अब इसे सीबीआई के चाबुक का डर कहें या फिर मौकापरस्त सियासत का उदाहरण। नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी सपा और बसपा दोनों में एनडीए सरकार के संकटमोचक की भूमिका निभाने की होड़ मच गई है।
प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र की नियुक्ति के संबंध में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मोदी सरकार का समर्थन करने का ऐलान किया तो सपा भी इस मुद्दे पर तुरंत सरकार के साथ खड़ी हो गई। दोनों पार्टियों ने कांग्रेस का विरोध करना शुरू कर दिया है।
सपा और बसपा के रणनीतिकार मोदी सरकार से संबंध बेहतर बनाने के पक्षधर हैं। इसलिए संसद के अंदर वे सरकार से टकराव लेने के मूड में नहीं हैं।
सूत्रों का कहना है कि मुलायम और मायावती दोनों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले चल रहे हैं। इन मामलों की सीबीआई जांच चल रही है।
माना जा रहा है कि इन मामलों को लेकर ही दोनों पार्टियों ने सरकार से झगड़ा मोल लेना मुनासिब नहीं समझा है। सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि अपनी पसंद का अधिकारी रखना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है। इसे लेकर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कांग्रेस के विरोध को गैर जरूरी बताया।
जबकि मायावती ने कहा कि केंद्र को अपने अधिकारियों का चयन करने का अधिकार है कि वे किस प्रकार से सरकार चलाना चाहते हैं। बसपा और सपा के समर्थन में आने के बाद अब राज्यसभा में मिश्र से संबंधित अध्यादेश को पारित कराना सरकार के लिए आसान हो गया है।
लोकसभा में यह अध्यादेश पारित हो चुका है, जबकि राज्यसभा में भाजपा के पास बहुमत नहीं है। मगर ऐन वक्त पर तृणमूल कांग्रेस के सरकार के समर्थन करने के बाद सपा और बसपा के भी पाला बदलने से अध्यादेश का पास होना तय माना जा रहा है।