हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी ही तो पी है यह प्रश्न इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि तथाकथित आरटीआई एक्टिविस्ट और कुछ समाचार पत्रों द्वारा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के बीते 2 साल के चाय नाश्ते काबिल 71 लाख बताकर उसको भ्रष्टाचार और दुरुपयोग बताया जा रहा है । मीडिया में आई जानकारी के अनुसार ग्रेटर नोएडा के तिलपता गांव के रहने वाले सागर खारी ने आरटीआई के माध्यम से प्राधिकरण की बैठकों में अधिकारियों के चाय नाश्ते पर खर्च होने वाले बिल का ब्यौरा मांगा आरटीआई के जवाब में प्राधिकरण के सूचना विभाग ने बताया कि पिछले 2 सालों में चाय नाश्ते के ऊपर 7100000 रुपए खर्च हुए ।
इस जानकारी के बाद खुद को ईमानदार कहने वाले डिजाइनर पत्रकारों और समाजसेवियों ने प्राधिकरण के इस नाश्ते के ऊपर प्रश्न खड़ा करते हुए से भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा बता दिया कहा गया कि लॉकडाउन की अवधि में अधिकारियों ने 22 लाख के चाय नाश्ता कर लिए हैं मीडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार आरटीआई कार्यकर्ता सागर खारी ने बताया कि प्राधिकरण अक्सर गांव के विकास को लेकर गलत रवैया दिखाता है और कहता है वह कर्जे में चल रहा है ऐसे में आईटीआई में पता लगा कि उसने ₹7100000 27 महीने में खर्च किए है । पूरे प्रकरण की शिकायत उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त और मुख्यमंत्री को करूंगा
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई है या येन केन प्रक्नेण चर्चित होने का फार्मूला
प्रथम दृष्टया इस समाचार के बाद कोई भी सामान्य व्यक्ति से प्राधिकरण के भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा कहेगा और आरटीआई दाखिल करने वाले कार्यकर्ताओं को बेहद ईमानदार लेकिन क्या सच वाकई यही है या फिर आजकल लोगों में आरटीआई के नाम पर आंकड़े देख कर जल्दी चर्चित होने का एक फार्मूला हाथ लग गया है ।
बीते दिनों हमने कई बार ऐसा देखा है जिसमें भ्रष्टाचार के नाम पर प्राधिकरण हो प्रशासन या पुलिस पर तमाम आरोप लगाए गए जो मीडिया की सुर्खियां बने हैं लेकिन जांच के बाद वह सब सामान्य बातें पाई गई ऐसे प्रकरण में अक्सर लोग आंकड़ों के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करके कहीं ना कहीं प्राधिकरण के अधिकारियों पर दबाव बनाकर अपने किए जा रहे गलत कामों के लिए लाभ मांगते हैं । प्राधिकरण ने इस तरीके की समस्याओं को निबटने के लिए कई बार वहां पर दलालों के प्रवेश बंद है के बोर्ड लगाए हैं हर एक व्यक्ति को अब महीने में कुछ बार ही जाने की रोक भी लगाई है लेकिन लोग लगातार आरटीआई का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आते हैं l
क्या प्राधिकरण वाकई लाखो की चाय गलत पी रहा है ?
प्राधिकरण के ऊपर लगे इस ताजा भ्रष्टाचार के आरोप को जांचने के लिए हमने इस आरटीआई में लगाए गए दावे और मीडिया में आई खबरों के फैक्ट चेक करने का निश्चय किया जानकारी के अनुसार 27 माह में 71 लाख रुपए प्राधिकरण में चाय नाश्ते पर खर्च किए हैं जिसको मासिक तोर पर लगभग 286000 का खर्च निकल कर आता है, इसी खर्च को अगर प्रतिदिन के खर्च में बदल दिया जाए तो यह लगभग साडे ₹8760 रुपए आता है । औसतन एक चाय ₹10 की होती है ऐसे में अगर इस आंकड़े को और गहराई से देखें तो मात्र 800 लोग एक दिन में प्राधिकरण के कार्यालय में चाय पी रहे हैं । इसी आंकड़े को अगर आप थोड़ा और बदल कर देखेंगे तो मात्र 800 चाय प्राधिकरण के कर्मचारियों और उनके आने वाले मीटिंग के दौरान दिन में भी जा रही हैं जिसको 8 घंटे की नौकरी में अगर दो से तीन बार भी समझा जाए तो लगभग 300 लोग ही दो कप चाय पी रहे हैं ऐसे प्रश्न यह है कि क्या प्राधिकरण के कर्मचारियों के दो कप चाय पीने को लेकर इतना बड़ा हंगामा किया जा रहा है अगर चाय के साथ दो नमकीन के पैकेट भी जोड़ दिया जाए तो यही नाश्ता ₹200 से 300 रुपए का हो जाता है और उस केस में पूरे प्राधिकरण की 1 दिन में मात्र 50 बैठकों का यह खर्च है। ऐसे में खुद को ईमानदार बताने वाले आरटीआई कार्यकर्ता पत्रकारों और समाजसेवियों के समक्ष प्रश्न यह है कि क्या प्राधिकरण के अधिकारी पूरे दिन में ₹800 का नाश्ता भी नहीं कर सकते हैं l जबकि इन्ही लोगो को अधिकारियों के समक्ष पहुँच कर समुचित सम्मान ना मिलने की भी शिकायत रहती है l तो क्या किसानों को लगातार मुआवजे के नाम पर कर्मचारियों और अधिकारियों की बैठक में चाय पानी जैसी चीजों को भी बंद कर दिया जाए। ऐसे में यक्ष प्रश्न ये है कि आखिर यह समाज किस ओर जा रहा है