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फेंकू भाई जिंदाबाद

आदरणीय भाई फेंकू, आप महान हैं। वाकई आप महान है। आपकी महानता का पता पूरी दुनिया को इस बात से चल जाना चाहिए कि मेरे जैसा लंतरानीबाज भी आपको उस्ताद मानने पर मजबूर हो गया है। आपकी फेंकने की क्या अदा है? बलिहारी जाऊं, आपकी इस अदा पर। जी चाहता है कि लपककर आपका मुंह चूम लूं, लेकिन दिक्कत यह है कि आप भी दाढ़ी रखते हैं और मैं भी। आपकी दाढ़ी के बाल सफेद हो गए हैं, मेरे अभी नब्बे फीसदी काले हैं। आपको बता दूं कि मैं बचपन से लेकर आज तक सिर्फ फेंकता ही आ रहा था। ऐसी-ऐसी फेंकता था कि घर वाले भी हैरान परेशान हो जाते थे। मेरे पिता जी अक्सर कहते थे कि बारह साल नली में रहने के बाद कुत्ते की पूंछ भले ही सीधी हो जाए, लेकिन यह लड़का नहीं सुधरेगा। और सचमुच… मैं नहीं सुधरा। मुझे सुधारने और सुधरा देखने की चाह लिए मेरे पूज्य पिता जी इस असार संसार को अलविदा कह गए। मरते समय उन्होंने मुझसे कहा भी था कि तुम्हें कोई तुमसे बड़ा फेंकू ही सुधार सकता है, दूसरा कोई नहीं। और आप देख लीजिए… मैंने आपको अपना उस्ताद मान लिया है। आपका मार्गदर्शन मिल जाए, तो मैं आपके बाद दुनिया का सबसे बड़ा फेंकू हो सकता हूं।

उस्ताद, मुझे आपसे एक शिकायत है। आप भगवान राम के उपासक हैं, यह जगजाहिर है। आपको भगवान राम का पुष्पक विमान मिल गया है, यह आपने न तो अपने इस अकिंचन शार्गिद को बताया, न ही पार्टी वालों को। इतना तो मैं भी जानता हूं कि रावण का वध करने के बाद भगवान राम पुष्पक विमान से अयोध्या आए थे, लेकिन उसके बाद वह पुष्पक विमान कहां गया, इसकी जानकारी शायद ही किसी को रही हो। जानते हैं उस्ताद, आपके आपदाग्रस्त क्षेत्र में जाने और पंद्रह हजार गुजरातियों को पुष्पक विमान पर बिठाकर सुरक्षित निकाल लाने पर भी ये कमअक्ल विरोधी हाय तौबा मचा रहे हैं। वैसे, इस मामले में मेरा ख्याल पूरी दुनिया से कुछ हटकर है। मेरा मानना है कि पुष्पक विमान के साथ-साथ आपके हाथ अलादीन का वह चिराग भी लग गया है, जिसको रगड़ने पर एक जिन्न प्रकट होता है और पूछता है, हुक्म मेरे आका। आपने पुष्पक विमान पर बैठकर आपदाग्रस्त क्षेत्र का सर्वेक्षण किया, पुष्पक विमान में ही अलादीन का चिराग रगड़ा और प्रकट हुए जिन्न को गुजरातियों को चुन-चुनकर लाने का हुक्म फरमा दिया। बस हो गया चमत्कार! अब आपको कोई गरज तो पड़ी नहीं है कि आप दुनिया को सफाई देते फिरें। आपका काम था अपने प्रदेशवासियों की रक्षा करना। सो, आपने किया। अब इसका प्रचार थोड़े न करना था आपको! इन विरोधियों को क्या कहा जाए। आप चुपचाप अपने काम में लगे रहिए, आखिरकार अपना मुंह पिटाकर ये विरोधी एक दिन चुप होकर बैठ जाएंगे।

उस्ताद, आप शायद नहीं जानते हों कि मैं लखनऊ में रहकर पला-बढ़ा हूं। लखनऊ तो फेंकुओं की राजधानी है। वहां की सरजमीं पर एक से बढ़कर एक फेंकू पैदा हुए हैं। आपको दो फेंकुओं की कथा सुनाता हूं। वे भी शायद आपसे दो-चार जूता पीछे ही हैं। एक नवाब दूसरे नवाब के यहां गया। दोनों खा-पीकर बैठे, तो फेंकने लगे। एक नवाब ने दूसरे से कहा, ‘एक बार मैं बंदूक लेकर शिकार करने गया। ऊपर आकाश की ओर देखा, तो एक कबूतर सूरज के आसपास मंडरा रहा था। मैंने गोली चलाई, जो जाकर कबूतर के लगी। कबूतर गिरा, तो मैंने उसे कैच कर लिया, देखा…उसका मांस भुना हुआ था। बस, नमक-मिर्च लगाना था। मैंने नमक-मिर्च लगाकर उसे खा लिया।’ दूसरे फेंकू ने कहा, ‘अरे! जाओ…यह भी कोई बहादुरी हुई? एक बार मैं शिकार करने गया, तो एक शेर से मुठभेड़ हो गई। मैंने शेर को देखते ही गोली दागी। शेर भागा। गोली उसके पीछे दौड़ी। तो जनाब हुआ क्या कि कभी गोली आगे, तो कभी शेर आगे। कभी शेर आगे, तो कभी गोली आगे। शेर भागता-भागता एक पहाड़ के सामने जा पहुंचा, गोली उस शेर को लग गई। मैंने देखा कि शेर पांच सौ फीट का तो रहा ही होगा।’ इतना सुनकर पहला नवाब चिल्लाया, ‘झूठ…झूठ…पांच सौ फीट का शेर तो हो ही नहीं सकता।’ दूसरे नवाब के पास खड़े एक दरबारी ने इशारा किया कि हुजूर! शेर की लंबाई कुछ घटाइए। दूसरे नवाब ने कहा, ‘नहीं…चूंकि मैं दूर था, सो हो सकता है कि मेरा अंदाजा गलत हो। लेकिन साहब…चार सौ फीट का तो रहा ही होगा।’ पहले वाले के आपत्ति जताने पर दूसरे नवाब ने फिर कहा, ‘नवाब साहब! मैं यह सब आपको अंदाजे से बता रहा हूं। जब मैं शेर के पास पहुंचा, तो मैंने फीता निकाला और शेर को नाप लिया। तो हां साहब…शेर पचास फीट का निकला।’ पहले नवाब ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा, ‘क्या जनाब! कहीं पचास फीट का शेर होता है? आप भी लंतरानी हांकते हैं।’ पास खड़े दरबारी ने नवाब साहब को शेर की लंबाई कम करने का इशारा किया, तो दूसरे नवाब ने झल्लाते हुए कहा, ‘अबे! अब कैसे घटाऊं…अब तो नाप दिया है।’ आदरणीय भाई फेंकू…आप इन नवाबों से भी चार जूता आगे निकल गए। हालांकि आपसे भी वही गलती हो गई। आपने शेर को फीता रखकर नाप दिया है, लेकिन इससे आपकी महानता कम नहीं होती, साहब! मैं तो अब भी कहता हूं, फेंकू भाई जिंदाबाद!

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अशोक मिश्र

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