समपादकीय : पुलिस और प्राधिकरण के निशाने पर पत्रकार क्यों ? राजेश बैरागी

राजेश बैरागी । यदि मैं यह कहूं कि बहुत सी सुनी सुनाई बातों के आधार पर ख़बरें चलाई जा सकती हैं तो यह पत्रकारिता की किताब में लिखे सिद्धांतों के विरुद्ध होगा। परंतु विश्वास योग्य बातों का साक्ष्य भी उपलब्ध हो ही जाए,यह संभव नहीं है। परंतु इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और समाचार पत्रों के पत्रकारों के समक्ष यह चुनौती हमेशा रहती है कि जिस सूचना को वे विश्वास योग्य मानते हैं, उसके साक्ष्य हमेशा उन्हें उपलब्ध हो ही जाएं। इसलिए सुनी सुनाई बातें अक्सर समाचार बनती रहती हैं।

एक पत्रकार साथी ने आज ट्वीट कर बताया है कि गौतमबुद्धनगर कमिश्नरेट पुलिस गलत कार्यों में लिप्त पत्रकारों पर शिकंजा कसने की योजना बना रही है। उसने दावा किया है कि पुलिस ऐसे पत्रकारों पर गैंगस्टर एक्ट का उपयोग भी करेगी। उसने यह सूचना किसी अधिकारी के हवाले से मिलने का उल्लेख नहीं किया है लिहाजा इस सूचना को सुनी सुनाई बात भी कहा जा सकता है और पत्रकारों पर खौफ कायम करने के उद्देश्य से पुलिस द्वारा उड़वाई गई खबर भी यह हो सकती है।

जनपद गौतमबुद्धनगर में अपराध बढ़ रहा है। कमिश्नरेट पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। भाजपा नेता सिंगा पंडित पर हुए भारी भरकम हमले के मामले में पुलिस की कोई कहानी फिट नहीं बैठ रही। ऐसे में पत्रकारों पर गैंगस्टर लगाने की खबर ही बचती है।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में हाल ही में सत्तर अस्सी लोगों को बिना शोर शराबे के भर्ती कर लेने का मामला मीडिया में छाया हुआ है। इस मामले की छाया में कुछ पत्रकारों द्वारा प्राधिकरण के कुछ अधिकारियों पर व्यक्तिगत निशाना साधा जा रहा है। उनके बच्चों द्वारा अपनी योग्यता से विभिन्न प्रतिष्ठानों में प्राप्त की गई नौकरी पर भी अनर्गल सवाल उठाए जा रहे हैं। इससे मूल मामले पर धूल पड़ती जा रही है और पत्रकारों के प्रति हेय दृष्टिकोण बन रहा है।

मैं वापस सुनी सुनाई बातों पर खबर बन जाने की प्रक्रिया पर लौटता हूं। यह आवश्यक नहीं कि हर खबर साक्ष्य से पुष्ट हो। परंतु जानबूझकर किसी को लक्ष्य बनाकर तैयार की गई खबर ब्लैकमेलिंग की पृष्ठभूमि तैयार करती है। यदि छिपा हुआ एजेंडा ब्लैकमेल करने का है तो पुलिस को यह अधिकार है कि वह पत्रकारों पर असल या फर्जी गैंगस्टर एक्ट लागू करे।

मंजिल पे होगा फैसला जीत हार का….

लेखक नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक के संपादक है