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३०० साल पुरानी भविष्यवाणी होगी सच : नो बजे से नो मिनट दीपदान, गुजरात का एक भक्त आएगा और दिल्ली से दिया जलायेगा और उसके बाद भारत विश्व का नेतृत्व करेगा और विश्वगुरु बनेगा

5 अप्रेल को रात्रि नो बजे से नो मिनिट तक घर के मुख्यद्वार पर दीप प्रज्वलन । आईये जानने का प्रयास करते है क्या छुपा हो सकता है इसमें अद्भुत रहस्य।

इस विषय पर जितना भी विचार किया जाए कम होगा क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से, ज्योतिषीय दृष्टि से, पौराणिक दृष्टि से, ब्रह्मांड के पंच भूतों से जुड़े समस्त तत्वों पर जब चिंतन किया तो ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां से इस कार्य से सकारात्मक ऊर्जा नहीं दिखाई दे रही आइये थोड़ा चिंतन और गहरा किया जाए।

दीप प्रज्वलित कर जब हम कोई कार्य आरंभ करते हैं, तब अपनी आत्मज्योति के बल पर किए गए दीपपूजन द्वारा हम ब्रह्मांड के विशिष्ट देवता के तत्त्व का आवाहन करते हैं एवं दैविक तरंगों से कार्यस्थल पर आने हेतु प्रार्थना करते हैं । इससे हमारे कार्य के लिए ईश्वरीय संकल्पशक्ति कार्यरत होती है एवं मनोवांछित कार्य सिद्ध होता है ।ज्योतिद्वारा प्रक्षेपित रजोगुणी-कणों की गतिविधियों के कारण, ब्रह्मांड में विद्यमान ईश्वरीय निर्गुण कार्यतरंगों का रूपांतरण, सगुण रजोगुणी कार्यतरंगों में होता है । ईश्वरीय क्रियाशक्ति के बल पर कार्यस्थल के चारों ओर इन कार्यतरंगों का सुरक्षा-कवच निर्मित होता है ।

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते।।
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।।

दीप प्रकाश का द्योतक है, तो प्रकाश ज्ञान का। परमात्मा से हमें संपूर्ण ज्ञान मिले इसीलिए दीप प्रज्वलन करने की परंपरा है। कोई भी पूजा हो या किसी समारोह का शुभारंभ। समस्त शुभ कार्यों का आरंभ दीप प्रज्वलन से होता है।

पीएम मोदी ने कई बार 8 बजे राष्ट्र को संबोधित किया। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि लॉकडाउन के समय करोड़ों लोग घरों में हैं, कुछ लोग सोच रहे हैं कि इतनी बड़ी लड़ाई को अकेले कैसे लड़ पाएंगे। कितने दिन ऐसे काटने पड़ेंगे। यह लॉकडाउन का समय जरूर है, हम अपने-अपने घरों में जरूर हैं, हम में से कोई अकेला नहीं है. 130 करोड़ लोगों की सामूहिक शक्ति सबके साथ है।

तारीख 5 ही क्यों चुनी? रविवार ही क्यों चुना? 9 बजे का वक्त ही क्यों चुना? 9 मिनट का समय ही क्यों चुना? जब पूरा लॉकडाउन ही है तो शनिवार, शुक्रवार या सोमवार कोई भी चुनते क्या फर्क पड़ता? जिनको अंकशास्त्र की थोड़ी भी जानकारी होगी, उनको पता होगा कि 5अंकबुध का होता है,यह बीमारी गले फेफड़े में ही ज्यादा फैलती है, मुख गले फेफड़े का कारक भी बुध ही होता है,बुध राजकुमार भी है।

रविवार सूर्य का होता है। सूर्य हैं ग्रहों के राजा। दीपक या प्रकाश भी सूर्य का ही प्रतीक है 9 अंक होता है मंगल सेनापति, रात या अंधकार होता है शनि का। अब रविवार 5 अप्रैल को, जोकि पूर्णिमा के नजदीक है,मतलब चन्द्र यानी रानी भी मजबूत,सभी प्रकाश बंद करके, रात के 9 बजे, 9 मिनट तक टॉर्च दीपक फ़्लैश लाइट आदि से प्रकाश करना है।
चौघडिय़ा  अमृत रहेगी, होरा भी उस वक्त सूर्य का होगा,शनि के काल में सूर्य को जगाने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है। 9-9 करके सूर्य के साथ मंगल को भी जागृत करने का प्रयास। मतलब शनि राहु रूपी अंधकार महामारी को  उसी के शासनकाल में में बुध सूर्य चन्द्र और मंगल मिलकर हराने का संकल्प लेंगे। जब राष्ट्र के कर्णधार सुरक्षित व सशक्त हैं, तो उत्तरोत्तर उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।

5 अप्रैल को रात्रि 9 बजे चैत्र माह शुक्ल पक्ष में त्र्योदशी तिथि, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में तुला लग्न और सिंह राशि का चंद्रमा गोचर मे होगा। उस समय श्री अनंग त्रयोदशी भी है। अनंग अर्थात मंगल। आम जनता की जान-माल की रक्षा और सुख, स्वास्थ्य के लिए चतुर्थ भाव में उच्च के मंगल की शनि और गुरु के साथ युति महत्वपूर्ण कारक है जिसमें शनि के अंधकार को मंगल की ऊर्जा को बढ़ाने से अवश्य किया जा सकता है। आमजन के मनोबल को बढ़ाने के लिए सिंह अर्थात सूर्य की राशि मे बैठे चंद्रमा को जलते हुए दीपकों से अवश्य बल मिलेगा। ज्योतिर्विद रविशराय गौड़ के अनुसार उस अवधि में सूर्य रेवती नक्षत्र में होगा और चंद्रमा पूर्वाफाल्गुनी में अर्थात समस्त दोषनाशक रवि योग बन रहा है।

सूर्यदेव को राजसत्ता के साथ जीवन-ऊर्जा का स्रोत माना गया है और पृथ्वी पर अग्निदेव को सूर्यदेव का परिवर्तित रूप कहा गया है। इसी कारण जीवन प्रदान करने वाली जीवन-ऊर्जा को केंद्रीभूत करने के लिए दीप प्रज्वलित होने वाली अग्नि के रूप में सूर्यदेव को देव-पूजन आदि में अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाता है।

पांच अप्रैल को रात्रिकाल अर्थात रात्रि नौ बजे पूर्वा फाल्गुनि नक्षत्र है, जिससे सिंह राशि बनती है। जिसका अधिपति सूर्य है। सूर्य परमेश्वर की ज्योति का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोक में अंधकार से प्रकाश की स्थापना करते हैं। गार्हस्थ्य, (4) दक्षिणाग्नि और (5) क्रव्यादाग्नि, जिसमें पहले का अरणिमंथन के द्वारा उत्पत्ति होती है। द्वितीय का ब्रह्मचारी को अग्निहोत्र के उपनयन के समय प्राप्त होता है। तृतीय का विवाहोपरांत कुल में प्रतिष्ठित होकर शुभकर्मों में इसका प्रयोग होता है। चतुर्थ का उपयोग चिताग्नि के रूप में होता है। पंचम का उपयोग बाह्य उपद्रव के शमन अर्थात राक्षस, बाह्यबाधा, अदृश्य शक्तियों के उपद्रव का विनाश और अवरोध हो इसके लिए किया जाता है। मोमबत्ती और मोबाइल की लाइट का प्रयोग भी किया जा सकता है किंतु यह ज्योतिष की द्रष्टि से उतना कारगर उपाय नही है।

अंक विद्या से भी बन रहा है अदभुत संयोग


अंक विद्या के द्वारा 9 संख्या पांच अप्रैल 2020 को आ रही है। रात्रि नौ बजे नौ मिनट का समय निर्धारण कार्य की पूर्णता और शुभता का प्रतीक है। क्योंकि 9 संख्या को
पूर्ण संख्या माना जाता है। संयोग भी कह सकते हैं कि 3 अप्रैल को सुबह 9 बजे
प्रधानमंत्री ने देश का आह्वान किया। प्रधानमंत्री का संबोधन भी हुआ मात्र 9 मिनट। संबोधन की तारीख 3. 4. 20 (3+4+2+0)=9 । 5 अप्रैल का दिन यानी (5 + 4) का योग हुआ 9।समय रात 9
बजकर 9 मिनट। वस्तुत: 9 का अंक अविभाज्य होता है। 9 में कितनी भी बार 9 जोड़ें फलांकों का योग 9 ही होगा।

वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश का अपना अलग महत्‍व है। रोशनी में गर्मी तो होती ही है साथ ही यह नकारात्तमक वस्तुओं को नष्‍ट भी करता है जैसे कि बैक्‍टीरिया, वायरस आदि।

सनातन संस्कृति में ऋषियों के बनाए कोई भी नियम या परंपरा खोखली नहीं है। हमारे पूर्वाचार्यो, ऋषियों ने गहन शोध के बाद ही हर उस नियम को जीवन से जोड़ा है, जो सार्वजनिक रूप से सकारात्मकता लाता है। दीपक जलाना भी एक ऐसा ही नियम है, जो जीवन को उसके मूलतत्वों से जोड़ता है और व्यक्ति को सकारात्मक रूप से ऊर्जावान बनाता है।

पीएम मोदी के द्वारा रोशनी की अपील करने के पीछे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों वजह हैं। दरअसल इन दोनों ही क्षेत्रों में रोशनी या प्रकाश का अपना महत्व है। नकारात्म चीजों को खत्म करता है प्रकाश वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रकाश की वजह से नकारात्म चीजे नष्ट होती हैं। दरअसल प्रकाश में गर्मी होती है ऐसे में इसकी वजह से वायरस और बैक्टिरिया आदि आसानी से नष्ट हो जाते हैं।

हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है

दूसरी बात यह है कि हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है, जिनमें धरती, आकाश, अग्नि, वायु और जल सम्मिलित हैं। इनमें भी अग्नि हमारे अस्तित्व का एक अटूट हिस्सा है। माना जाता है कि जब हम किसी कार्यक्रम, पूजा-पाठ आदि के प्रारंभ में दीप प्रज्वलित करते हैं तो उसी के साथ हम अपने अस्तित्व को जीवंत कर रहे होते हैं।

ब्रह्मांड का निर्माण भी पंचतत्वों के न्यूनाधिक संयोजन से हुआ माना जाता है। इसीलिए पंचतत्वों में सम्मिलित अग्नि महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वह ऊर्जा का मुख्य स्रोत होती है। समस्त ब्रह्मांड सूर्य या अग्नि से ही ऊर्जा पाता है। इसीलिए जब हम किसी धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम से पहले दीपक जलाते हैं तो समस्त ब्रह्मांड की ऊर्जा वहां केंद्रीभूत हो जाती है।

शारीरिक संरचना के 5 प्रमुख तत्वों में अग्नि का प्रमुख स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि अग्निदेव की उपस्‍थिति में उन्हें साक्षी मानकर किए गए कार्यों में सफलता अवश्य मिलती है और प्रज्वलित दीप में अग्निदेव वास करते हैं। यही कारण है की पूजा में दीपक को अतिमहत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्।
सोत्साहस्य हि लोकेषु न किंचिदपि दुलर्भम्।।
उत्साह बड़ा बलवान होता है, उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं होता है। उत्साही पुरुष के लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड का यह श्लोक भी दीपक प्रज्वलन परंपरा के मूल में है। भारतीय परंपरा में दीप अति महत्वपूर्ण है। दीप ज्योति को श्रेष्ठ और विष्णु कहा गया है। इसे पापों को हरने वाला कहा गया है।

पूर्व और पश्चिम मुखी भवनों में मुख्यद्वार पर शाम के समय सरसों तेल के दीपक जलाने की परंपरा है। इसके पीछे मान्यता है कि किसी भी प्रकार की बुरी आत्मा और बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर सकती है।

दीपप्रज्वलन के लिए प्रयुक्त दीपस्तंभ (दीपक) में तेल का प्रयोग करें । तेल रजोगुणी तरंगों के तथा घी सात्त्विक तरंगों के प्रक्षेपण का प्रतीक है । किसी भी कार्य को गति प्रदान करने हेतु रजोगुणी क्रियातरंगें आवश्यक होती हैं । तेल की ज्योति ब्रह्मांड में विद्यमान देवताओं की क्रियातरंगों को जागृत कर उन्हें कार्यरत रखती है; इसलिए दीपप्रज्वलन हेतु प्रयुक्त दीपस्तंभ में तेल का प्रयोग श्रेयस्कर है ।

धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती है? जी हां, धनतरेस के दिन शाम को पूजा के बाद घर के बाहर एक बड़ा दीपक जलाकर रखा जाता है, उस दीपक का नाता यम देवता से है।

यमाय धर्मराजाय मृत्यवे चांतकाय च।
वैवस्वताय कालाय सर्वभूतक्षयाय च।।
औदुम्बराय दध्नाय नीलाय परमेष्ठिने।
वृकोदराय चित्राय चित्रगुप्ताय वै नमः।।

चोदह यम की नामावली :- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त – इन चौदह नामों से यमराज की आराधना होती है। यम को दिप दान करना चाहिए। इन चोदह यम ओर यम लोक के स्वामी भगवान श्री चित्रगुप्त का स्मरण करना चाहिए और यमराज के लिए यह दीपक अवश्य जलाना चाहिए ऐसा कहा गया है ।

वैसे तो कई भविष्यवाणियों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत कर दिया जाता है और आज के प्रसंग में एक भविष्यवाणी मुझे बहुत सटीक लग रही है जो लगभग 300 वर्ष पुरानी है राजस्थान में बांसवाड़ा के पास है कि स्थान है बेणेश्वर धाम वहां पर भगवान निष्कलंक विराजमान है इस स्थान पर एक विद्वान ने भविष्य वाणी में लिखा है

गुजरात का एक भक्त आएगा और दिल्ली से दिया जलायेगाय और उसके बाद भारत विश्व का नेतृत्व करेगा और विश्वगुरु बनेगा।

यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणाः इन्द्रं यमं मातरिश्वा नमाहुः।
वेदान्तिनो निर्वचनीयमेकम् यं ब्रह्म शब्देन विनिर्दिशन्ति॥

5 अप्रैल के लिए किये गए आह्वान के ज्योतिषीय , वैज्ञानिक दृष्टि को समझना आवश्यक है। सम्पूर्ण राष्ट्र में कोरोना के विरुद्ध एकजुट शक्ति की नितांत आवश्यकता है क्योंकि कोरोना किसी जाति या मजहब को देखकर नहीं फैल रहा है। यह सबको निशाना बना रहा है। इसलिए मानी जानी चाहिए माननीय प्रधान मंत्री मोदी जी की बात।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक

NCRKhabar Mobile Desk

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