में दोषी पाया गया था और मौत की सज़ा सुनाई गई थी। हालांकि ये मुकदमा उनकी गैर मौजूदगी में चलाया गया था।
इस विशेष अदालत का गठन 2010 में मौजूदा सरकार ने किया था। इसका मकसद 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर इस आंदोलन को कुचलने की कोशिश में शामिल रहे लोगों पर मुकदमा चलाना है।
लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि ये ट्रायब्यूनल अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। जमात और बीएनपी का आरोप है कि सरकार ने राजनीतिक बदला लेने के लिए इस ट्रायब्यूनल का गठन किया है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक मुक्ति संग्राम के दौरान 30 लाख से अधिक लोग मारे गए थे।