उत्तरप्रदेश में क्यों हुआ ‘सबका’ सफाया?

उत्तर प्रदेश में आखिर भारतीय जनता पार्टी की शानदार वापसी हुई है। स्पष्ट जनादेश भाजपा के लिए है। उप्र में लंबे समय के बाद चुनाव में जातीय अवधारणा टूटती नजर आई है।

लोगों ने विकास के मुद्दे को अहमियत दी है। तमाम जातीय आग्रह धरकिनार रह गए। इन चुनावों में जहां सपा-बसपा का आधार टूटता नजर आया, वहीं कांग्रेस अपने पिछले प्रदर्शन को नहीं दोहरा पाई।

पूर्वी उत्तर प्रदेश, अवध, पश्चिम उप्र और बुदेलखंड हर तरह कमल लहरा रहा है। यही नहीं कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही आरएलडी के लिए भी चुनाव के परिणाम निराशाजनक रहे हैं।

यूपी के चुनाव में भाजपा के लिए अच्छे अवसर की संभावना शुरु से जताई जा रही थी। लेकिन भाजपा के लिए परिणाम इस तरह इकतरफा रहने की उम्मीद भाजपा के घोर प्रशंसक भी नहीं कर पा रहे थे।

तमाम अऩुमानों को दरकिनार करते हुए भाजपा ने हर इलाके में अपने परचम को फहरा दिया है। भाजपा के लिए बनारस में नरेंद्र मोदी की बंपर जीत की अहमियत है। यहां उनके खिलाफ लड़ने को ही आप पार्टी ने अपने अभियान से जोड़ा और कांग्रेस ने प्रत्याशी के लिए माहौल बनाकर अपनी उपस्थिति को बनाए रखने की कोशिश की।

भाजपा के लिए बनारस उन सीटों में थी, जहां यह नहीं कहा जा रहा था कि वहां कौन जीतेगा, बल्कि यह कहा जा रहा था कि मोदी कितने अंतर से लीड देंगे।