उन्नाव, – भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के निर्देशन में डौंडियाखेड़ा स्थित राजा राव रामबख्श सिंह के किले में खजाने के लिए रविवार तीसरे दिन भी जारी है। खजाने की खोज के दूसरे दिन शनिवार को एएसआइ को 1500 वर्ष पुराने खपरैल और ईटें मिली हैं। दस वर्ग मीटर क्षेत्रफल में अब तक दो फीट से कुछ ज्यादा खोदाई हो चुकी है। काम तेज करने के लिए मजदूरों की संख्या 12 से बढ़ाकर 22 कर दी गई है। खजाने तक पहुंचने में अभी और कई दिन का वक्त लगेगा। संत शोभन सरकार की सूचना के आधार पर हो रहे खोदाई में एक हजार टन सोना निकलने का दावा किया गया है।
एसडीएम विजय शंकर दुबे ने बताया कि एएसआइ के पांच सदस्यीय टीम के नेतृत्व में दूसरे दिन (शनिवार) प्रात: 10 बजे काम शुरू हुआ। इस टीम का नेतृत्व विभाग के उप निदेशक पीके मिश्र कर रहे हैं। विशेषज्ञों की देखरेख में उत्खनन का काम स्थानीय श्रमिक कर रहे हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि कार्यस्थल पर सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए गए हैं। यहां पहुंच रही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे राजा राव रामबख्श सिंह सन 1857 में अंग्रेजों से लड़ाई में शहीद हो गए थे। जिस खजाने की खोज का काम चल रहा है, वह उन्हीं का माना जा रहा है।
एएसआइ के लिए भी नया है यह अनुभव :-
डौडियाखेड़ा में खजाने की खोज में किया जा रहा उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के लिए भी नया अनुभव है। प्रदेश में ही नहीं देश में भी इससे पहले कभी एएसआइ ने किसी खजाने की तलाश में इस तरह पुरातात्विक उत्खनन नहीं किया है।
यह कहना है एएसआइ केपूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद् सीबी मिश्रा का। मिश्रा बताते हैं कि पुरातात्विक खोदाई हजारों वर्ष पुरानी संस्कृतियों, पुरानी बस्तियों के पुरावशेषों की तलाश में की जाती है। डौंडियाखेड़ा में खोदाई खजाने की तलाश में की जा रही है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रोफेसर डीपी तिवारी कहते हैं कि डौंिडयाखेड़ा में इतनी बड़ी मात्रा में सोना होने की बात पर यकीन नहीं है। राजा राव रामबख्श सिंह की रियासत 25 से 30 वर्ग किलोमीटर में फैली थी। उनकी आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं थी कि इतने अधिक सोने की कल्पना की जाए।