राजेश बैरागी। उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में मैदान मारने निकली भाजपा की क्या स्थिति रहने वाली है?कम मतदान और पार्टी के स्थानीय क्षत्रपों की टिकट बंटवारे से शुरू हुई अंतर्कलह ने शीर्ष नेताओं के चेहरे पर शिकन ला दी है। शहरी मतदाताओं ने इस चुनाव में हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण और माफियाओं पर की जा रही कठोर कार्रवाई के बावजूद जातीय आधार पर भी मतदान किया है।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनावों के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। सत्तारूढ़ भाजपा ने इस चुनाव को येन केन प्रकारेण एक तरफा बनाने का पुरजोर प्रयास किया है। इसके लिए दूसरे दलों से आए लोगों को तो निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर महत्व दिया ही गया, बरेली में तो समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष पद की प्रत्याशी को ही भाजपा में शामिल कर अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। आज शाम दूसरे और अंतिम चरण के मतदान के बाद अधिकांश नगर निकायों में भाजपा कैंप में मौन पसर गया है।
गौतमबुद्धनगर की एकमात्र नगर पालिका परिषद (अन्य नगर पंचायत हैं) दादरी में भाजपाइयों में जीत को लेकर भरोसा नहीं दिखाई दिया। इसके विपरीत समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अय्यूब मलिक के समर्थक मतदान करने के बाद निश्चिंत नजर आए। अन्य प्रत्याशियों में बसपा और कांग्रेस के प्रत्याशी क्रमशः राव रविन्द्र सिंह व अशोक पंडित तीसरे और चौथे स्थान पर रहने का गणित लगाने में व्यस्त हो गए।
यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हो चला है कि यहां टिकट निर्धारण से लेकर चुनाव कैंपेन के दौरान भाजपा के सांसद डॉ महेश शर्मा, विधायक तेजपाल नागर और विधान परिषद सदस्य श्रीचंद शर्मा की साख दांव पर लगी है। कुल नब्बे हजार से अधिक मतदाताओं में से 28 हजार मुसलमान हैं। इनकी अमूमन सभी वोट अय्यूब मलिक के पक्ष में पड़ी हैं जबकि ब्राह्मण, ठाकुर, गुर्जर, दलित वोटों में कम से कम तीन बंटवारे हुए हैं।
मुस्लिमों में खड़े तीन अन्य प्रत्याशियों को जमानत बचानी मुश्किल हो सकती है।इन सब के बावजूद हिंदू बहुल बूथों पर अपेक्षाकृत कम मतदान भी चिंता का कारण बना हुआ है। भाजपा के लोग सत्तारूढ़ होने के दम पर भी जीतने की आशा कर रहे हैं। हालांकि उनका यह भी मानना है कि छेद का रफू तो किया जा सकता है परंतु फटे हुए कपड़े पर थेगली कैसे लगाई जा सकती है। अन्य नगर पंचायतों में भी कमोबेश यही स्थिति है। इससे भाजपा के ही कुछ खेमों में खुशी का माहौल भी है।