main newsएनसीआरनजरियाविचार मंचसंपादकीय

2024 की कठिन डगर और मोदी – योगी : अमर आनंद

अमर आनंद। अपने किरदार को युग पुरुष के रूप में तब्दील करने वाले अडानी मित्र नरेन्द्र मोदी को अब भी देश की जनता की एक बड़ी तादाद सर आंखों पर बिठाती है। उनके परिश्रम को परक्रम मानती है लेकिन क्या इस बात से नौ साल बेमिसाल का नारा देने वाली मोदी की सरकार तीसरी बार आ सकती है यह एक बड़ा सवाल है। यह सवाल मोदी है तो मुमकिन है कहने वाल मोदी प्रेमियों के लिए भले ही न हो लेकिन संघ के सामने है। पार्टी के सांसदों के सामने है और बहुत हद तक उन पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने है जिनके लिए आम जनता के सवालों का जवाब देना मुश्किल होता जा रहा है। इस मामले संघ की चिंताएं भी समझी जा सकती हैं। संघ के अंग्रेजी के मुखपत्र आर्गनाइजर के लेख की भाषा भी यही कहती है कि मोदी और हिंदुत्व का जादू 2024 के लिए काफी नहीं है। तो आखिरकार काफी क्या हो, इस बात पर संघ के साथ साथ अपने हिस्से में कम होते राज्यों की संख्या वाली बीजेपी में मंथन हो रहा है और इसके लिए संघ का दिशा निर्देश, उसकी प्रेरणा और उसकी मंशा भी काम कर रही है।


आज की तारीख में देश और बीजेपी में मोदी के टक्कर कोई नेता नहीं है। इसलिए भी कि किसी का इतना दमदार विस्तार नहीं हुआ है और इसलिए कि मोदी और शाह के ‘ पराक्रम’ की छांव में किसी का पनपना संभव नहीं हो पाया है। पार्टी के संसदीय बोर्ड से हटाए जा चुके सुपर अचीवर मंत्री और संघ के प्रिय नितिन गडकरी कभी कभार खुद को हारकर जीतने वाले बाजीगर की तरह खुद को पेश करते है तो कभी राजनीति से संन्यास जैसी बाते करते हैं। राष्ट्र और बीजेपी का नेतृत्व फिलहाल महाराष्ट्र मे तो नहीं दिखाई देता और न ही उस दक्षिण में जहां से हार के बाद बीजेपी हलकान है और आने वाले विधान सभा चुनावों मे अपनी संभावित हार से चिंतित भी है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस समेत विपक्षी राज्य छत्रपों ने कोई तीर मारा हो या उनमें 2024 में मोदी को हराने की क्षमता आ गई हो। विपक्ष की धुंधली तस्वीर के सामने चमकते हुए मोदी को विपक्ष से कोई खतरा नहीं है ऐसा साफ नजर आ रहा है। मोदी को अगर कोई खतरा है तो हाल के उन आंतरिक सर्वे से जिसमें तीसरी बार जीत के लिए आशंका जताई जा रही है। पार्टी के उन नेताओं से जिनका असंतोष मोदी के किरदार का वजन कम होते ही उन पर सवाल उठा सकता है और आखिरकार उन आदित्यनाथ योगी से जिन्हें समीकरण के हिसाब से उनके विकल्प के रूप में समझा जा सकता है। आम लोगों में मोदी की राजसी शैली के आलोचक भी योगी की संन्यासी शैली के प्रशंसक होंगे और मोदी से नाराज़ लोग भी योगी के साथ खड़े नजर आयेंगे ये सोचकर कि वो देश की सबसे बड़ी कुर्सी के लिए मोदी को नहीं बल्कि किसी और को अवसर दे रहे है और ऐसे नेता के लिए वोट कर रहे है जिसने पिछले छह साल में अपने राज्य न बेहतर प्रदर्शन की कोशिश की है। अगर संघ ने 2024 के योगी को मोदी का विकल्प समझा तो यकीनन वो उन गैर गुजराती नेताओं की आवाज बनकर भी उभरेंगे, जिन्हें मोदी और शाह’ की वजह से उभरने का अवसर नहीं मिल पाया या जो अप्रासंगिक होते चले गए।

यकीनन पार्टी के अंदर और बाहर विपरीत परिस्थितियों में काम करने वाले योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश से ज्यादा से ज्यादा सीटें दिलवाने की कोशिश करेंगे लेकिन ये सीटें जाहिर तौर पर वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी के नाम पर कम और गोरखपुर सदर के विधायक योगी के नाम पर ज्यादा मिलेंगी। अगर बाकी राज्यों में कम सीटें मिली और यूपी में कमाल हुआ तो न सिर्फ योगी के कंधे पर हाथ रखने वाले और उन्हें उपयोगी बताने वाले मोदी को योगी का लोहा मानना पड़ेगा बल्कि खुद को मोदी का उत्तराधिकारी अमित शाह के स्वाभाविक ऐतराज भी योगी को संघ की मदद से पीएम की कुर्सी की ओर बढ़ने से रोक नहीं पाएंगे। कर्नाटक में मोदी – शाह की रणनीति की हार और योगी की रणनीति की जीत को।सबने देखा है। मुमकिन है कि देश, बीजेपी और जनता को एक ऐसा संयोग दिखाई पड़े जिसमें योग भी शामिल हो और प्रयोग भी। एक बात और ऐसे दौर में योगी के कई साथी उनके विरोधी भी बन सकते हैं या उनका साथ देना छोड़ सकते है लेकिन उनके लिए योगी का यह अंदाज सामने होगा। तुम साथ न दो मेरा चलना मुझे आता है, हर आग से वाकिफ हूं, जलना मुझे आता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और इवेंट जर्नलिज्म के संस्थापक है

NCRKhabar Mobile Desk

हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I अपना सूक्ष्म सहयोग आप हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये दे सकते है

Related Articles

Back to top button