16 और 17 जून को केदारनाथ में आई कुदरत की तबाही को अपनी आंखों से देखा था रुद्रप्रयाग जिले के डीएसपी रामेश्वर डिमरी ने। उनकी आंखों के सामने ही देखते-देखते सब कुछ तबाह हो गया। उन्होंने खुद तीन बार मौत को मात दी।
कुदरत की तबाही वाले दिन 57 वर्षीय डिमरी क्षेत्र में हेलीकॉप्टरों के इस्तेमाल पर चल रहे विवाद को निपटाने के लिए वहां गए हुए थे। 16 जून को उन्हें पता चला कि कुछ दुकानें बह गई हैं।
वे और एसडीएम आरके तिवारी केदारनाथ मंदिर के पीछे वाले हिस्से में 700-800 मीटर आगे गए थे। वहीं से मंदाकिनी बहती है।
उन्होंने बताया कि नदी की लहरों में छोटे-छोटे बोल्डर बहकर आ रहे थे जो खतरे की घंटी थे। शाम चार बजे दोनों अधिकारियों ने स्थानीय लोगों को मंदिर के भवन में चले जाने की घोषणा की।
नदी की उफनती लहरों को देखकर डिमरी ने रेड अलर्ट घोषित कर दिया। देर शाम जब वे दोनों मंदिर की ओर जा रहे तभी नदी की लहरें ऊंची उठने लगीं, देखते ही देखते उनके दो कर्मचारी मंदाकिनी में गिर पड़े।
उन लहरों ने डीएसपी डिमरी को भी अपने चपेट में ले लिया, लेकिन वह एक चट्टान को लगभग 45 मिनट तक कस कर पकड़े रहे। वह गले तक डूबे हुए थे। कुछ बच्चों ने उनकी जिंदगी बचाई।
घायल, ठंड से कांपते, नंगे पैर डिमरी को गार्ड रूम में लाया गया, जहां उन्होंने अपने कपड़े बदले।
‘मेरी जान नहीं बचती’
लगभग छह घंटे बाद यानी 17 जून को सुबह सात बजे वह कुछ दूरी पर टॉयलेट के लिए बाहर गए। तभी वे नदी की 15-20 फीट ऊंची लहरों में बह गए। उसमें बड़ी-बड़ी चट्टानें भी बह रही थीं। कुछ देर पहले वह जिस टॉयलेट के पास थे वह पानी में बह गया। जैसे ही वे गार्ड रूम के पास पहुंचे वह भी नष्ट हो गया।
उन्होंने बताया, ‘अगर कुछ मिनट और मैं टॉयलेट में रहा होता या कुछ मिनट पहले गार्ड रूम में पहुंच गया होता तो मेरी जान नहीं बचती।’ उन्होंने बताया कि दूसरी बार मंदिर की दीवार ने उनकी जान बचा ली। उन्होंने कसकर दीवार को पकड़े रखा, जिससे उनकी जान बच गई।
‘जब पानी कम होना शुरू हुआ तब तक मैं और अन्य लोग सुबह लगभग सात बजे से लेकर शाम साढ़े चार बजे तक एक ही अवस्था में रहे।’
पानी कम होने के बाद उन्होंने और दूसरे लोगों ने लगभग नष्ट हो चुके एक होटल में शरण ली। वे सभी लोग अगले दिन तक यानी 18 जून तक वहां रहे। उसी दिन एक निजी हेलीकॉप्टर ने उन लोगों को वहां से बाहर निकला।