श्रावणी उपाकर्म और रक्षाबंधन की तिथि पर ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। कुछ विद्वान जहां 20 अगस्त को त्योहार मनाने के पक्षधर हैं, वहीं कुछ 21 तारीख को।
दोनों ही तिथियों के पक्ष में उनके अपने-अपने तर्क हैं। ऐसी स्थिति में सामान्य जन के लिए त्योहार मनाने की तारीख तय करने में मुश्किल पेश आ रही है।
साल भर जाने-अनजाने में किए पापकर्मों के प्रायश्चित के लिए श्रावणी उपाकर्म किया जाता है। श्रावण पूर्णिमा को स्नान के बाद गंगा में खड़े होकर प्रायश्चित किया जाता है। उसके बाद ऋषि पूजा होती है। वाराणसी में यह प्रमुख त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
पूर्णिमा मंगलवार 20 अगस्त को दिन में नौ बजकर 21 मिनट से शुरू हो रही है। पूर्णिमा का आधा हिस्सा भद्रा होता है। इस प्रकार रात 8.25 तक भद्रा लगी रहेगी। महावीर पंचांग के पं. रामेश्वर नाथ ओझा का कहना है कि भद्रा में श्रावणी और होली मनाना वर्जित है।
मंगलवार को रात 8.29 के बाद से रक्षाबंधन और श्रावणी दोनों ही मनाया जा सकता है। शास्त्र की दृष्टि से संगत होते हुए भी श्रावणी और रक्षाबंधन दोनों ही अगले दिन मनाना उचित है। राखी बांधने से पहले उपवास का विधान है। रात्रि में रक्षाबंधन होने पर दिन भर भाई-बहन को व्रत करना पड़ेगा।
इसी प्रकार श्रावणी का स्नान रात को उचित नहीं जान पड़ता है। बुधवार को सुबह 7.25 तक पूर्णिमा मिल रही है। लिहाजा सुबह दोनों ही त्योहार मनाए जा सकते हैं। लोकमान्य सार्वजनिक गणेशोत्सव के पं. उपेंद्र विनायक सहस्त्रबुद्धे 20 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाने के पक्ष में हैं।
उनका कहना है कि धर्म सिंधु रक्षाबंधन के लिए सूर्योदय के बाद कम से कम तीन मुहूर्त या छह घटी पूर्णिमा होना मानता है। श्रावणी उपाकर्म के लिए 12 घटी से कम तिथि नहीं मिलनी चाहिए। बुधवार को ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसे में मंगलवार की रात को रक्षाबंधन और दोपहर के बाद श्रावणी होनी चाहिए।
बीएचयू के प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय के मुताबिक उदय काल में पूर्णिमा मिलने से बुधवार को ही रक्षाबंधन और श्रावणी दोनों मनाया जाना चाहिए। इसके लिए शास्त्र में पर्याप्त प्रमाण भी हैं।