सृष्टि के आरंभ से ही एक तिथि बड़ी ही खास रही है। यह तिथि है कार्तिक पूर्णिमा। इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों के लिए भी है। पुराणों की कथा के अनुसार भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली असुर का वध इसी दिन किया था।
इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली रूप में थे।
भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे पुनः सृष्टि का निर्माण कार्य आसान हुआ।
गंगा स्नान का महत्व
शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्व बताया गया है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान का भी महत्व है। यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ में स्नान करने का भी बड़ा महत्व है। मान्यता है कि महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद अपने परिजनों के शव को देखकर युधिष्ठिर बहुत शोकाकुल हो उठे। पाण्डवों को शोक से निकालने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गढ़ मुक्तेश्वर में आकर इसी दिन मृत आत्माओं की शांति के लिए यज्ञ और दीपादन किया। उस समय से ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन गढ़मुक्तेश्वर में स्नान और दीपदान की परंपरा शुरू हुई।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान का महत्व
शास्त्रों में दान का बड़ा महत्व बताया गया है। इनमें कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए दान का अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो भी दान करता है वह मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में उसे वापस मिल जाता है। इसलिए उदारता पूर्वक जरूरतमंदों को वस्त्र,धन एवं अनाज दान करना चाहिए।