राजेश बैरागी l ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का कामकाज कौन चलाता है? प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एनजी रवि कुमार ने शुक्रवार देर शाम को आदेश देकर उन सभी लौंडों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जो प्रत्येक विभाग में काम तो सारे करते थे परन्तु प्राधिकरण उन्हें जानता नहीं है। ये लोग प्राधिकरण के अधिकारियों और उनके घरेलू नौकरों के निकट संबंधी थे। इन्हें प्राधिकरण ने किसी भी श्रेणी में अर्थात न पक्के,न कच्चे,न संविदा पर और न ठेकेदार के माध्यम से नौकरी पर नहीं रखा था। इन्हें प्राधिकरण से कोई वेतन भी नहीं मिलता था। फिर भी ये लोग प्राधिकरण में काम करते थे।न केवल काम करते थे बल्कि इनमें से कई का तो जलवा भी था। आखिर ऐसे लोगों की प्राधिकरण की मुख्य धारा में एंट्री कैसे हो गयी?
क्या यह जानना आश्चर्यजनक नहीं है कि इतने विशालकाय प्राधिकरण में स्वीकृत पदों के सापेक्ष आधे से भी कम अधिकारी कर्मचारियों को नियुक्त किया गया है। अंतर प्राधिकरण ट्रांसफर नीति ने इन प्राधिकरणों का और भी बाजा बजा दिया है। यहां से स्थानांतरण होने वाले लोगों के मुकाबले आधे लोग भी यहां नहीं भेजे जा रहे हैं। यूपीसीडा में काम न होने के बावजूद अधिकारी कर्मचारियों का ढेर लगा दिया गया है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के कुछ विभागों में काम करने के लिए आदमी नहीं हैं। दो दिन पहले एक विभाग के अधिकारी अपने पास आवश्यकता से बहुत कम कर्मचारी होने का दुखड़ा सुना रहे थे। तो अनजान लोगों की एंट्री ऐसी ही परिस्थितियों में हुई।
अधिकारियों ने काम की पूर्ति करने के लिए अपने जानकारों को अघोषित नौकरी पर रख लिया।उनके पालन के लिए उन्हें आवंटियों और दलालों से अवैध वसूली का अधिकार दे दिया।नये सीईओ ने इस व्यवस्था को एक झटके में समाप्त कर दिया। यह बहुत अच्छा किया।अब काम चलाने के लिए उन्हें कुछ करना होगा। शासन ने सीईओ को दो सौ लोगों को तदर्थ नियुक्ति पर रखने का अधिकार दे रखा है।उस अधिकार का इस्तेमाल करने का इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है?