गुप्त नवरात्रि सोमवार 22 जून से प्रारम्भ हो रही हैं इस वर्ष ये पर्व आठ दिवस का ही रहेंगा। इस नवरात्रि में छठी तिथि का क्षय शुक्रवार के दिन होगा। इसलिए पंचमी और छठ पूजा एक ही दिन यानी 26 जून दिन शुक्रवार को की जाएगी।
गुप्त नवरात्रि में पर्व के साथ बन रहे है ये योग
22 जून सोमवार- प्रतिपदा, गुप्त नवरात्रि प्रारंभ
23 जून मंगलवार- द्वितीया, श्री जगन्नाथ रथयात्रा पुरी में
24 जून बुधवार- तृतीया, विनायक चतुर्थी व्रत
25 जून गुरुवार- चतुर्थी, रवियोग, शुक्र मार्गी
26 जून शुक्रवार- पंचमी, कुमार षष्ठी पूजा, सर्वार्थसिद्धि योग, षष्ठी का क्षय
27 जून शनिवार- सप्तमी, विवस्वत सप्तमी, रवियोग
28 जून रविवार- दुर्गाष्टमी, सर्वार्थसिद्धि योग
29 जून सोमवार- नवमी, भड़ली नवमी, गुप्त नवरात्रि पूर्ण, नवमी पूजा
गुप्त नवरात्रि का महत्व
देवी भागवत पुराण के अनुसार चार नवरात्रि मनाई जाती है। पहली नवरात्रि माघ महीने में, दूसरी नवरात्रि चैत्र महीने में, तीसरी नवरात्रि आषाढ़ महीने में मनाई जाती है। जबकि चौथी और अंतिम नवरात्रि अश्विन माह में मनाई जाती है, जिसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।
माघ और आषाढ़ में मनाई जाने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इसमें संत साधक देवी की दश महाविद्याओं की साधना करते हैं
गुप्त नवरात्रि क्या है- गुप्त नवरात्रि किसी खास मनोकामना की पूजा के लिए तंत्र साधना का मार्ग लेने का पर्व है। किंतु अन्य नवरात्रि की तरह ही इसमें भी व्रत-पूजा, पाठ, उपवास किया जाता है। इस दौरान साधक देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के अनेक उपाय करते हैं। इसमें दुर्गा सप्तशती पाठ, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सहस्त्रनाम का पाठ काफी लाभदायी माना गया है।
गुप्त नवरात्रि की देवियां- मां काली, तारादेवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी माता, छिन्न माता, त्रिपुर भैरवी मां, धुमावती माता, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी इन 10 देवियों का पूजन करते हैं।
नवरात्रि में देवी के 9 रूपों की पूजा होती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेष कर तांत्रिक कियाएं, शक्ति साधनाएं, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं।
गुप्त नवरात्रि में की जाने वाली साधना को सबके सामने प्रकट न कर गुप्त रखा जाता है। इस साधना से देवी प्रसन्न होती हैं तथा मनचाहा वर देती हैं।
साधक उपासना अर्चना के लिए ये तरीके
तांत्रिक सिद्धियां पाने के लिए यह एक अच्छा अवसर है। इसके लिए किसी एकांत जगह पर जाकर दस महाविद्याओं की साधना करें।
जिस प्रकार शिव के दो रूप होते हैं एक शिव तथा दूसरा रूद्र उसी प्रकार भगवती के भी दूर रूप हैं एक काली कुल तथा दूसरा श्री कुल। काली कुल रौद्र, आक्रमकता का प्रतीक होती हैं और श्रीकुल शालीन होती हैं। काली कुल में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी हैं। यह स्वभाव से उग्र हैं। श्री कुल की देवियों में महा-त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला हैं। धूमावती को छोड़कर सभी सौंदर्य की प्रतीक हैं।
ज्योतिष के महत्वपूर्ण ग्रंथ बृहतसंहिता में आषाढ़ मास के ग्रहण की भविष्यवाणी के संदर्भ में विवरण प्राप्त होता है। बृहत्संहिता के राहुचाराध्याय में लिखा है कि-
आषाढ़पर्वण्युदपानवप्रनदी प्रवाहान फलमूलवार्तान।
गांधारकाश्मीरपुलिन्दचीनान् हतान् वदेंमण्डलवर्षमस्मिन्।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि आषाढ़ मास की अमावस्या में सूर्य ग्रहण और पूर्णिमा में चंद्र ग्रहण हो तो उदपान यानी वापी, कुएं, नदी और तालाब के किनारे में रहने वाले लोगों को, फल मूल खाने के वाले, गांधार, कश्मीर, पुलिंद, चीन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन क्षेत्रों में कोई प्राकृतिक आपदा आ सकती है या किसी अन्य वजह से यहां संकट आता है।
गुप्त नवरात्र एक पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि श्रंगी भक्तों को प्रवचन दे रहे थे। इसी दौरान भीड़ से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि के सामने आई और अपनी समस्या बताने लगी। स्त्री ने कहा कि उनके पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं और इसलिए वह किसी भी प्रकार का व्रत, धार्मिक अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। स्त्री ने साथ ही कहा कि वह मां दुर्गा के शरण में जाना चाहती है लेकिन पति के पापाचार के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है।
