खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का मतलब खाने की वस्तुओं की प्रोसेसिंग कर उसे नए रूप में पेश करने के कारोबार से है। भारत में लोगों की तेजी से बदलती लाइफ स्टाइल ने खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों की मांग में लगातार बढ़ोतरी की है।
ऐसे में कारोबारी इस क्षेत्र में कम निवेश और बेहतर कारोबारी सहायता के जरिए एक नया मुकाम बना सकते हैं, जिसके लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय कई सारी योजनाएं चला रहा है। इसके तहत नई इकाई लगाने, मौजूदा इकाई का आधुनिकीकरण करने, तकनीकी सहायता आदि के लिए सहायता मिल रही है।
किन उद्योगों में हैं संभावना
बेकरी उद्योग, रेडी-टू-इट फूड, पेय और बेवरेजेज, खाद्यान्नों की पिसाई यूनिट, खाद्य तेल से संबंधित उद्योग, फल और सब्जी की पैकेजिंग उद्योग, डेयरी, मांस उत्पादों की पैकिंग का कारोबार इसके तहत प्रमुख रूप से किया जा सकता है।
क्या है योजना
नए कारोबारी के साथ-साथ मौजूदा कारोबारी इसके तहत प्लांट और मशीनरी और तकनीकी सिविल काम की लागत का 25 फीसदी तक सहायता राशि प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि सहायता राशि 50 लाख रुपये से ज्यादा नहीं हो सकती है।
यह राशि सामान्य क्षेत्रों में रहने वाले कारोबारियों को मिलती है, जबकि जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, पूर्वोत्तर भारत के राज्य आदि क्षेत्रों में सहायता राशि कुल लागत का 33 फीसदी मिलती है।
इसके लिए अधिकतम राशि की सीमा 75 लाख रुपये तय की गई है। कारोबारी इसके जरिए जहां नई इकाई लगाने की शुरूआत कर सकते हैं, वहीं मौजूदा इकाई का आधुनिकीकरण और उत्पादन क्षमता का विस्तार भी कर सकते हैं।
कैसे मिलता है फायदा
छोटे कारोबारियों के लिए भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है, जिसके जरिए पात्र इकाई को बैंकों को डायरेक्ट क्रेडिट स्कीम का भी लाभ मिलता है।
ऐसे में कारोबारी सीधे सिडबी के कार्यालय से योजना के संबंध में जानकारी लेकर, आगे की कार्यवाही कर सकते हैं, जिसे करने के लिए सिडबी की तरफ से भी जरूरी सहायता दी जाती है।