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2011 मानेसर – मारुती काण्ड : वामपंथी दंगो की प्रयोगशाला : शरद श्रीवास्तव

कहा जाता है की गुजरात हिन्दू ताकतों के लिए एक प्रयोगशाला था। लैब एक्सपेरिमेंट था। आज एक नयी कहानी लिखता हूँ एक और लैब की जहां कम्युनिस्टो ने भी एक एक्सपेरिमेंट किया था।

दिल्ली से सटे मनेसर मे मारुति ने अपना नया प्रोडकशन यूनिट शुरू किया था जहां मुख्यतः स्विफ्ट कार का उत्पादन होना था। गुड़गाँव मे मारुति का विशाल कारख़ाना था ही। मारुति उस समय कट थ्रोट कंपीटीशन से जूझ रही थी। तमाम कंपनिया उसके मार्केट पर चढ़ी बैठी थीं। और स्विफ्ट मारुति का हॉट सेलिंग केक थी। मारुति की जान थी। ये हालात थे की जितना बनाओ उससे ज्यादा डिमांड थी।

मारुति ने अपने प्लांट मे स्विफ्ट की प्रोडकश्न अधिकतम रखने के लिए कुछ नए रूल बनाए। मजदूरो को 8 घंटे की शिफ्ट मे सिर्फ 20 मिनट लंच, 7 मिनट चाय के और डेढ़ मिनट बाकी किसी और काम के लिए मिले। यहाँ तक की मजदूरो के लिए बाथरूम भी जाना मुश्किल था। एक सेकंड फालतू, आधे दिन की सैलरी कट जाती थी। अगर किसी दिन की छुट्टी किसी ने ले ली तो उसकी तनख्वाह से डेढ़ हजार रुपए काट लिए जाते थे। मजदूर, मजदूर न होकर काम करने वाले रोबोट हो गए थे। और इन सबके बाद मजदूरो की मानेसर प्लांट मे कोई यूनियन नहीं थी जो आवाज उठा पाती।

स्टेज सेट थी। कुछ कम्युनिस्ट क्रांतिकारी संगठनो ने मौके को पहचाना और मजदूरो को जागृत करना शुरू किया। अंत मे 2011 जून मे मजदूरो ने चंडीगढ़ जाकर हरियाणा सरकार के लेबर ऑफिस मे यूनियन बनाने के लिए अर्जी डाल दी। अगले दिन 4 जून को मारुति ने उन वर्करो को कंपनी से निकाल दिया जो यूनियन की मांग को लेकर चंडीगढ़ गए थे। और नतीजा खतरनाक निकला। मजदूरो ने फैक्ट्री को आक्युपाई कर लिया, पहली स्ट्राइक शुरू हो गयी। तेरह दिन तक ये स्ट्राइक चली। समझौता हुआ। इस समझौते मे 11 वर्कर जो निकाले गए थे मारुति ने उन पर एंक्वायरी करके वापस ले लेने का ऐलान किया। मजदूरो ने काम करने की स्थिति को सुधारने के लिए कोई डिमांड नहीं रखी।

इस स्ट्राइक को नेतृत्व देने के लिए भारत भर के वामपंथी आगे आए। जेएनयू से छात्र, प्रोफेसर बसो मे भर भर के मारुति जाते थे, उनके साथ प्रोटेस्ट करते थे। मारुति के बाहर मजदूरो को संबोधित करते थे। अखबारो मे वाम नेताओं के बयान आते थे।

एक महीने के अंदर इस समझौते की भी पोल खुली। हरियाणा सरकार ने नयी यूनियन बनाने की मांग मे कई टेक्निकल खामियाँ निकाल दी। जैसे सिग्नेचर मैच नहीं हो रहे थे। मारुति मैनेजमेंट ने भी आरोप लगाया की मजदूर जानबूझ कार उत्पादन स्लो कार रहे हैं। प्लांट मे अशांति की छोटी मोटी घटनाए होने लगी । 27 जुलाई 2011 को 4 कांट्रैक्ट मजदूर अशांति फैलाने मे गिरफ्तार कर लिए गए। जहां 900 परमानेंट मजदूर थे, वहीं 2000 से ऊपर कांट्रैक्ट मजदूर और अस्थायी मजदूर थे। कांट्रैक्ट मजदूरो को परमानेंट मजदूरों की आधी सैलरी और अस्थायी मजदूरो को एक तिहाई सैलरी मिलती थी। लेकिन काम सभी को बराबर करना पड़ता था। इस इंतजाम से कंपनी को प्रॉफ़िट मैक्सिमम रखने मे मदद मिलती थी।

28 अगस्त को मारुति ने मजदूरो के काम करने की एक नयी शर्त रख दी। बिना गुड कंडक्ट बॉन्ड पर साइन किए मजदूरो को फैक्ट्री मे घुसने देने से इंकार कर दिया गया। करीब 400 पुलिस वालों ने फैक्ट्री मे घेरा डाल दिया। और अगली स्ट्राइक के लिए स्टेज सेट हो गयी। इस स्ट्राइक मे मारुति का साथ आस पास की कंपनियो के मजदूर साथियो ने भी दिया।

