सत्यम शिवम सुंदरम : नोएडा प्राधिकरण सीईओ बनाम समाजसेवी संस्थाएं बनाम जनता, किसी का ढोल, किसी की शहनाई
किसी का ढोल किसी की शहनाई शीर्षक से आप बीते दिनों सलमान खान की आई फिल्म किसी का भाई किसी की जान को लेकर कोई तुलना मत करिएगा । ये महज एक संयोग है पर आप इसे प्रयोग भी समझ सकते है
उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ
कश्ती मेरी डुबोई है साहिल के आस-पास
संयोग या प्रयोग तो जुलाई के तीसरे सप्ताह के आरंभ में नोएडा प्राधिकरण की सीईओ का स्थानांतरण का समाचार पर भी हुआ, जब उनकी जिद और आधिकारिक हनक से परेशान किसान व्यापारियों और नगर वासियों में मिठाईयां बांट दी ।
इसी नोएडा ने नीरा यादव का दौर भी देखा और उनके स्थानांतरण पर शहर में बटती मिठाईयां भी देखी जिसकी पुनरावृत्ति एक बार फिर ऋतु माहेश्वरी के स्थानांतरण पर दिखी जब नोएडा से लेकर ग्रेटर नोएडा तक उनके स्थानांतरण पर लोगों ने नगर वासियों ने और खास तौर पर किसानों ने मिठाइयां बांटी और ढोल बजाए
ढोल तो पहली बार नोएडा में किसी सीईओ के आने के बाद भी बजा और जब ढोल बजा तो यह प्रश्न भी उठा कि आखिर प्राधिकरण के कार्यालय के सामने किसने ढोल बजवाया । इस नई परंपरा ने नए सीईओ का स्वागत करने वाले लोगों की मंशा पर प्रश्न खड़े किए कि क्या वह पुरानी सीईओ से वाकई इतना दुखी थे कि नए सीईओ का ढोल बजाकर स्वागत कर रहे हैं या फिर यह वही शातिर लोगों का वह समूह था जिसने तब पुरानी सीईओ को घेरे रखा और अब मौका पलटते ही नए सीईओ के साथ अपनी भूमिका बांधने में लग गए
प्रश्न अभी हवाओं में था, चर्चाओं में सीईओ के जाने के कारण समझाए जा रहे थे और सीईओ अपनी विदाई से पहले कार्यकाल में किए कार्यो को बता रही थी । मैं फिर से इसे संयोग समझ बैठा और लोग प्रयोग बता रहे कि जिन कार्यों के लिए लोगो ने उनकी कमी बताई, सीईओ उन्हीं कार्यों को अपनी उपलब्धियां गिना रही थी
खैर फिर भी जब रविवार को ऋतु माहेश्वरी के शहर को छोड़ने से पहले तीन ऐसी संस्थाओं ने उनके लिए विदाई समारोह के बैक टू बैक आयोजन किए, तो लोगों को समझ नहीं आया की स्थानांतरण के समाचार पर बाटें लड्डू और बजे ढोल के समाचार सच थे या विदाई पर बजती ये शहनाई के समाचार सच है ।
तीनों संस्थाओं में पहली संस्था नोएडा प्राधिकरण से रिटायरमेंट ले चुके अधिकारियों की है और उनका अपनी ही किसी अधिकारी के नोएडा जैसे शहर में 4 साल तक पूरी हनक के साथ बने रहना पर समारोह करना सही लगता है। जहां तक मुझे याद है इस संस्था ने सीईओ के आने पर भी बड़ा स्वागत समारोह किया था और शायद वैसा स्वागत समारोह किसी ने नहीं किया इसलिए मैं उस पर ज्यादा सोच विचार करना उचित नहीं समझता ।
किंतु शहर की दो अन्य स्वयंभू मठाधीश संस्थाओं जिनको दशकों से उनके भागीरथ प्रयासों के बावजूद शहर की जनता द्वारा नकार दिया गया । जो दशकों से पत्रकारों के बीच आपसी अहम की लड़ाई में दो संगठन बनाने के लिए जानी जाती हो, जिनको प्राधिकरण की सीईओ ने कभी किसी आधिकारिक कार्यक्रम में विशेष स्थान ना दिया हो तो उनके ऐसे समारोह के आयोजन पर प्रश्न खड़े हो सकते हैं । प्रश्न इसीलिए भी खड़े हो सकते हैं कि दोनों ही संस्थाओं के अध्यक्ष अपने अपने कार्यक्रम लेकर जब सीईओ से अनुमति मांग रहे होंगे तो वो क्या सोच रही होंगी । वो क्या सोच रही होंगी वो शायद हम नही जानते पर मुझे इस पर वरिष्ठ पत्रकार का एक संदेश सोशल मीडिया पर लिखा दिखा और वो यहां सही लगा
वक्त कुछ यूं बदलता है,
जिन्हें कभी खुद के खुदा होने का गुमान था
वो आज हमारे ना-खुदा होने की गलतफहमी में हैं
प्रश्न तो मन में यह भी उठा की नोएडा में मौजूद व्यापार संगठन, एंटरप्रेन्योर एसोसिएशन और जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने विदाई समारोह करने की जरूरत नहीं समझी या फिर कहानी कुछ और भी रही ।
किंतु अंत भला तो सब भला की तर्ज पर यह सारे प्रश्न किसी का ढोल किसी की शहनाई के बीच की चर्चाओं में कहीं गुम हो जाएंगे । और हम अपने नए सीईओ के साथ यही अपेक्षा करेंगे कि इस बार वो जमीन पर कार्य करने वाली संस्थाओं के सीईओ से मिलने की शिकायत को दूर कर देंगे और नगर वासियों को बदलाव की वो बयार ला देंगे जिसके वो हकदार है ।