यह सुन ऋषि ने बताया कि शारदीय और चैत्र नवरात्र में तो हर कोई मां दुर्गा की पूजा करता है और इससे सब परिचित भी हैं लेकिन इसके अलावा भी दो और नवरात्र हैं। ऋषि ने बताया कि दो गुप्त नवरात्र में 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। ऋषि ने स्त्री से कहा कि इसे करने से सभी प्रकार के दुख दूर होंगे और जीवन खुशियों से भर जाएगा। ऐसा सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में गुप्त रूप से ऋषि के अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की। मां दुर्गा इस श्रद्धा और भक्ति से हुईं और इसका असर ये हुआ कि कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ। साथ ही स्त्री का घर भी खुशियों से भर गया।
हम जिस मंत्र का जाप करते हैं, उसे गुप्त रखें और उसका उच्चारण सही होना चाहिए
देवी-देवताओं की पूजा में मंत्र जाप करने का विशेष महत्व है।
मंत्र 3 प्रकार के होते हैं। वैदिक, तांत्रिक और शाबर मंत्र।
शाबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध होते हैं, तांत्रिक मंत्र में इससे थोड़ा ज्यादा समय लगता है और वैदिक मंत्र को सिद्ध होने में बहुत ज्यादा समय लगता है। शाबर मंत्र और तांत्रिक मंत्र की अपेक्षा वैदिक मंत्र सिद्ध होने के बाद हमेशा लाभ पहुंचाते हैं।
जाप भी प्रकार के होते हैं। वाचिक जाप, मानस जाप और उपांशु जाप।
वाचिक जाप- ऊंची आवाज में और स्पष्ट शब्दों के साथ मंत्र का उच्चारण करना वाचिक जाप कहलता है।
मानस जाप- मानस जप में मन ही मन मंत्र का जाप किया जाता है।
उपांशु जाप- उपांशु जाप में जाप करने वाले की जीभ और होंठ हिलते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती।
जाप करने वाले व्यक्ति ध्यान रखनी चाहिए ये बातें
मंत्र जाप में ध्यान देने वाली बात ये है कि मंत्र का सही उच्चारण होना चाहिए। जिस मंत्र का जाप करना है, उस मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। किसी बताना नहीं चाहिए कि आप कौन से मंत्र का जाप कर रहे हैं। मंत्र जाप करने वाले व्यक्ति को सत्कर्म पुण्य करते रहना चाहिए। साफ आसन पर बैठकर मंत्र जाप करना चाहिए। घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और वर्जित कार्यो से बचना चाहिए।
मंत्रों से भिन्न-भिन्न समस्याओं के निवारण किए जा सकते हैं किसी योग्य विद्वान के परामर्श से ही कार्य सिद्धि हो सकती हैं।
मंत्र- ‘ॐ सर्वाबाधासु घोरासु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा।
स्मरन्ममैतच्चरितं नरो मुच्येत संकटात्।।’
दु:ख दारिद्रय विनाश के लिए अयुत (10,000) जप तथा दशांस होम, पायस घृतादि से होम।
मंत्र- ‘ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तौ:,
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीवशुभां ददासि।
दारिद्रय दु:ख भय हारिणी का त्वदन्या,
सर्वापकारणाय सदार्द्र चित्ता।’
बलवान शत्रु को परास्त करने के लिए अयुत जप दशांस होम तिल, सरसों, उड़द व घृत से करें।
मंत्र- ‘ॐ क्षणेन तन्महासैन्यसुराणां तथाम्बिका।
निन्ये क्षयं यथा वह्निस्तृणदारूमहाचयम।।’
‘ॐ गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत् पिबाम्यहम,
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवता।।’
वित्त-समृद्धि हेतु अयुत जप दशांस हवन पंच मेवा, पायस, पुष्प-फल, घृत आदि से।
मंत्र- ‘ॐ यश्च मर्त्य: स्तवैरेभि: त्वां स्तोष्यत्यमलानने।
तस्य वित्तर्द्धिविभवै: धनदारादिसम्पदाम्।।’
‘ॐ वृद्धेयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथा: सर्वदाम्बिके।’
‘ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यसुन्तावित:
मनुष्यो मत् प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।’
आकर्षण बढ़ाने हेतु वशीकरण के लिए जप कर पायस, तिल, इलायची, बिल्व पत्र या पत्र, घृत आदि से हवन करें। 10 हजार जप आवश्यक हैं।
मंत्र- ‘ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा, बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।’
उपरोक्त मंत्रों का नवरात्रि में संकल्प लेकर यथाशक्ति देवी के चित्र-यंत्रादि का पूजन करें। सात्विक भोजन, ब्रह्मचर्य जीवन तथा नगर की सीमा नहीं लांघें। देवी अवश्य कृपा करेंगी। समस्या बड़ी हो तो नित्य गुरु आज्ञा अनुसार माला मंत्र की जपें। आवश्यकतानुसार मंत्र सिद्ध किए जा सकते हैं।
साथ ही इन मंत्रों का करें जाप
शैलपुत्री- ह्रीं शिवायै नम:।
ब्रह्मचारिणी- ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
चन्द्रघण्टा- ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
कूष्मांडा- ऐं ह्री देव्यै नम:।
स्कंदमाता- ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
कात्यायनी- क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
कालरात्रि – क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
माँ दुर्गा के सिद्ध चमत्कारी तांत्रिक मंत्र
1- ॐ ह्रींग डुंग दुर्गायै नमः।
2- “ॐ अंग ह्रींग क्लींग चामुण्डायै विच्चे।
3- सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
इसके साथ दुर्गाशप्तशती पाठ करे नवार्ण मन्त्र जप करे
यह गुप्त नवरात्रि धन, संतान सुख के साथ-साथ शत्रु से मुक्ति दिलाने में भी प्रभावकारी है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिंतक