जिन युवाओं को भविष्य र्निमाण के लिये अकादमिक चर्चा करनी थी वह विचारधारा की बहस मे उलझे हैं – शाहिद नकवी

देश का सबसे प्रतिष्ठित विश्वनविद्यालय, कई किलोमीटर तक फैले दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वकविद्यालय परिसर मे कोई किसी भी पृष्ठ़भूमि से आये लेकिन यहां उसे खुल कर जीना सिखा दिया जाता है ।इसी लिये यहां शिक्षा हासिल करना हर छात्र का सपना होता है । लेकिन पिछले कुछ महीनों से गर्व करने लायक शिक्षा का ये मंदिर कुछ अलग कारणों से सुर्खियों मे है । कभी यहां अश्लीमलता और यौन उत्पीड़न की शिकायत पर हंगामा बरपा होता है गुरू और शिष्य का रिश्ताो कलंकित होता है तो कभी दलित और महिला उत्पीड़न की खबरों से हलचल मचती है ।देश के अपराधी संसद पर हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरु की फांसी की बरसी विश्वेविद्यालय परिसर मे मनाया जाना और भारत विरोधी नारे लगना वाकई चिंतनीय है।दरअसल जेएनयू मे वैचारिक टकराहट और विवाद का ये पहला मामला नही है ।

आधुनिक सोच,खुले विचारों और शिक्षा की बयार के बीच जेएनयू वह कैंपस है, जहां पर 1975 में आपातकाल का पुरजोर विरोध किया गया था। यहां के छात्रों ने 1984 में सिख विरोधी दंगों का विरोध किया तो बाबरी ध्वंस और गुजरात दंगे का भी यहां विरोध हुआ।ये वही कैम्प स है जहां पूर्व प्रधानमंत्री स्वह.इंदिरा गांधी से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी तक को काले झंडे दिखाए गए। यहां आमतौर पर प्रति वर्ष 300 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होते हैं।यह बुद्धिजीवियों का भी आश्रय है और इसने राष्ट्र निर्माण में काफी योगदान दिया है।यहां से निकल कर कई नामचीन हस्तिययों ने राजनीति से लेकर हर क्षेत्र मे देश की सेवा की है । छात्र गुणवत्तापूर्ण पुस्तकें लिखते और संपादित करते हैं जो यहां की अकादमिक सक्रियता को दर्शाता है ।

दिक्कत ये है कि शैक्षणिक जगत में बौद्धिक स्तर पर विचारधारा की बात होने के बजाय अन्य स्तरों पर टकराव के रूप में सामने आने लगी है।छात्रसंघ को संबोधित करने के लिए किसी अकादमिक शख्सियत को बुलाया जाना चाहिए लेकिन आज कल नया चलन विचारधारा प्रधान लेक्चिर का चल पड़ा है जो अक्सएर सियासी होतें हैं ।जिनसे विचारधारा प्रधान सियासी बयार बहने लगती है ।हाल के दिनों मे देश के आधा दर्जन से अधिक उच्चध शिक्षा संस्थाानों मे विचारधारा को लेकर विवाद की खबरें आयी । नतीजन जिन युवाओं को भविष्यच र्निमाण के लिये अकादमिक चर्चा करनी चाहिये वह विचारधारा की बहस-मुबाहिसे मे उलझ जातें हैं ।जरूरी है कि हमारे नीति नियंता इस बात पर भी गौर करें कि देश के तमाम विश्व विद्यालयों मे शिक्षा के नाम पर क्या हो रहा है ।गम्भीररता से सोचना चाहिये कि इसकी साख पर भी बट्टा ना लगने पाये ।

शाहिद नकवी