जहां मारुति के पक्ष मे खुद पीएम मनमोहन सिंह ने बयान जारी किया, हरियाणा सरकार ने पुलिस देकर पूरा सपोर्ट किया, वहीं मजदूरो के साथ कम्युनिस्ट छात्र संगठन थे, जेएनयू था। दिल्ली, कलकत्ता यहाँ तक की जापान तक मे प्रदर्शन आयोजित किए गए।

मारुति ने 62 और मजदूरो को कंपनी से निकाल दिया। 7 अक्तूबर को कंपनी ने आरोप लगाया की वर्कर्स ने अन्य मजदूर जो बॉन्ड पर साइन कर चुके हैं, सुपर वाइजर, इंजीनियरो के साथ मार पीट की है, तोड़ फोड़ की है। आगजनी की है।

मारुति ने परमानेंट मजदूरो के परिवार वालों तक को उनके मोबाइल पर मेसेज भेज कर उनसे हड़ताल को वापस लेने की अपील की।

अंत मे 55 दिनों के बाद समझौता हुआ। नयी यूनियन की मांग मान ली गयी। मारुति ने निकाले गए मजदूरो को वापस लेना स्वीकार कर लिया। लेकिन मैनेजमेंट ने एक और षड्यंत्र किया। उन्होने मजदूर नेताओं को विवश कर दिया फैक्ट्री छोड़ने के लिए। ऐसा कहा जाता है की जो मजदूर नेता थे, उन्हें एक एक करोड़ रुपए देकर इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया। मजदूरो की यूनियन को कमजोर रखने के हर संभव प्रयास हुए।

और सबसे बड़ी बात इस हड़ताल के बाद भी वर्किंग कंडीशन मे कोई सुधार नहीं हुआ।

और अंत मे 2013 जुलाई मे मजदूरो का गुस्सा फिर से फूटा, जिसमे आगजनी की एक बड़ी घटना मे सीनियर एचआर मैनेजमेंट के एक अधिकारी अविनाश को जान से हाथ धोना पड़ा। बहुत से घायल हुए। पुलिस ने करीब डेढ़ सौ मजदूरो को गिरफ्तार किया।

हरियाणा सरकार ने पूरा इंतजाम किया की इन मजदूरो को जेल मे सड़ा दिया जाये। जहां एक से एक खटरनाल केसो मे बेल मिल जाती है। इन मजदूरो को कोर्ट ने जमानत देने से मना कर दिया। सरकार करोड़ो रुपए प्रतिदिन देकर बड़े वकील तुलसी साहब को इन मजदूरो के खिलाफ कोर्ट मे भेजती थी। कोर्ट इस आधार पर जमानत नहीं देता था की इन्टरनेशनल लेवल पर देश की बदनामी हुई है। इन मजदूरो के घर बर्बाद हो गए। कोर्ट केसेस मे घर बिकने लगे। परिवार तबाह होने लगे। अंत मे 31 महीने जेल मे रहने के बाद इन मजदूरो को जमानत मिलनी शुरू हुई। वो रिहा होने लगे लेकिन एक बड़ी कीमत चुकाने के बाद।

ये आगजनी क्यों हुई? इतनी नफरत क्यों भड़क गयी। तमाम विरोध, गलत व्यवहार के बावजूद भी क्या ये हत्या जायज थी?

आखिर कम्युनिस्ट नेता जेएनयू के बड़े नाम वाले वामपंथी इन मजदूरो के दिमाग मे क्या भर रहे थे?

आज भी आप वामपंथियों के स्टेटस देखिये। वो आपको जनसमस्या बताते मिलेंगे, सरकार की आलोचना करते मिलेंगे। लेकिन बहुत ध्यान से इन स्टेटस को पढ़िये, लगातार पढ़िये, ये धीरे धीरे आप मे सरकार के प्रति नफरत, गुस्सा भरते मिलेंगे।

जैसे मारुति मे समस्या थी, आज देश मे भी है। मारुति आज चल रही है, टॉप की कंपनी बनी हुई है, वही मजदूर वहाँ काम कर रहे हैं। हालात पहले से बेहतर हैं। समय लगता ही है। आवाज उठाना जायज है। लेकिन नफरत मे अंधे हो जाना समस्या का हल नहीं। जिन मजदूरो ने ये आगजनी की, जब उनके ऊपर कोर्ट केस चला, वो जेल मे थे, उनके परिवार तबाह हो रहे थे। कोई कम्युनिस्ट उनकी मदद को आगे आया? ऐसी मुझे जानकारी नहीं। कतई नहीं। वो अपने हाल पर छोड़ दिये गए।

आज कोई गाँव वापस जा रहा है, कोई खेती मे कोई कहीं।

आज भारत की भी वही हालत है।कम्युनिस्ट वैसे ही आपको समस्याओ के बारे मे शिक्षित कर रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं। लेकिन सिर्फ सुनिए, कहे मे आकर कुछ कर बैठेंगे तो हालात बहुत बुरे होंगे। भारत एक बड़े मोड पर है, जहां एक छलांग उसे विश्व मे ऊपर ले जाएगी, विकास के पथ पर ले जाएगी। फैसला आपके हाथ।

शरद श्रीवास्तव (लेख शरद श्रीवास्तव की फेसबुक वाल से , लेख मे कहीं बातो से एन सी आर खबर का सहमत होना अनिवार्य नहीं है )

एन सी आर खबर ब्यूरो

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